motional
1) https://youtu.be/G1Q93zUgYGE?si=dmu5zQgivrQaB4oo
दोस्तों गांव की सुबह हमेशा एक जैसी होती थी। सूरज की पहली किरण जैसे ही मिट्टी की झोपड़ियों पर पड़ती, मुर्गे बांग देने लगते और खेतों की ओर जाते लोगों के कदमों की से पूरा गांव जाग उठता। ऐसे ही एक छोटे से गांव में अरव का जन्म हुआ था। अरफ का जन्म एक बेहद साधारण परिवार में हुआ। घर मिट्टी का था। ऊपर खपैल की छत और चारों ओर टूटी दीवारें। बरसात के दिनों में छत से पानी टपकता और पूरा परिवार एक कोने में सिमटकर रात गुजारता। पिता दिन रात दूसरों के खेतों में मजदूरी करते। सूरज निकलने से पहले ही खेतों की ओर निकल पड़ते और देर शाम तक मिट्टी में पसीना बहाते रहते। उनके हाथों पर पड़े छाले और दरारें उनकी मेहनत का सबूत थी। मां भी खेतों में मजदूरी करती। कभी खरपतवार निकालना, कभी धान रोपना, कभी गेहूं की कटाई। अगर खेत में काम ना मिलता तो घर पर पशुओं की देखभाल, गोबर से उपले बनाना और छोटी-मोटी सिलाई करके समय काटती। गरीबी उनके जीवन की पहचान थी। अक्सर घर में खाना पर्याप्त नहीं होता। कई बार ऐसा होता कि मां और पिता अपने हिस्से की रोटी छोड़ देते ताकि अरव भूखा ना सोए। लेकिन इस तंगी और संघर्ष के बीच भी अरव का बचपन साधारण नहीं था। उसके भीतर कुछ अलग था। एक चमक, एक सपना। गांव में कभी-कभी पुलिस अधिकारी आते। वे बुलेट मोटरसाइकिल पर सवार होते, चमचमाती वर्दी पहने, कंधे पर सितारे चमकते। जैसे ही उनकी बुलेट गांव की गलियों में गड़गड़ाहट करती, बच्चे दौड़कर देखने पहुंच जाते। अरब भी हमेशा वहां मौजूद होता। उसकी आंखें उस वर्दी पर टिक जाती। उसे लगता जैसे पूरी दुनिया का सबसे बड़ा सामान वही है। वह मन ही मन सोचता एक दिन मैं भी ऐसी ही वर्दी पहनूंगा। लोग मुझे भी गर्व से देखेंगे। घर आकर वह अपनी मां से कहता मां देखना एक दिन मैं भी पुलिस अधिकारी बनूंगा। मां उसकी मासूमियत पर मुस्कुरा देती लेकिन दिल में चिंता भी होती। सोचती इतनी गरीबी में यह बच्चा इतना बड़ा सपना कैसे पूरा करेगा? लेकिन उन्होंने कभी उसे रोका नहीं। हमेशा यही कहा बेटा अगर मन में ठान लोगे तो कुछ भी नामुमकिन नहीं। पिता भी उसे समझाते सपनों के लिए मेहनत करनी पड़ती है। बेटा पढ़ाई में ध्यान लगाओ तभी बड़ा बन पाओगे। गांव में एक ही सरकारी स्कूल था। वहां की दीवारें टूटी हुई। बेंच आधे अधूरे और गर्मियों में पंखे भी कभी-कभी चलते। लेकिन अरफ के लिए वही स्कूल किसी मंदिर से कम नहीं था। वह पढ़ाई में हमेशा अच्छा रहा। शिक्षक अक्सर कहते यह लड़का मेहनती है। आगे जरूर नाम कमाएगा। लेकिन पढ़ाई आसान नहीं थी। किताबें, ड्रेस, कॉपी सब एक बोझ था। पिता दिनरा मजदूरी करके जो भी कमाते उसमें से थोड़ा बहुत जोड़कर उसकी पढ़ाई पर खर्च करते। कई बार कर्ज लेना पड़ता। मां ने भी अपने हिस्से की चूड़ियां बेच दी थी ताकि बेटे की पढ़ाई ना रुके। अरव भी मेहनत करता। उसे समझ था कि उसके माता-पिता कितना त्याग कर रहे हैं। हर साल उसे स्कॉलरशिप मिलती जिससे थोड़ी राहत मिल जाती। यही स्कॉलरशिप उसकी पढ़ाई का सहारा थी। अरव जानता था कि उसका सपना बड़ा है। पुलिस अधिकारी बनना आसान नहीं। लेकिन उसके लिए यह सपना उसकी पूरी जिंदगी का मकसद था। रात-रात भर वह पढ़ता। गांव में अक्सर बिजली चली जाती थी। तब वह लालटेन की रोशनी में बैठकर किताबें खोल लेता। मां कहती बेटा आंख खराब हो जाएगी। तो वह हंसकर कहता मां आंख खराब हो जाए तो भी चलेगा पर सपना नहीं टूटना चाहिए। उसकी लगन देखकर गांव वाले भी कहते यह लड़का कुछ बनकर ही दिखाएगा। धीरे-धीरे समय बीतता गया। अरव ने 12वीं तक की पढ़ाई अच्छे अंकों से पूरी की। माता-पिता की आंखों में उम्मीद थी कि बेटा अब और आगे बढ़ेगा। किसी अच्छे कॉलेज में जाएगा और अपने सपने की ओर कदम बढ़ाएगा। लेकिन 12वीं तक मिल रही स्कॉलरशिप अब खत्म हो चुकी थी। आगे की पढ़ाई के लिए पैसों की जरूरत थी। अब हालात और बिगड़ गए। मां की तबीयत खराब रहने लगी थी। अक्सर उन्हें खांसी, बुखार और कमजोरी रहती। इलाज के लिए दवाइयां चाहिए थी। पिता पहले से ही टूट चुके थे। मजदूरी करके जो पैसा लाते उसमें घर का खर्च मुश्किल से चलता। ऐसे में अरव