Short motivational 2.0
1) https://youtu.be/XgziBDemQg0?si=3UecmglhghXOVc5z
एक छोटे से गांव में जहां चारों तरफ हरियाली और साफ बहती नदियां थी। वहीं रहता था एक नौजवान राहुल। पूरा गांव उसकी हिम्मत और आत्मविश्वास का दीवाना था। कोई भी मुश्किल काम हो राहुल सबसे पहले आगे बढ़ता। वो कभी पीछे नहीं हटता। हर चुनौती का सामना करता डटकर। लेकिन राहुल के अंदर एक ऐसा दुख था जिसे कोई और देख नहीं सकता था। वो अकेला ही उस खालीपन को महसूस करता था। जिंदगी में सब कुछ पाने के बाद भी राहुल को लगता था कुछ तो अधूरा है। बाहर से सब कुछ ठीक है लेकिन अंदर एक गहरी खाली जगह।
एक दिन शांति और सच्चाई की तलाश में राहुल ने सफर पर निकलने का फैसला किया। उसे एक बुद्धिमान वृद्ध साधु के बारे में पता चला जिनका नाम था सद्गुरु अनंत। लोग कहते थे सद्गुरु अनंत की बातें आईने जैसी होती हैं जो इंसान को खुद से मिला देती है। एक सुबह राहुल उनकी कुटिया पर पहुंचा। सद्गुरु अनंत एक शांत मुस्कान और चमकती आंखों के साथ लकड़ी की झोपड़ी में बैठे थे। राहुल बोला दादा जी मैं दिन रात मेहनत करता हूं। बहुत कुछ पाया है। लेकिन फिर भी सुकून नहीं मिलता। सच्ची खुशी कहां है? सद्गुरु अनंत मुस्कुराए और बोले मैं जरूर बताऊंगा। लेकिन पहले एक छोटा काम करो। उन्होंने पास रखी एक पुरानी लकड़ी की बाल्टी की ओर इशारा किया। इस बाल्टी को लो और एक हफ्ते तक रोज नदी से पानी लाकर मेरे कुएं में डालो। लेकिन ध्यान रहे बाल्टी में कई दरारें हैं। राहुल थोड़ी देर चुप रहा। फिर बिना कोई सवाल किए काम शुरू कर दिया। हर सुबह तेज धूप में नदी जाना बाल्टी में पानी भरना और वापस कुएं तक लाना। लेकिन रास्ते में पानी बह जाता। कुएं तक पहुंचते-पहुंचते बाल्टी लगभग खाली होती। एक हफ्ता बीत गया। थका हारा राहुल सद्गुरु अनंत के पास लौटा और बोला दादा जी मैं असफल हो गया।
पानी कुएं तक पहुंचा ही नहीं सका। सद्गुरु अनंत मुस्कुराए और बोले तुमने वही किया जो मैं चाहता था। अब पीछे मुड़कर देखो। राहुल ने पीछे देखा जहां पहले सूखा और बेजान रास्ता था। अब वहां हरियाली, फूल और जीवन था। वो चौंक गया। यह सब कैसे? सद्गुरु अनंत बोले उस टूटी बाल्टी से गिरा पानी रास्ते को सींचता रहा। जिंदगी भी ऐसी ही है बेटा। हम सब में कुछ कमियां होती हैं। लेकिन फिर भी हमारी मेहनत बेकार नहीं जाती। सच्ची खुशी सिर्फ मंजिल में नहीं। उस सफर में है जहां हम किसी और की जिंदगी में कुछ अच्छा कर जाते हैं। उस पल राहुल के भीतर कुछ बदल गया। अब वो लौटा तो उसी गांव में था लेकिन अब उसके दिल में सुकून था और आंखों में एक नई समझ। दोस्तों हम सब सोचते हैं जब मैं यह करूंगा तब खुश रहूंगा। लेकिन असली खुशी रास्ते में है। उस सफर में है। वो टूटी बाल्टी हमारी कमियां हैं। लेकिन उन्हीं कमियों से भी हम दुनिया को कुछ अच्छा दे सकते हैं।
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2) https://youtu.be/96-BepyH25A?si=lc2OCnBKE060IDvW
कभी-कभी जिंदगी इतनी मुश्किल लगने लगती है कि लगता है अब आगे बढ़ना मुमकिन नहीं। हर रास्ता बंद सा दिखाई देता है और मन हार मानने को तैयार हो जाता है। लेकिन अक्सर जब हम सबसे ज्यादा टूटे होते हैं, हमारी मंजिल बस एक कदम की दूरी पर होती है। इसी सच्चाई को बयां करती है आरव की यह प्रेरणादायक कहानी। चलिए कहानी शुरू करते हैं।