को पढ़ाई रोकनी पड़ी। अब उसके सामने सबसे बड़ा सवाल था घर चलाना और मां का इलाज करना। अरव ने पढ़ाई छोड़कर मजदूरी करना शुरू कर दिया। कभी खेतों में धूप बारिश झेलते हुए काम करता। कभी गांव में छोटे-मोटे काम पकड़ लेता। दिन भर पसीना बहाने के बाद रात को वह थका हुआ बिस्तर पर गिर पड़ता। किताबें कोने में पड़ी रह जाती। अब उसकी आंखों में वह चमक नहीं थी। जब भी कोई पुलिस अधिकारी गांव में आता अरब दूर से ही देख लेता। उसके मन में कसक उठती लेकिन वह पास नहीं जाता। सोचता यह सब मेरे लिए नहीं है। मां की बीमारी और घर की हालत देखकर अब पुलिस अधिकारी बनने का सपना बेकार लगता है। रात को छत पर लेटकर अक्सर आसमान की ओर देखता और मन ही मन कहता। शायद मेरे लिए सपने देखने की इजाजत ही नहीं है। मेरी जिंदगी तो बस मजदूरी और जिम्मेदारियों के लिए बनी है। धीरे-धीरे अरब ने अपने सपने को दिल से निकालना शुरू कर दिया। अब उसके लिए सबसे बड़ा लक्ष्य था मां का इलाज, घर का खर्च और पिता का सहारा। यहां तक आते-आते अरब सिर्फ 18 साल का ही था। लेकिन हालात ने उसे बहुत जल्दी बड़ा बना दिया था। वह जानता था कि उसके माता-पिता ने उसके लिए कितनी कुर्बानियां दी। लेकिन अब उसके अपने सपने उसकी आंखों से धुंधले होते जा रहे थे। उसके लिए अब जीवन का सबसे बड़ा सच यही था। गरीबी में सपनों का कोई मोल नहीं होता। एक दिन की बात है दिन ढलने को था। आसमान लालिमा से भर गया था और खेतों से लौटते लोग अपनेप घर की ओर जा रहे थे। अरव उस दिन सुबह से ही जंगल की ओर गया था। उसका इरादा लकड़ी काट कर लाने का था ताकि उन्हें बेचकर घर का खर्च पूरा किया जा सके। जंगल गांव से कुछ ही दूरी पर था। वहां घने पेड़-पौधे और पंछियों की आवाजें हमेशा वातावरण को अलग बना देती। अरव ने कुल्हाड़ी उठाई और लकड़ियां काटने लगा। धूप तेज थी, पसीना बह रहा था। लेकिन उसके दिमाग में सिर्फ एक बात थी। लकड़ियां बेचकर पैसे मिलेंगे तो मां की दवा आ जाएगी। काफी देर तक मेहनत करने के बाद उसने लकड़ियों का एक गट्ठर बांध लिया। थकान से बदन टूट रहा था, लेकिन संतोष था कि कम से कम घर के लिए कुछ पैसे आएंगे। जैसे ही वह गट्ठर उठाकर गांव की ओर लौट रहा था। तभी जंगल के किनारे उसने एक वृद्ध बाबा को बैठे देखा। बाबा का चेहरा शांत था। दाढ़ी सफेद और आंखों में अजीब सी गहराई। बाबा ने धीमी आवाज में पुकारा बेटा जरा सुनो। अरव रुक गया। बाबा ने कहा क्या तुम मुझे कुछ लकड़ियां दोगे? मुझे रात के लिए चूल्हा जलाना है। पहले तो अरव ने सोचा मेरे पास जितनी लकड़ी है सब घर के काम आएगी। अगर दे दूं तो मेरे हिस्से की कम हो जाएगी। लेकिन अगले ही पल उसने गट्ठर खोला और कुछ लकड़ियां निकालकर बाबा को दे दी। लीजिए बाबा आप रख लीजिए। मैं फिर और काट लूंगा। बाबा मुस्कुराए और बोले धन्यवाद बेटा। लेकिन क्यों? तुम्हें भी इन लकड़ियों की जरूरत होगी। अरव ने थकान भरी आवाज में कहा कोई बात नहीं बाबा मैं और काट लूंगा। मेरे घर की आदत है कम में भी गुजारा करना। बाबा उसकी ओर गहराई से देखते रहे। बाबा ने कहा बेटा बैठो जरा। बताओ तुम कौन हो? किस गांव से हो? अरब गट्ठर जमीन पर रखकर उनके पास बैठ गया। मैं पास के गांव का हूं बाबा। वहीं रहता हूं। अभी तो मजदूरी करता हूं। बाबा ने आश्चर्य से देखा, मजदूरी? लेकिन देखने में तो पढ़े लिखे लगते हो। पढ़ाई क्यों छोड़ दी? यह सवाल अरब के दिल में जैसे चुभ गया। उसने गहरी सांस ली और बोला, हां बाबा, मैंने 12वीं तक पढ़ाई की है, लेकिन एक साल से पढ़ाई छोड़ दी। घर के हालात खराब हैं। मां बीमार रहती हैं। पैसे नहीं है। इसलिए मजदूरी करने लगा। बाबा ने धीरे-धीरे सिर हिलाया और फिर पूछा, बेटा, क्या तुमने कभी सोचा नहीं कि जिंदगी में क्या करना है? तुम्हारा सपना क्या था? अरफ की आंखों में नमी आ गई। वह कुछ पल चुप रहा। फिर बोला, बचपन से मेरा सपना था कि मैं पुलिस अधिकारी बनूं। जब गांव में कोई अधिकारी बुलेट पर आता था तो मैं देखता था और सोचता था कि एक दिन मैं भी ऐसी वर्दी पहनूंगा। पर अब सब बेकार लगता है बाबा। गरीबी और हालात ने मुझे तोड़ दिया। लगता है यह सपना इस जन्म में पूरा नहीं होगा। बाबा उसकी बात सुनकर गंभीर हो गए। उन्होंने कहा बेटा ऐसा क्यों सोचते हो? सपने सिर्फ अमीरों के लिए नहीं होते। सपने तो हर किसी को मिलते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि कोई सपनों का पीछा करता है और कोई हालात से हारकर उन्हें छोड़ देता है। अरव चुपचाप सुनता रहा। बाबा ने आगे कहा बेटा जिंदगी सिर्फ एक बार मिलती है। अगर इस जीवन में ही तुमने अपने सपनों का सौदा कर दिया तो अगली बार कहां से करोगे? गरीबी, मुसीबत, बीमारियां यह सब रास्ते की रुकावटें हैं। हमें इन्हें पार करना चाहिए ना कि इनके सामने हार मान लेनी चाहिए। अरव की आंखों में आंसू आ गए। उसने धीमी आवाज में कहा, पर बाबा, मैं क्या करूं? घर की हालत खराब है। मां बीमार है। पैसे नहीं है। पढ़ाई छोड़नी पड़ी। मेरे पास कोई रास्ता नहीं है। बाबा मुस्कुराए और बोले यही तुम्हारी गलती है बेटा। तुम हालात को बहाना बना रहे हो। खुद पर तरस खा रहे हो। अगर सच में अपने सपने पूरे करना चाहते हो तो खुद को मजबूत बनाओ। किसी और से उम्मीद मत रखो। मेहनत करो। छोटा-मोटा काम करो। कुछ पैसे बचाओ और पढ़ाई जारी रखो। यही असली रास्ता है। सपनों का सौदा मत करो। अरब स्तब्ध रह गया। उसे लगा जैसे बाबा ने उसकी आत्मा को झकझोर दिया हो। वह बोला बाबा आपने मेरी आंखें खोल दी। जो आग मेरे अंदर बुझ रही थी आपने उसे फिर से जला दिया। अब मैं अपने सपने को कभी नहीं छोडूंगा। उसने बाबा के पैर छुए। बाबा ने आशीर्वाद दिया और कहा बस बेटा याद रखना कभी भी अपने सपनों का सौदा मत करना चाहे हालात जैसे भी हो। अरव ने हाथ जोड़कर अलविदा कहा। उसने लकड़ियों का गट्ठर उठाया और गांव की ओर चल पड़ा। बाबा से मुलाकात के बाद अरव जैसे बदल चुका था। उस रात उसने नींद में भी बाबा की बातें सुनी। बेटा सपनों का सौदा मत करना। हालात चाहे जैसे हो उनका सामना करना। वह खुद से वादा कर चुका था कि अब हालात के सामने झुकेगा नहीं। अगली सुबह अरव जल्दी उठा। मां की हालत अब भी कमजोर थी लेकिन दवाइयां लानी जरूरी थी। पिताजी रोज की तरह खेत की ओर चले गए। अरव ने सोचा कि आज उसे गांव के किसी खेत में मजदूरी मिल जाए तो अच्छा होगा। गांव में सरपंच के खेत सबसे बड़े थे। वहां हमेशा मजदूरों की जरूरत पड़ती थी। अरव भी वहीं जा पहुंचा। धूप तेज थी। खेत में काम करने वाले पसीने से तर-बतर थे। अरव ने भी बिना देर किए काम पकड़ लिया। झुकझुक कर घास निकालना, मिट्टी पलटना सब मेहनत भरा काम था। शाम तक जब सूरज ढल गया तब सरपंच खुद खेत देखने आए। उनका ध्यान अरव पर गया। सरपंच ने पास आकर पूछा बेटा तुम्हारा नाम क्या है? अरव ने सिर झुकाकर कहा जी अरव सरपंच ने गौर से देखा पढ़े लिखे लगते हो फिर खेतों में मजदूरी क्यों कर रहे हो यह सवाल अरब के दिल को छू गया उसने धीमी आवाज में कहा साहब घर की हालत बहुत खराब है मां बीमार है पैसों की कमी है इसलिए पढ़ाई छोड़नी पड़ी अब मजदूरी ही सहारा है। सरपंच ने हैरानी से कहा मतलब तुम पढ़े लिखे हो। अरव बोला जी मैंने गांव के स्कूल से 12वीं तक पढ़ाई की है। सरपंच ने कुछ देर सोचा फिर मुस्कुरा कर बोले तो बेटा खेतों में मजदूरी क्यों करते हो? मेरे पास एक काम है। मेरा मुनीम कुछ महीनों के लिए बाहर गया है। हिसाब किताब रखने वाला चाहिए। अगर तुम चाहो तो यह काम कर सकते हो। अरव की आंखें चमक उठी। जी साहब मैं कर लूंगा। बस एक मौका दीजिए। सरपंच ने कहा ठीक है। कल से मेरे पास आना। सुबह से शाम तक काम करना होगा। मेहनत से करोगे तो मजदूरी से ज्यादा पैसा मिलेगा। अरव ने खुशी-खुशी हामी भर दी। उस रात उसने पिता को बताया। पिता की आंखों में चमक आ गई। उन्होंने कहा बेटा यह तो बहुत अच्छा हुआ। मेहनत से काम करना। ईमानदारी सबसे बड़ी चीज है। मां भी मुस्कुराई। काफी दिनों बाद उनके चेहरे पर सुकून झलका। अब अरफ का दिन सुबह से शुरू होता। वह सरपंच के पास जाकर खातों का हिसाब लिखता। लेनदेन दर्ज करता और अनाज का ब्यौरा रखता। शुरू में गलती हुई पर जल्द ही उसने सब सीख लिया। पहली बार जब सरपंच ने महीने का मेहनताना दिया। अरव की आंखें भर आई। उसने सोचा आज मुझे मजदूरी से ज्यादा पैसे मिले हैं। यही शुरुआत है। उसने सबसे पहले कुछ पैसे मां के इलाज में लगाए। फिर शहर से किताबें खरीदी। हाथ में किताबें लेकर उसे लगा जैसे फिर से सपने जाग उठे हो। दिन भर सरपंच के यहां काम शाम को घर लौटकर पढ़ाई यह उसकी दिनचर्या बन गई। पिता अक्सर कहते बेटा थक जाते हो इतने काम और पढ़ाई से। अरव मुस्कुरा देता नहीं बाबूजी अब तो थकान भी मीठी लगती है। बाबा ने कहा था हालात से भागना मत। अब मैं भागूंगा नहीं। गांव वाले भी अब उसे अलग नजर से देखने लगे थे। सब कहते अरफ बदल गया है। पहले मायूस रहता था। अब आंखों में चमक है। 