एक छोटे से गांव में रहने वाला आरव एक गरीब दर्जी का बेटा था। उसके पिता कपड़े सिलकर किसी तरह घर चलाते थे। मां बीमार रहती थी और घर की हालत बहुत ही साधारण थी। लेकिन आरव के सपने साधारण नहीं थे। वह एक आईएएस अफसर बनना चाहता था। पढ़ाई में होशियार होने के बावजूद आरव के पास कोचिंग के लिए पैसे नहीं थे। उसके पास जो किताबें थी वे भी फटी पुरानी थी जो उसने दोस्तों से मांगकर या पुरानी किताबों की दुकान से खरीदी थी। फिर भी वह उन किताबों को अपनी दौलत समझता था। वह स्कूल से आकर अपने पिता की दुकान पर हाथ बटाता और रात में स्ट्रीट लाइट के नीचे बैठकर उन्हीं फटी किताबों को लेकर एक आईएएस अफसर बनने का जुनून अपने दिल में रखकर मेहनत करता था। जिसके लिए उसे यूपीएससी नामक परीक्षा को पास करना था। दोस्तों के पुराने नोट्स और सरकारी लाइब्रेरी उसकी दुनिया थे। 12वीं पास करने के बाद आरव ने ग्रेजुएशन के साथ-साथ यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी। दिन में कॉलेज, शाम को पिता की मदद और रात को पढ़ाई। यह उसकी रोजमर्रा की जिंदगी थी। नींद कम, संघर्ष ज्यादा। लोग हंसते और कहते देखो दर्जी का बेटा अब अफसर बनने चला है। लेकिन आरव बस एक ही बात खुद से कहता हार नहीं मानूंगा। पहली बार जब उसने यूपीएससी का एग्जाम दिया वह प्रारंभिक परीक्षा में ही फेल हो गया। उसका मन टूट गया।
उसे लगा शायद लोग सही कहते हैं। यह सपना उसके लिए नहीं है। उस रात जब वो उदास होकर छत पर बैठा था और आसमान की ओर देख रहा था। उसके पिता आए और बोले बेटा मैं अनपढ़ हूं लेकिन एक बात जानता हूं सपना वो नहीं होता जो नींद में आए। सपना वो होता है जो नींद ना आने दे। तू रुकना मत मेहनत करता रह फल जरूर मिलेगा। उस दिन के बाद आरव ने दोबारा खुद को संभाला और जोर शोर से तैयारी में जुट गया। इस बार आरव ने दिन रात एक कर दिए। उसने अखबार बांटने का काम भी किया ताकि वह कुछ पैसे जोड़ सके और टेस्ट सीरीज खरीद सके। लेकिन जब रिजल्ट आया वह मुख्य परीक्षा को पास नहीं कर पाया। अब उसकी उम्र भी बढ़ रही थी और परिवार की स्थिति भी बिगड़ रही थी। अब उसके पास सिर्फ एक आखिरी प्रयास बचा था। इस बार उसकी तैयारी में जुनून था, विश्वास था और पिता की बातें हर दिन याद आती थी। उसने मोबाइल, सोशल मीडिया सब छोड़ दिया। हर सुबह 5:00 बजे उठकर 10 घंटे की पढ़ाई उसकी दिनचर्या बन गई। उसने इस बार प्रारंभिक परीक्षा भी पास की। मुख्य परीक्षा भी पास की। लेकिन जब इंटरव्यू की बारी आई तब गांव में उसके पिता को दिल का दौरा पड़ा।
आरव इंटरव्यू की तारीख पुनः निर्धारित कराने की रिक्वेस्ट डालकर गांव निकल गया। जब वह अस्पताल पहुंचा तो उसने देखा कि उसके पिता की हालत बहुत गंभीर है। उसने पैसों की तंगी के कारण अपने पुराने दोस्तों, रिश्तेदारों और जान पहचान के लोगों से पैसे मांगकर अपने पिता को दूसरे अस्पताल में भर्ती करवा दिया। उसके कुछ दोस्तों ने तो उसकी मदद की। लेकिन कुछ रिश्तेदारों ने यह सोचकर कि यह हमारे पैसे कैसे लौटाएगा? अपने हाथ खड़े कर लिए। अपने पिता की ऐसी स्थिति को देखकर वह मन ही मन टूट चुका था और खुद पर संदेह करने लगा था। लेकिन भाग्य को कुछ और मंजूर था। जब आयोग ने उसे दोबारा इंटरव्यू देने का मौका दिया तो वह बहुत खुश हुआ और उसने यह ठान लिया कि वह अपने परिवार की स्थिति को सुधारेगा और एक आईएएस अफसर बनकर दिखाएगा और इस बार आरव ने ऐसा इंटरव्यू दिया कि सभी सदस्य प्रभावित हो गए। रिजल्ट वाले दिन आरव की सांसे थमी हुई थी।
आरव ने कंप्यूटर स्क्रीन पर अपना रोल नंबर देखकर उसकी आंखें भर आई। उसका नाम चयनित उम्मीदवारों की सूची में सबसे ऊपर था। उसने उन लोगों को जो उसकी काबिलियत पर शक करते थे। अपनी सफलता से मुंहतोड़ जवाब दिया। उसकी इस सफलता को देखकर गांव के अन्य लोग भी प्रभावित हुए और उसके माता-पिता की आंखों से खुशी के आंसू बह रहे थे। इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि सच्ची मेहनत और धैर्य कभी व्यर्थ नहीं जाते। चाहे हालात कितने भी कठिन क्यों ना हो अगर आप हार नहीं मानते और लगातार प्रयास करते रहते हैं तो सफलता एक दिन जरूर आपके कदम चूमेगी। इसलिए कभी हार मत मानो।
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3) https://youtu.be/bQ5VdlX2juo?si=62Cp98wE-lZ39t1Q
कभी तुम्हें ऐसा लगा है कि तुम्हारा दिमाग एक तूफान की तरह चल रहा है? हजारों ख्याल, परेशानियां, घबराहट और उलझने जैसे कुछ भी साफ ना दिख रहा हो। अगर हां, तो यह कहानी तुम्हारे लिए ही है। एक समय की बात है। एक युवक था जो हमेशा बेचैन रहता था। उसे लगता था कि उसकी जिंदगी में शांति नहीं है। कभी किसी बात की चिंता, कभी किसी चीज का डर और कभी गुस्सा। वह इन सब भावनाओं से परेशान हो चुका था। वह सोचता काश कोई ऐसा तरीका मिल जाए जिससे मेरा मन हमेशा शांत रहे ताकि मैं चीजों को अच्छे से समझ सकूं। इसी सवाल के जवाब के लिए वह एक प्रसिद्ध जैन गुरु के पास पहुंचा। युवक ने गुरु से कहा, गुरु जी, मेरा मन बहुत अशांत रहता है। छोटी-छोटी बातें मुझे परेशान कर देती है। मैं हमेशा उलझन में रहता हूं। कृपया मुझे कोई ऐसा उपाय बताइए जिससे मेरा मन हमेशा शांत रहे।
गुरु ने उसे ध्यान से देखा। मुस्कुराए और बोले, आओ मेरे साथ झील के किनारे चलो। युवक थोड़ा हैरान हुआ। लेकिन वह चुपचाप गुरु के साथ चल पड़ा। दोनों झील के किनारे पहुंचे। झील का पानी शांत था जैसे किसी दर्पण की सतह हो। गुरु ने बिना कुछ कहे एक पत्थर उठाया और उसे झील में फेंक दिया। पत्थर गिरते ही पानी में लहरें उठने लगी। पहले छोटी-छोटी, फिर बड़ी और दूर तक फैलने वाली। पानी अब वैसा नहीं था जैसे पहले था। अब वह हिल रहा था और लहरें बन रही थी। गुरु ने युवक से कहा, अब झील के पानी में अपना चेहरा देखो। क्या तुम्हें अपना प्रतिबिंब साफ-साफ दिख रहा है? युवक ने झील में झांका पानी में हलचल थी। उसका चेहरा टेढ़ामेढ़ा और बिखरा हुआ दिख रहा था।
उसने कहा गुरु जी पानी हिल रहा है इसलिए मेरा चेहरा साफ नहीं दिख रहा। गुरु मुस्कुराए और बोले थोड़ा इंतजार करो। युवक वहीं खड़ा रहा। धीरे-धीरे पानी शांत होने लगा। कुछ देर बाद झील का पानी फिर से वैसा ही हो गया जैसे पहले था। बिल्कुल स्थिर और साफ। गुरु ने पूछा, अब देखो क्या तुम्हें अपना चेहरा साफ दिख रहा है? युवक ने दोबारा झील में झांका और हैरानी से बोला हां गुरु जी अब तो सब कुछ बहुत साफ दिख रहा है। गुरु मुस्कुराए और बोले यही तुम्हारे मन की स्थिति है। जब तुम्हारा मन गुस्से, डर, चिंता और बेचैनी से भरा होता है। तब तुम चीजों को सही तरीके से नहीं देख पाते। लेकिन जब तुम शांत हो जाते हो तो सब कुछ साफ-साफ दिखने लगता है। युवक ने धीरे-धीरे सिर हिलाया। अब उसे गुरु की बात समझ आ रही थी। गुरु ने आगे कहा, हम अक्सर सोचते हैं कि अगर हमारी समस्याएं खत्म हो जाएंगी तो हमें मानसिक शांति मिल जाएगी।