6 महीने इसी तरह बीत गए। एक दिन अखबार में खबर आई। पुलिस कांस्टेबल भर्ती के लिए आवेदन शुरू। यह खबर पढ़कर अरव का दिल धड़क उठा। उसने तुरंत फॉर्म भरा। पिता से कहा, बाबूजी यही मौका है। अगर मैं पास हो गया तो हमारी जिंदगी बदल जाएगी। पिता ने उसका कंधा थपथपाया। जाओ बेटा पूरी मेहनत से तैयारी करो। हम सब तुम्हारे साथ हैं। अब अरफ की दिनचर्या और भी सख्त हो गई। सुबह से शाम तक सरपंच के यहां काम करता। रात को देर तक पढ़ाई। कभी-कभी तो दीपक की लौ बुझने तक बैठा रहता। सरपंच भी उसकी मेहनत देखकर खुश हुए। एक दिन उन्होंने कहा, बेटा अरव, मैंने तुम्हें देखा है। तू वाकई कुछ बनने लायक है। दिल लगाकर मेहनत कर तेरा सपना जरूर पूरा होगा। यह सुनकर अरव का आत्मविश्वास और बढ़ गया। कई महीनों की तैयारी के बाद आखिरकार एग्जाम का दिन आया। सुबह-सुबह मां ने उसके माथे पर हाथ रखा और बोली, बेटा भगवान तुम्हारा भला करें। मन लगाकर लिखना। अरव ने परीक्षा दी। बाहर निकलते समय उसके चेहरे पर आत्मविश्वास था। उसने खुद से कहा, मैंने अपना सब कुछ लगाया है। अब नतीजा भगवान पर छोड़ता हूं। 2 महीने तक इंतजार रहा। हर दिन अखबार देखता हर रोज सोचा। क्या मैं पास हुआ हूं? आखिरकार रिजल्ट का दिन आया। अखबार में उसका नाम देखकर अरव की आंखें भर आई। मैं पास हो गया। वह दौड़कर घर पहुंचा। पिता खेत से लौट रहे थे। मां आंगन में बैठी थी। अरव ने खुशी से चिल्लाकर कहा। मां बाबूजी मेरा नाम आया है। मैंने एग्जाम पास कर लिया। मां की आंखों से आंसू बह निकले। पिता ने गर्व से उसे गले लगा लिया। बेटा तूने सच कर दिखाया। सरपंच को खबर मिली तो वे भी खुश हुए। उन्होंने पूरे गांव के सामने कहा, यह हमारा अरब है जिसने मेहनत और लगन से कर दिखाया। हम सबको उस पर गर्व है। गांव वाले तालियां बजाने लगे। बच्चों ने कहा, देखो अरव भैया पास हो गए। अब पुलिस वाले बनेंगे। उस दिन अरव को लगा कि उसकी मेहनत रंग लाई है। लेकिन अभी सफर बाकी था। अब उसे शारीरिक परीक्षा देनी थी। अरव ने गरीबी और हालात के बावजूद हार नहीं मानी। सरपंच का सहारा मां-बाप की दुआ और अपनी मेहनत से वह पहले पड़ाव तक पहुंच चुका था। अब उसका अगला लक्ष्य था शारीरिक परीक्षा पास करके वर्दी पहनना। लेकिन खुशी के उस पल के साथ ही उसे याद आया कि सफर अभी पूरा नहीं हुआ है। उसने खुद से कहा अभी असली कसौटी बाकी है। अब फिजिकल टेस्ट पास करना होगा। वर्दी तक पहुंचने का रास्ता यहीं से होकर जाता है। गांव में कोई बड़ा स्टेडियम या जिम तो था नहीं। बस पंचायत भवन के पास एक छोटा सा मैदान था। जहां बच्चे दिन में खेलते थे और शाम को चरवाहे अपनी भैंसें बांध देते थे। अरव ने वहीं से अपनी तैयारी शुरू की। सुबह सूरज निकलने से पहले ही वह उठ जाता। जूते बांधकर मैदान में दौड़ लगाता। पहले पहले कुछ ही चक्कर में सांस फूल जाती लेकिन वह रुकता नहीं। गांव के लोग मजाक भी उड़ाते अरे यह तो गांव का लड़का है। यह क्या पुलिस बनेगा लेकिन अरव चुपचाप सब सहता। उसके कानों में बस बाबा की आवाज गूंजती। सपनों का सौदा मत करना। धीरे-धीरे उसके कदम तेज हो गए। सांसे लंबी हो गई। वह मैदान का चक्कर लगाते लगाते कई किलोमीटर दौड़ लेता। एक दिन सरपंच खुद उसे दौड़ते देख रहे थे। उन्होंने पास आकर कहा, अरब बेटा यह सब देखकर मुझे गर्व होता है। पूरे गांव को तेरे जज्बे से सीख लेनी चाहिए। बता खाने पीने की कोई दिक्कत तो नहीं? अरव ने मुस्कुराकर कहा, नहीं साहब आपकी दुआ है। बस मेहनत कर रहा हूं। सरपंच ने फिर कहा देखो बेटा शरीर को मजबूत बनाने के लिए अच्छा खाना भी जरूरी है। तू मेरी तरफ से रोज दूध और फल ले जाया कर। तेरी