लेकिन सच्चाई यह है कि शांति बाहर से नहीं हमारे अंदर से आती है। अगर हमारा मन अशांत है तो हम सही और गलत में फर्क नहीं कर पाते। हमारा दिमाग उलझा रहता है। फैसले गलत हो सकते हैं और जिंदगी की दिशा धुंधली लगने लगती है। जैसे अशांत पानी में सही प्रतिबिंब नहीं बन सकता वैसे ही बेचैन मन भी सही जवाब नहीं दे सकता। हम अक्सर सोचते हैं कि अगर हमारी सभी समस्याएं खत्म हो जाए तो मैं बहुत खुश रहूंगा। लेकिन हकीकत यह है कि शांति बाहरी चीजों पर निर्भर ही नहीं करती। अगर हम यह सोचते रहेंगे कि हालात बदलने के बाद हमें सुकून मिलेगा तो हम जिंदगी भर इंतजार करते रह जाएंगे। हमें अपने मन को नियंत्रित करना सीखना होगा। तभी असली शांति मिलेगी। युवक ने गुरु के चरण स्पर्श किए और कहा गुरु जी अब मैं समझ गया हूं कि मुझे सुकून पाने के लिए बाहरी परिस्थितियों का इंतजार करने की जरूरत नहीं बल्कि अपने मन को शांत रखना सीखना होगा। गुरु मुस्कुराए और बोले यही सच्ची शांति है।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि अगर तुम्हारा मन भी बार-बार उलझता है, चिंता करता है या हर वक्त कुछ सोचता रहता है तो इसे शांत करने की कला सीखो। परिस्थितियां हमेशा बदलती रहेंगी। लेकिन अगर तुम अपने मन को स्थिर रखना सीख लोगे तो जिंदगी खुद ब खुद आसान हो जाएगी। तो अगली बार जब तुम्हारा दिमाग अशांत हो तो याद रखना बाहर की दुनिया को शांत करने से पहले अपने भीतर की दुनिया को शांत करो।
4) https://youtu.be/Tj43SDBKBPo?si=KhJKj6DKFW2HUuxL
किसी ने क्या खूब कहा है कि अगर आप अपना भविष्य बदलना चाहते हो तो अपनी आदतें बदलो क्योंकि बदली हुई आदतें आपका भविष्य बदल सकती है। एक बार एक गुरु जी और एक शिष्य जंगल के रास्ते से कहीं जा रहे थे। दोनों रास्ते में चल रहे थे कि अचानक गुरु जी की नजर एक छोटे से पौधे पर पड़ी। पौधा बिल्कुल नया-नया उगा था। पत्ते भी हरेभरे थे। गुरु जी थोड़ा रुके और उन्होंने शिष्य से कहा जरा इस पौधे को उखाड़ कर दिखाओ। शिष्य ने बिना सोचे कहा गुरु जी यह तो बहुत ही आसान है। फिर उसने हाथ लगाया और एक झटके में उस पौधे को उखाड़ लिया।
गुरु जी ने मुस्कुराते हुए सिर हिला दिया और फिर से दोनों आगे बढ़ने लगे। थोड़ी देर चलने के बाद गुरु जी को एक दूसरा पौधा दिखा जो पहले वाले पौधे से थोड़ा बड़ा था। लगभग 3-4 फुट का था। गुरु जी ने फिर से शिष्य से कहा इसे भी उखाड़ लो। इस बार शिष्य को थोड़ा जोर लगाना पड़ा लेकिन कुछ ही मिनट में उसने उसे भी उखाड़ लिया। गुरु जी ने फिर से सर हिला दिया और दोनों फिर से आगे चल पड़े। कुछ देर जाने के बाद गुरु जी को एक और भी बड़ा पौधा दिखा लगभग 7 आठ फुट का जिसकी मोटी जड़े जमीन में घुसी हुई थी। गुरु जी ने मुस्कुराते हुए शिष्य से कहा इसे भी उखाड़ लो। शिष्य को इस बार अच्छी खासी मेहनत करनी पड़ी।
पहले तो उसने हाथ से कोशिश की। फिर पैरों का सहारा लिया। उसे थोड़ा पसीना भी आ गया। लेकिन काफी मेहनत के बाद उसने इस वाले पौधे को भी उखाड़ ही लिया। शिष्य ने सोचा कि अब गुरु जी तो खुश हो ही जाएंगे। लेकिन गुरु जी चुपचाप आगे बढ़ गए। शिष्य भी उनके पीछे-पीछे चल पड़ा। कुछ ही दूर पर एक बड़ा सा पेड़ दिखाई दिया। कम से कम 20 फुट लंबा। वो मजबूत जड़ों वाला पेड़ था। उसकी जड़े गहरी जमीन में घुसी हुई थी। गुरु जी ने थोड़ा रुक कर शिष्य से कहा इसे भी उखाड़ लो। अब शिष्य हैरान हो गया। उसने गुरु जी की तरफ देखा और बोला गुरु जी आप यह क्या कह रहे हो? मैं इतना बड़ा पेड़ कैसे उखाड़ सकता हूं। इसमें तो पूरा दिन निकल जाएगा। और शायद फिर भी यह पेड़ नहीं हिलेगा। यह सुनकर गुरु जी ने जोर से हंसे और कहा, यही तो मैं आज तुझे सिखाने लाया था। यह पेड़ एक दिन में इतना बड़ा नहीं बना है।