मेहनत का फल पूरा गांव देखना चाहता है। अरब भावुक हो गया। साहब आपने तो पिता का फर्ज निभा दिया। मैं जीवन भर आपका ऋणी रहूंगा। अब उसकी दिनचर्या और कठिन हो गई। सुबह दौड़, दिन भर सरपंच के यहां काम और रात को थोड़ा बहुत लिखित की दोहराई। वह रस्सी कूदता, पुश अप्स करता और अक्सर नदी के किनारे जाकर तैरने की प्रैक्टिस करता। गांव के बच्चे उसे देखकर कहते, अरब भैया तो सच्चा पुलिस वाला बनेंगे। पिता खेत से लौटकर उसे पसीने में भीगा देखते और गर्व से मुस्कुराते। मां भी हर सुबह उसके लिए गुड़ और दूध रख देती। कई महीनों की तैयारी के बाद आखिर वह दिन आया। जिला मुख्यालय में मैदान पर हजारों उम्मीदवार इकट्ठा हुए थे। सबकी आंखों में एक ही सपना वर्दी पहनना। अरव का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। लेकिन भीतर से आवाज आ रही थी। तू तैयार है। मेहंत रंग लाएगी। पहले दौड़ का टेस्ट हुआ। सीटी बजते ही सब भागे। अरव ने शुरू से तेज रफ्तार नहीं पकड़ी बल्कि अपनी लय बनाए रखी। आखिरी राउंड में उसने पूरी ताकत झोंक दी और मंजिल पार कर गया। फिर लंबी कूद, ऊंची कूद, पुश अप्स हर टेस्ट में उसने अपनी तैयारी का दम दिखाया। शाम तक नतीजा आया। अरब पास उस पल उसकी आंखों से आंसू बह निकले। वह जमीन पर बैठकर भगवान का नाम लेने लगा। कुछ ही दिनों बाद पत्र आया। आपका चयन पुलिस कांस्टेबल के पद पर हुआ है। एक साल की ट्रेनिंग के लिए बुलाया जाता है। घर में खुशियों का माहौल था। पिता ने कहा बेटा तेरी मेहनत रंग लाई। अब जा और गांव का नाम रोशन कर। मां ने रोते हुए कहा। बेटा तूने अपना और हमारा सपना पूरा कर दिखाया। ट्रेनिंग सेंटर पर अरव ने एक नई दुनिया देखी। कठिन ड्रिल, हथियारों की ट्रेनिंग, अनुशासन सब कुछ बहुत मुश्किल था। लेकिन अरव ने कभी हार नहीं मानी। हर बार जब थकान होती, उसे बाबा की बातें याद आती। हालात से मत हारो। सपनों का सौदा मत करो। एक साल बाद जब उसने आखिरी परेड दी और वर्दी पहनी। तो उसे लगा जैसे सारी मेहनत सफल हो गई। ट्रेनिंग पूरी होने के बाद अरव पहली बार वर्दी पहनकर गांव लौटा। गांव के बच्चे तालियां बजाते दौड़े। बूढ़े लोग आशीर्वाद देने लगे। सरपंच ने पूरे गांव के सामने कहा, "देखो, यही है हमारा अरब। जिसने गरीबी से लड़कर यह मुकाम हासिल किया। हमें इस पर गर्व है। पिता गर्व से सिर ऊंचा कर खड़े थे। मां की आंखों से आंसू बह रहे थे, लेकिन चेहरे पर मुस्कान थी। उन्होंने अरव को गले लगाते हुए कहा, बेटा तूने सपना पूरा कर दिखाया। अरव बोला, नहीं मां, यह सिर्फ मेरा सपना नहीं था। यह आपका और बाबूजी का सपना भी था और यह सब एक बाबा की वजह से है। उस रात अरव को नींद नहीं आई। उसने सोचा जिन बाबा ने मुझे राह दिखाई थी, मुझे उन्हें धन्यवाद देना चाहिए। अगली सुबह वह वही जंगल के किनारे पहुंचा जहां उसने पहली बार बाबा को देखा था। वह घंटों खोजता रहा लेकिन बाबा कहीं नहीं मिले। वह बैठ गया और पेड़ की ओर देखते हुए कहा बाबा आप जहां भी हैं सुन रहे होंगे। आपने ही मुझे सिखाया था कि सपनों का सौदा मत करो। आज अगर मैं वर्दी में हूं तो सिर्फ आपकी वजह से हूं। हवा चली, पेड़ों की पत्तियां सरसराई जैसे जंगल खुद उसे आशीर्वाद दे रहा हो। अरव ने मन ही मन कहा शायद बाबा कोई साधारण इंसान नहीं थे। शायद वे खुद भगवान ने भेजे थे ताकि मुझे सही रास्ता दिखा सके। चाहे वे मिले या ना मिले पर उन्होंने मुझे जीवन का असली रास्ता दिखाया। अब मैं किसी भी गरीब बच्चे के सपने को टूटने नहीं दूंगा। उस दिन अरव ने कसम खाई कि वर्दी पहनकर वह सिर्फ ड्यूटी नहीं करेगा बल्कि गांव के हर उस बच्चे के लिए प्रेरणा बनेगा जो हालात से हार जाता है। गरीब किसान का बेटा अरव जिसने कभी खेतों में मजदूरी की थी आज पुलिस की वर्दी में था। उसकी कहानी हर उस इंसान की कहानी थी जिसने हालात से लड़कर सपनों को सच किया। और उसकी आत्मा में हमेशा गूंजती रही बाबा की सीख। सपनों का सौदा मत करो। जिंदगी सिर्फ एक बार मिलती है। दोस्तों, यह जिंदगी हमें सिर्फ एक बार मिलती है। इसे बस यूं ही जीने के लिए मत गवाओ कि पैदा हुए, पढ़ाई की, शादी की, बच्चे पैदा किए और फिर एक दिन चुपचाप मर गए। ऐसी