जब यह एक छोटा सा पौधा था तब इसे आसानी से उखाड़ सकते थे। लेकिन जितना समय बीतता गया इसकी जड़े उतनी ही गहरी होती गई और अब इसे उखाड़ना लगभग नामुमकिन है। शिष्य थोड़ा सोच में पड़ गया। उसकी समझ में आ रहा था कि गुरु जी बस पेड़ के बारे में नहीं बोल रहे थे। कुछ और गहरी बात समझा रहे थे। गुरु जी ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, इंसानों की बुरी आदतें भी इसी तरह होती है। जब आदत नई नई होती है, तब उसे छोड़ना आसान होता है। लेकिन अगर उसे समय पर नहीं रोका गया तो वह एक मजबूत जड़ की तरह इंसान की जिंदगी में घुस जाती है।
फिर चाहे जितनी कोशिश कर लो उसे छोड़ना मुश्किल हो जाता है। शिष्य ने सर झुका लिया। अब उसकी समझ में आया कि गुरु जी जंगल में यह सब क्यों करवा रहे थे। गुरु जी ने फिर से कहा अगर तेरे अंदर कोई बुरी आदत पनप रही है तो तू उसे अभी उखाड़ कर फेंक दे क्योंकि जितना देर करेगा वो उतनी ही गहरी होती जाएगी। और बाद में उसे छोड़ना तेरे लिए मुश्किल हो जाएगा। दोस्तों गुरु जी की यह बात सिर्फ शिष्य के लिए नहीं थी। हम सबके लिए एक बड़ी सीख है। हम सब की जिंदगी में भी ऐसे ही कुछ आदतें हैं। शायद पहले तो वह छोटी लगती है जैसे झूठ बोलना, गुस्सा करना या आलस करना। लेकिन अगर इन्हें समय पर नहीं रोका जाए तो यह एक बड़े पेड़ की तरह हमारी जिंदगी में जड़े बना लेती है। फिर चाहे कितनी भी कोशिश कर लो इनसे छुटकारा पाना मुश्किल हो जाता है।
5 https://youtu.be/6vTxV_TBe0A?si=ITegdzDF9EpcLx4C
एक समय की बात है। एक घने जंगल में एक आश्रम था। जहां एक प्रसिद्ध गुरु अपने शिष्यों को जीवन के गहरे रहस्य सिखाया करते थे। आश्रम में सभी शिष्य बहुत मेहनती और अनुशासित थे। सिवाय एक शिष्य विवेक के। विवेक बुद्धिमान था। लेकिन उसमें एक दोष था। वह बहुत आलसी था। वह हर कार्य को टाल देता। जब पढ़ाई का समय होता वह कहता अभी नहीं थोड़ी देर में जब ध्यान लगाने का समय आता तो वह अच्छे से ध्यान नहीं लगा पाता। गुरु जी ने कई बार उसे समझाया परंतु कोई बदलाव नहीं आया। गुरु को उसकी इस आदत के बारे में पता था और वह इसको लेकर चिंतित भी थे। एक दिन गुरु ने उसे सबक सिखाने का एक तरीका खोज निकाला।
एक दिन गुरु ने विवेक को बुलाया और उसे एक चमकती हुई मिट्टी की छोटी मूर्ति दी और बोले बेटा यह मूर्ति लो। यह कोई साधारण मूर्ति नहीं है। यह सिद्धि मूर्ति है। इसका स्पर्श जिस किसी भी मिट्टी की वस्तु को होगा, वह सोने में बदल जाएगी। मैं यह मूर्ति तुम्हें दे रहा हूं। इसके माध्यम से तुम जितना चाहे उतना सोना बना सकते हो। मैं एक दिन के लिए बाहर जा रहा हूं और कल शाम तक लौट आऊंगा। तब तक यह मूर्ति तुम अपने पास रखना। जब मैं लौटूंगा तब इसे वापस ले लूंगा। लेकिन ध्यान रहे यह शक्ति सिर्फ 24 घंटे के लिए है। सूर्यास्त से अगले सूर्यास्त तक विवेक की आंखों में चमक आ गई। वह सोचने लगा सोने की चीजें मैं अमीर बन जाऊंगा।
मुझे बस मिट्टी की चीजें ढूंढनी है और सब कुछ सोना हो जाएगा। लेकिन इतना सारा मिट्टी का सामान कहां से लाऊंगा? उसने तय किया कि वह बाजार जाकर बहुत सारा मिट्टी का सामान खरीदेगा। और फिर उस मिट्टी के सामान को मूर्ति से रगड़ कर सोना बना लेगा। फिर उसने सोचा अब तो शाम हो गई है। रात होने वाली है। पहले खाना खा लेता हूं और फिर सो जाता हूं। विवेक खाना खाकर सो गया। अगली सुबह जब वह जागा तो उसने सोचा अभी तो शाम तक का समय है। पहले नाश्ता कर लूं फिर निकलूूंगा। खाना खाने के बाद उसे फिर नींद आने लगी। उसने सोचा अभी तो बहुत समय है। इतनी जल्दी किस बात की है? पहले थोड़ा आराम कर लेता हूं फिर बाजार जाऊंगा। यह सोचकर वह लेट गया और फिर से सो गया। जब वह जागा तो देखा सूरज डूबने वाला है और शाम होने को है।
वह तुरंत उठा और बाजार की ओर निकल गया। लेकिन जब वह आश्रम के बाहर ही पहुंचा था। तभी गुरु जी आ गए। गुरु जी ने शिष्य से वह मूर्ति वापस ले ली और बोले अब वक्त खत्म हो चुका है। शिष्य हाथ जोड़कर विनती करने लगा गुरुदेव कृपा करके मुझे थोड़ा और समय दे दीजिए। बस कुछ घंटे और गुरु जी ने शांत लहजे में कहा नहीं बेटा अब देर हो चुकी है तुम्हारे पास पूरा एक दिन था लेकिन तुमने उसे टालने में गवा दिया और यही तुम्हारी सबसे बड़ी गलती है अब मैं तुम्हें यह मूर्ति एक पल के लिए भी नहीं दूंगा यह तुम्हारे आलस्य की सजा है। जो व्यक्ति समय की कदर नहीं करता और हमेशा आलस करता है वह कभी सफल नहीं बन सकता विवेक कुछ बोल नहीं सका वह शर्मिंदा खड़ा रहा।
अब वह कुछ नहीं कर सकता था। उसने अपने आलस्य की वजह से अमीर बनने का सुनहरा अवसर गवा दिया था। उसने गुरु के चरणों में झुककर प्रतिज्ञा की। गुरुदेव आज से मैं अब कभी आलस नहीं करूंगा और समय का सही उपयोग करूंगा। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि आलस्य केवल एक बुरी आदत नहीं बल्कि हमारे जीवन के हर महत्वपूर्ण अवसर को खोने का कारण बन सकता है। विवेक के पास एक चमत्कारी मूर्ति थी जिससे वह अमीर बन सकता था। लेकिन उसने आलस किया और अमीर बनने का एक अच्छा मौका गवा दिया। अगर हम अपने जीवन में सिर्फ आलस करते रहेंगे और चीजों को टालते रहेंगे तो हम कभी सफल नहीं बन पाएंगे। अगर जीवन में सफलता हासिल करनी है तो आलस को छोड़ना होगा और चीजों को टालने के बजाय आज से ही अपने लक्ष्यों पर काम करना होगा। इसलिए आज से ही आलस को छोड़ो और अपने लक्ष्यों पर केंद्रित रहो।
6 https://youtu.be/SDgyy0FPJDw?si=WINhDKTjZv6msCkO
रोहन एक छोटे से शहर का रहने वाला एक साधारण लड़का था। उसके माता-पिता चाहते थे कि वह एक अच्छी नौकरी करे और परिवार की स्थिति को सुधार सके। लेकिन रोहन का सपना कुछ और था। वह एक बेहतरीन क्रिकेट खिलाड़ी बनना चाहता था। उसे क्रिकेट से प्यार था, लेकिन उसके पास ना तो महंगे जूते थे और ना ही अच्छे क्रिकेट के उपकरण। उसके दोस्त और रिश्तेदार कहते क्रिकेट तो बड़े लोगों का खेल है। तुमसे नहीं होगा। रोहन को इन बातों से फर्क नहीं पड़ता था। उसने खुद से कहा अगर मैं हर दिन थोड़ा-थोड़ा अभ्यास करूं और लगातार कोशिश करता रहूं तो एक दिन मैं जरूर सफल होऊंगा।
उसने समझ लिया था कि सफलता एक रात में नहीं मिलती। इसके लिए हर दिन छोटे-छोटे कदमों की जरूरत होती है। रोहन ने अपने अभ्यास की शुरुआत घर के पास के एक पुराने मैदान से की। उसके पास क्रिकेट बैट नहीं था इसलिए उसने लकड़ी के एक टुकड़े को बैट बनाया। वह हर सुबह सूरज निकलने से पहले मैदान में पहुंच जाता और गेंद को बार-बार हिट करने का अभ्यास करता। शुरुआत में वह सिर्फ 15 मिनट खेल पाया क्योंकि उसके हाथ जल्दी थक जाते थे लेकिन उसने हार नहीं मानी। अगले दिन उसने 20 मिनट खेला फिर 25 मिनट। धीरे-धीरे उसका स्टैमिना बढ़ने लगा।
कुछ हफ्तों बाद रोहन ने महसूस किया कि उसकी बैटिंग पहले से बेहतर हो रही है। अब वह ज्यादा देर तक खेल सकता था। उसके शॉट्स में ताकत आ गई थी। गांव के लोग अब उसकी मेहनत को देखकर उसकी तारीफ करने लगे थे। लेकिन असली चुनौती तब आई जब उसके स्कूल में क्रिकेट टूर्नामेंट का आयोजन हुआ। रोहन ने अपनी टीम में जगह बनाने के लिए ट्रायल दिया। कोच ने कहा तुम्हारी बैटिंग अच्छी है लेकिन तुम्हारी फिटनेस कमजोर है। रोहन निराश हुआ। लेकिन उसने खुद से कहा मैंने अब तक छोटे-छोटे कदमों से सुधार किया है। इस बार भी वैसा ही करूंगा। उसने रोज सुबह दौड़ना शुरू किया। पहले दिन वह सिर्फ 500 मीटर दौड़ पाया। लेकिन उसने हार नहीं मानी। हर दिन उसने थोड़ी-थोड़ी दूरी बढ़ाई। तीसरे दिन 1 कि.मी. 1 हफ्ते बाद 2 कि.मी. 1 महीने बाद 5 कि.मी. छोटे-छोटे सुधारों ने उसके शरीर को मजबूत बना दिया। अब वह बिना थके लंबे समय तक खेल सकता था।