जिंदगी तो हर कोई जी लेता है। असली जिंदगी वही है जो अपने सपनों के लिए जिया जाए। अपने दिल की आवाज सुनी जाए। सपने पूरे करने का मतलब सिर्फ अपनी खुशी नहीं होता। बल्कि अपने परिवार को गरीबी और कठिनाइयों से बाहर निकालना भी होता है। जब आप अपने सपनों को सच करते हो तो आपकी मेहनत से आपका परिवार भी गर्व से जीता है। इसलिए दोस्तों मैं बस यही कहना चाहूंगा अपने सपनों का सौदा मत करो। मेहनत करो जियो अपने लिए और अपने सपनों को पूरा करो। यही जिंदगी की असली खूबसूरती है। दोस्तों, अगर आपको यह कहानी और इसकी सीख दिल को छू गई हो, तो वीडियो को लाइक करना मत भूलना और इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने के लिए शेयर जरूर करना। और हां, सबसे जरूरी कमेंट में अभी लिखो और वादा करो कि तुम अपनी जिंदगी अपने सपनों के लिए जिओगे। चाहे हालात कैसे भी हो। अगर आप भी मानते हो कि अपने सपनों का सौदा कभी नहीं करना चाहिए तो हमारे YouTube चैनल ट्रुथ ऑफ लाइफ को सब्सक्राइब करके जुड़ जाओ हमारे परिवार से क्योंकि यहां हम हर कहानी से आपको जिंदगी की असली सच्चाई और हौसला देंगे। के
2) https://youtu.be/q4YhuMRG1FE?si=CPYl0v3p5s9BZCh7
दोस्तों किसी शहर के पुराने बस स्टैंड के किनारे फुटपाथ पर बिछी हुई फटी पुरानी बोरियों पर एक 15 साल का लड़का लेटा था। उसका नाम किसी को ठीक से पता नहीं था। लेकिन सब उसे किशोर कह कर बुलाते थे। शायद उम्र से शायद चेहरे के मासूमपन से या शायद इसलिए कि उसके पास कोई दूसरा नाम पुकारने के लिए था ही नहीं। किशोर अनाथ था। उसे खुद नहीं पता था कि उसके माता-पिता हैं भी या नहीं। जब कभी वह अपने जैसे उम्र के बच्चों को अपने माता-पिता के साथ हंसते खेलते देखता तो उसके मन में एक टीस उठती क्या मेरे भी मां-बाप हैं कहीं? अगर हैं तो उन्होंने मुझे क्यों छोड़ दिया और अगर नहीं है तो मैं इस दुनिया में अकेला क्यों हूं? ऐसे सवाल उसके मन में उमड़ते लेकिन जवाब कभी नहीं मिलता। दिन उसका जैसे तैसे गुजरता था। कभी बस स्टैंड के फुटपाथ पर सो जाता, कभी रेलवे स्टेशन के बाहर। खाने-पीने का कोई तय ठिकाना नहीं था। कभी कोई राहगीर उसे बचा हुआ खाना दे देता तो कभी वह किसी ढाबे या छोटी दुकान पर बर्तन धो देता, झाड़ू लगा देता और बदले में एक वक्त का खाना मिल जाता। कभी-कभी शहर में कोई संस्था गरीबों को खाना बांटने आती तो उस दिन उसका भाग्य खुल जाता। लेकिन ऐसे दिन रोज नहीं होते थे और कई बार पेठ खाली रह जाता। उसकी जिंदगी में ना कोई लक्ष्य था ना कोई सपना। बस आज निकल गया तो कल की चिंता। रात में वह आसमान की तरफ देखता। टिमटिमाते तारे गिनता और सोचता काश मैं भी किसी का होता। कोई मेरा इंतजार करता। लेकिन अगले ही पल नींद उसे अपनी गिरफ्त में ले लेती। और वही फुटपाथ उसका बिस्तर बन जाता। उस रात भी कुछ ऐसा ही था। बस स्टैंड के कोने में ठंडी हवा के बीच किशोर अपनी पतली सी चादर में लिपटा आसमान को देख रहा था। इक्काद-दुक्का लोग आ जा रहे थे। लेकिन ज्यादातर दुकानें बंद हो चुकी थी। तभी दूर से एक बस आती दिखी और स्टैंड के सामने आकर रुक गई। बस से लगभग 50 साल का एक आदमी उतरा। सफेद धोती कुर्ता पहने हुए चेहरे पर थकान लेकिन आंखों में एक अजीब सी गरिमा। कंधे झुके हुए थे और पास में दो बड़े बैग थे। कंडक्टर ने उसके बैग नीचे रखे और बस चल दी। वह आदमी चारों ओर नजर दौड़ाने लगा मानो किसी की तलाश कर रहा हो। शायद कोई जो उसका सामान दूसरे गेट तक पहुंचा दे जहां से आगे का वाहन मिल सके। लेकिन रात का समय था। वहां कोई मजदूर या कुली नहीं था। तभी उसकी नजर फुटपाथ पर बैठे किशोर पर पड़ी। वह सीधा किशोर के पास आया और मुस्कुराकर बोला बेटा क्या तुम मेरी मदद करोगे? किशोर पहले तो थोड़ा चौंका फिर उठकर बैठ गया। सेठ जी मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूं? मैं तो बस एक बच्चा हूं। वह आदमी हंसा बेटा मेरे पास दो बैग है। एक मैं उठा लूंगा। एक तुम उठा लो। बस स्टैंड के दूसरे गेट तक जाना है। वहां से मुझे घर जाने के लिए गाड़ी मिलेगी। और हां तुम्हें इसके पैसे भी दूंगा। किशोर ने कंधे उचकाए। चलिए ठीक है सेठ जी। उसने एक बैग