रोहन ने टूर्नामेंट के लिए अपनी टीम में जगह बना ली। जब मैच का दिन आया तो उसकी टीम मुश्किल स्थिति में थी। आखिरी ओवर की आखिरी गेंद पर छह रन चाहिए थे। रोहन स्ट्राइक पर था। उसकी टांगे कांप रही थी लेकिन उसने खुद से कहा मैंने इसके लिए रोज तैयारी की है। मुझे खुद पर भरोसा है। उसने आखिरी गेंद पर लगाकर अपनी टीम को जीत दिलाई। पूरा मैदान उसके नाम की जय जयकार कर रहा था। अब रोहन ने अपनी फिटनेस और खेल पर और ज्यादा ध्यान देना शुरू किया। उसने एक तय दिनचर्या बनाई। सुबह 5:00 बजे दौड़ना। 7:00 बजे से 9:00 बजे तक नेट प्रैक्टिस। शाम को बैटिंग और फील्डिंग का अभ्यास। कुछ ही महीनों में उसने डिस्ट्रिक्ट लेवल की टीम में जगह बना ली। फिर स्टेट लेवल पर भी खेला।
कुछ सालों बाद उसने भारतीय अंतरराष्ट्रीय टीम में जगह बना ली। अब वही लोग जो उस पर हंसते थे उसके साथ तस्वीरें खिंचवाना चाहते थे। एक दिन भारतीय क्रिकेट टीम के लिए एक अहम मैच था। टीम मुश्किल स्थिति में थी। आठ रन चाहिए थे और सिर्फ दो गेंदे बची थी। कोच ने रोहन पर भरोसा किया। रोहन ने खुद से कहा, "मैंने इसके लिए सालों तक तैयारी की है। मैं इसे कर सकता हूं।" पहली गेंद पर रोहन ने दो रन लिए। अब आखिरी गेंद बची थी। उसे डर लग रहा था।
लेकिन उसने आखिरी गेंद पर सिक्स मारकर टीम को जीत दिलाई। वह मैन ऑफ द मैच बना। उसकी जीत के पीछे कोई चमत्कार नहीं था। यह उसकी हर दिन की छोटी-छोटी कोशिशों और स्थिरता का परिणाम था। इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि स्थिरता ही सफलता की असली कुंजी है। बड़े लक्ष्य एक रात में पूरे नहीं होते। लेकिन अगर हम हर दिन थोड़ा-थोड़ा सुधार करें तो असंभव भी संभव बन सकता है। लोग शुरुआत में मजाक उड़ाएंगे, शक करेंगे। लेकिन जब हमारी मेहनत रंग लाएगी तो वही लोग हमारी तारीफ करेंगे। छोटे कदम ही बड़े बदलाव लाते हैं। इसीलिए तुरंत बड़े परिणाम की उम्मीद करने के बजाय लगातार प्रयास करते रहना चाहिए।
7 https://youtu.be/d2pUuP5RdVk?si=Jg2iX-BQSZBu-x5i
एक छोटे से शहर में एक लड़का रहता था। नाम था राहुल। वह गर्मी की छुट्टियों में अक्सर अपने नाना जी के घर जाया करता था। नाना जी एक बहुत ही शांत, समझदार और प्रकृति से प्रेम करने वाले बुजुर्ग आदमी थे। उनके घर के पास एक सुंदर सा बगीचा था। जहां वो हर दिन पौधों की देखभाल करते थे। एक दिन राहुल ने नाना जी से पूछा नाना जी मैं बड़ा होकर एक सफल इंसान बनना चाहता हूं। क्या आप मुझे बता सकते हैं कि सफल कैसे बना जाता है? नाना जी मुस्कुराए और बोले इसका जवाब मैं तुम्हें एक अनुभव से दूंगा। चलो मेरे साथ। वे दोनों नर्सरी गए और वहां से दो पौधे लेकर लौटे। घर आकर नाना जी ने एक पौधे को एक गमले में लगाया और घर के अंदर रख दिया। दूसरे पौधे को घर के पीछे की खुली जमीन में लगा दिया।
फिर नाना जी ने राहुल से पूछा, बेटा तुम्हें क्या लगता है कि इन दोनों में से कौन सा पौधा भविष्य में ज्यादा अच्छा और बड़ा बनेगा? राहुल थोड़ी देर सोचता रहा और फिर बोला नाना जी जो पौधा घर के अंदर है वही ज्यादा अच्छा बढ़ेगा क्योंकि वह सुरक्षित है। बाहर वाले पौधे को तो धूप आंधी बारिश और जानवरों जैसी बहुत सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। नाना जी मुस्कुराए और बोले ठीक है बेटा तो चलो देखेंगे कि आगे क्या होता है। छुट्टियां खत्म होने के बाद राहुल अपने घर लौट गया। 5 साल बाद राहुल फिर गर्मी की छुट्टियों में नाना जी के पास आया। राहुल ने कहा नाना जी पिछली बार मैंने आपसे सफल कैसे बना जाता है? यह पूछा था लेकिन आपने जवाब नहीं दिया। इस बार आपको मुझे जरूर बताना होगा। नाना जी मुस्कुराते हुए बोले चलो तुम्हें तुम्हारे सवाल का जवाब देते हैं।
लेकिन पहले उन पौधों को देखें जो हमने साथ लगाए थे। वे पहले उस पौधे के पास गए जो गमले में और घर के अंदर था। वह पौधा अब थोड़ा बड़ा होकर एक छोटा सा पेड़ बन चुका था। फिर वे बाहर गए जहां दूसरा पौधा लगाया गया था। वहां एक विशाल वृक्ष खड़ा था जिसकी शाखाएं दूर-दूर तक फैली थी और जो राहगीरों को छाया दे रहा था। नाना जी ने राहुल से पूछा। अब बताओ बेटा इनमें से कौन सा पौधा ज्यादा बड़ा और सफल बना और क्यों? राहुल बोला नाना जी जो पौधा बाहर था वही ज्यादा बड़ा और सफल बना। लेकिन यह कैसे हुआ? उसने तो इतने खतरे झेले होंगे। धूप, बारिश, आंधी फिर भी यह इतना बड़ा हो गया
नाना जी ने मुस्कुराते हुए कहा, बिल्कुल बेटा बाहर वाले पौधे को बहुत सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। लेकिन इन मुश्किलों ने ही उसकी जड़ों को मजबूत बना दिया। उसे खुली जमीन मिली जहां उसने अपनी जड़ों को जितना चाहे फैला लिया। बारिश और तूफानों ने उसकी परीक्षा ली और उसने हर बार उन्हें पार किया। इसलिए आज वह इतना मजबूत है कि छोटी-मोटी आंधियां उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। जबकि जो पौधा हमने गमले में और घर के अंदर रखा उसे किसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा। वह सुरक्षित तो रहा लेकिन उसकी जड़े गमले में सीमित रही। इसलिए वह ना तो बड़ा हो पाया और ना ही मजबूत। फिर नाना जी ने राहुल की आंखों में देखते हुए कहा, बेटा यह याद रखना जब तक तुम जीवन में संघर्ष नहीं करोगे, कठिनाइयों का सामना नहीं करोगे। तब तक तुम सफल नहीं बन सकते।
अगर तुम सिर्फ आराम और सुरक्षा की तलाश में रहोगे तो तुम्हारी तरक्की रुक जाएगी। लेकिन अगर तुम संघर्ष करने को तैयार हो तो कोई भी लक्ष्य तुम्हारे लिए असंभव नहीं रहेगा। इसीलिए परेशानियों को दुश्मन मत समझो बल्कि उन्हें अपने जीवन की सीढ़ियां मानो जो तुम्हें सफलता की ऊंचाई तक ले जाएंगी। राहुल गहरी सांस लेकर उस बड़े पेड़ की ओर देखने लगा। नाना जी के शब्द उसके मन में गूंजने लगे। जिन रुकावटों को हम अपनी जिंदगी के दुश्मन समझते हैं, वही रुकावटें हमें और मजबूत बनाती हैं और हमें सच्ची सफलता की ओर ले जा ती है।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमारी जिंदगी में चुनौतियां और कठिनाइयां अक्सर आती हैं। कभी हालात हमारे खिलाफ होते हैं तो कभी रास्ता धुंधला दिखता है। लेकिन यही चुनौतियां हमें निखारती हैं। हमारे अंदर छिपी ताकत को उजागर करती है। जैसे बाहर लगे पौधे ने आंधियों, बारिश और धूप का सामना करके खुद को एक विशाल और मजबूत वृक्ष में बदल लिया। उसी तरह जब हम मुश्किलों से डरने के बजाय उनका सामना करते हैं, तो हम भी अंदर से उतने ही मजबूत बनते हैं। आरामदायक जिंदगी भले ही सुरक्षित लगे, लेकिन वह हमारी असली क्षमता को उभरने नहीं देती। जो लोग कठिनाइयों से भागते नहीं बल्कि उन्हें स्वीकार करते हैं वही एक दिन सफलता को हासिल करते हैं। क्योंकि सफलता केवल सुविधाओं में नहीं बल्कि संघर्ष के रास्तों पर चलने से मिलती है।
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