सिर पर रख लिया। आदमी ने दूसरा हाथ में उठा लिया और दोनों धीरे-धीरे दूसरे गेट की तरफ बढ़ने लगे। रात का सन्नाटा और उनके कदमों की आवाज बस स्टैंड की गूंज में घुल रही थी। गेट पर पहुंचकर किशोर ने बैग नीचे रखा। वह आदमी बोला, बहुत शुक्रिया तुम्हारा बेटा। उसने जेब से कुछ पैसे निकालकर किशोर को दिए। किशोर के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान फैल गई। पैसे कमाना कोई नई बात नहीं थी। लेकिन किसी ने उसे बेटा कहकर धन्यवाद दिया। यह बात उसे भीतर तक छू गई। उसी गेट के पास एक चाय की दुकान थी जो रात में भी खुली रहती थी। आदमी ने कहा, चाय पिएगा बेटा, चल बैठ। दोनों लकड़ी की बेंच पर बैठ गए। दुकानदार ने दो कप चाय रख दी। घूंट लेते हुए आदमी ने पूछा, बेटा तुम्हारे माता-पिता नहीं है? किशोर ने नजर झुका ली। नहीं सेठ जी, मुझे तो यह भी नहीं पता कि वो हैं अभी या नहीं। आदमी ने धीरे से सिर हिलाया। तो फिर तुम कैसे रहते हो? किशोर ने एक फीकी हंसी के साथ कहा, बस कभी बस स्टैंड पर कभी रेलवे स्टेशन के फुटपाथ पर सो जाता हूं। खाने के लिए कभी कोई खाना बांटने वाला मिल जाए तो खा लेता हूं। नहीं तो भूखा सोना पड़ता है। कभी-कभी किसी दुकान में बर्तन धो देता हूं तो बदले में खाना मिल जाता है। आदमी थोड़ी देर चुप रहा। फिर गंभीर स्वर में बोला बेटा कब तक ऐसे ही जिंदगी गुजारोगे। किशोर ने कंधे उचकाए जैसी चल रही है वैसी ही चलेगी। सेठ जी इसमें मैं क्या कर सकता हूं? किस्मत ही ऐसी है मेरी। आदमी मुस्कुरा दिया लेकिन आंखों में एक चमक थी। यही सोच बदलनी होगी तुम्हें। किशोर थोड़ा उलझा मैं कैसे बदल सकता हूं। आदमी ने चाय का आखिरी घूंट लिया और बोला, बेटा इस दुनिया में हर इंसान अपनी किस्मत खुद बदल सकता है। बस एक बार ठान ले कि उसे कैसा जीवन चाहिए और क्या करना है। किशोर के लिए यह बातें नई थी। उसने कभी इस तरह नहीं सोचा था। उसने धीरे से पूछा, सेठ जी थोड़ा आसान तरीके से समझाइए ना। मैं ठीक से समझ नहीं पाया। आदमी ने उसकी आंखों में देखते हुए कहा, देख बेटा भगवान ने तुम्हें इंसान का रूप दिया है। यह सबसे बड़ा उपहार है। लेकिन तू इस रूप की कदर नहीं कर रहा। यहां वहां मांगकर खाना, फुटपाथ पर सोना। यह जिंदगी तू खुद पर थोप रहा है। अगर तू मेहनत करना शुरू कर दे, कुछ सीख ले, तो तुझे ना भूखा सोना पड़ेगा, ना फटे कपड़े पहनने पड़ेंगे। अब किशोर का चेहरा गंभीर था। आदमी की बातें उसके दिल में उतर रही थी। तू घूम फिर कर देख कौन सा काम तुझे अच्छा लगता है। वही सीख वही कर। अगर तू 5 साल लगन से मेहनत कर लेगा। तो 5 साल बाद तू मुझे याद करेगा कि एक दिन कोई मिला था जिसने तुझे रास्ता दिखाया था। तब तेरे पास अपना घर होगा और तू अपने जैसे बच्चों की मदद करेगा। यह बातें किशोर के मन में जैसे किसी ने गहरी छाप छोड़ दी। वह चुपचाप सुनता रहा। बस सिर हिलाता रहा। इतने में एक ऑटो रिक्शा आ गया। आदमी ने अपना बैग रखा और किशोर की तरफ देखते हुए कहा। बेटा मेरी बात याद रखना। अपनी किस्मत खुद लिखो। ऑटो चल पड़ा और किशोर वहीं खड़ा देखता रहा। उस रात फुटपाथ पर लेटे भी उसे बस यही वाक्य बार-बार याद आ रहा था। अपनी किस्मत खुद लिखो। अपनी किस्मत खुद लिखो। रात गहरी हो चुकी थी, लेकिन किशोर की आंखों में नींद नहीं थी। ऊपर आसमान में तारे चमक रहे थे, लेकिन उसके मन में एक अलग ही रोशनी जगमगा रही थी। वह रोशनी जो किसी एक अनजाने व्यक्ति के शब्दों से पैदा हुई थी। अपनी किस्मत खुद लिखो। यह वाक्य उसके दिमाग में ऐसे घूम रहा था। जैसे कोई पुराना गीत जो बार-बार याद आ जाए। उसने करवट बदली। अपने पतले से सिरहाने को सीधा किया और सोचने लगा। क्या सच में मैं अपनी किस्मत बदल सकता हूं? क्या मैं भी एक दिन अपना घर बना सकता हूं? क्या मैं भी अपने जैसे बच्चों की मदद कर सकता हूं? इन सवालों के साथ ही उसके भीतर एक अजीब सी बेचैनी पैदा हो रही थी। पहले तक उसे लगता था कि उसकी जिंदगी बस यूं ही कटनी है जैसे पानी बहता है बिना किसी दिशा के। लेकिन अब किसी ने उसकी आंखों के सामने एक नया रास्ता रख दिया था। थोड़ी देर तक वह बस छतरी के नीचे फैले आकाश को निहारता रहा। ठंडी हवा के झोंके उसे सेन दे रहे थे। लेकिन आज पहली बार उसे लग रहा था कि यह ठंड अस्थाई है। अगर वह मेहनत करे तो एक दिन यह ठंड खत्म हो सकती है। उसके पास अपनी चार दीवारी हो सकती है। धीरे-धीरे इन विचारों के बीच उसकी आंख लग गई। सुबह की पहली किरणें उसके चेहरे पर पड़ी। उसने आंखें खोली तो देखा कि बस स्टैंड पर हलचल शुरू हो चुकी थी। चाय वालों की आवाजें, अखबार बेचने वालों की पुकार और आते-जाते लोगों की चहलकदमी। किशोर ने अपने कपड़े झाड़े, मुंह धोया और तय किया। आज वह काम ढूंढेगा लेकिन वैसा काम नहीं जो वह हमेशा करता रहा है। बर्तन धोना, झाड़ू लगाना यह उसने बहुत किया। पर उससे पेट तो भर जाता था। जिंदगी नहीं बदलती थी। मुझे कुछ नया सीखना होगा। यह सोच उसके मन में पक्की हो चुकी थी। उसने इधर-उधर घूमना शुरू किया। पहले उसने पास के ढाबे पर पूछा। भैया कोई काम है क्या? ढाबे वाले ने सिर हिला दिया। नहीं लड़के यहां तो सब लोग पुराने हैं। फिर वह एक किराने की दुकान पर गया। वहां भी जवाब मिला। अभी किसी की जरूरत नहीं है। किशोर चलता रहा। दोपहर हो चुकी थी और वह थक चुका था। सूरज सिर पर था। पेट में भूख लेकिन मन में हार मानने का विचार नहीं था। आज नहीं मिला तो कल मिलेगा लेकिन मिलेगा जरूर। उसने खुद से कहा। शाम होने लगी थी। किशोर एक दुकान के सामने रखी लकड़ी की बेंच पर बैठ गया। दुकान पर रंग रोगन का काम चल रहा था। दीवारों पर पुताई, पुराना रंग घिसना, नई परत चढ़ाना। वह चुपचाप देख रहा था। जैसे सीख रहा हो कि यह सब कैसे होता है। तभी दुकान के भीतर से एक आदमी बाहर आया। उसकी उम्र लगभग 35 से 40 साल होगी। हाथों पर सफेदी और रंग के छींटे। कपड़े थोड़े मैले लेकिन आंखों में सच्चाई। वह आकर उसी बेंच पर किशोर के पास बैठ गया। शायद वह पेंटर था जो दिन भर काम करके अभी-अभी थोड़ी देर आराम करने निकला था। वह खुद से कुछ बड़बड़ा रहा था। आजकल के लड़के भी ना काम करने का मन ही नहीं है। किशोर ने जिज्ञासा से पूछा क्या हुआ भैया? पेंटर ने उसकी तरफ देखा और बोला अरे 10 दिन पहले एक लड़का आया था। खुद कह रहा था कि मुझे काम सिखा दो। मैंने कहा ठीक है सीख लो। लेकिन 10 दिन में 5 दिन ही आया और आज तो आया ही नहीं। मैंने उसके भरोसे किसी और को भी नहीं रखा। सोचकर कि यह सीख जाएगा लेकिन बेकार निकला। किशोर ने कुछ नहीं कहा बस सुनता रहा। फिर पेंटर ने पूछा तुम यहां क्यों बैठे हो? किशोर ने सच्चाई से जवाब दिया। सुबह से काम ढूंढ रहा हूं लेकिन कहीं मिला नहीं। पेंटर ने भौें उठाई। तो अब क्या करोगे? किशोर ने बिना हिचके कहा। काम तो करूंगा ही। आज नहीं तो कल पर मिलेगा जरूर। यह सुनकर पेंटर के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आई। क्या करोगे? मेरे साथ काम करोगे? किशोर की आंखें चमक उठी। हां भैया मैं तो आपको यही कहने वाला था। क्या आप मुझे सिखा सकते हैं यह काम? पेंटर ने गंभीरता से कहा। देख बेटा अगर सच में काम करना है तो हां बोल। वरना अभी मना कर दो। आधे अधूरे मन से कुछ नहीं होगा। किशोर ने बिना सोचे तुरंत कहा। नहीं नहीं भैया मैं मेहनत करूंगा। लगन से करूंगा। पेंटर ने सिर हिलाया। ठीक है तो अभी से काम पर लग जाओ। पेंटर ने उसे एक रगड़ने वाला औजार पकड़ा और कहा इससे दीवार को घिसो। पुराना रंग निकल जाएगा और नया रंग अच्छे से चिपकेगा। किशोर ने काम शुरू कर दिया। हाथ दर्द करने लगे लेकिन उसने रुकना नहीं चाहा। दिनभर उसने कभी पेंटर को चुना घोल कर दिया। कभी ब्रश साफ किया, कभी दीवार पर पुराना पेंट खिसा। उसके कपड़ों पर सफेदी के धब्बे पड़ गए लेकिन चेहरे पर संतोष था। शाम को 5:00 बजे काम बंद हुआ। पेंटर और किशोर उसी बेंच पर बैठ गए। पेंटर ने पूछा तो कैसा लगा काम करके? किशोर ने मुस्कुराकर कहा अच्छा लगा भैया। आपने मुझे काम दिया। यही मेरे लिए बहुत है। और पहले ही दिन आपने इतना सिखा दिया। धन्यवाद। पेंटर ने कहा बस लगन से लगे रहना। एक दिन इसी काम में बड़ा आदमी बन सकते हो। फिर उसने पूछा तुम रहते कहां हो? किशोर ने कहा कहीं नहीं। जहां जगह मिल जाए वहीं सो जाता हूं। पेंटर ने थोड़ी देर सोचा। फिर कहा जब तक हमारा काम यहां चल रहा है। तुम दुकान की छत पर सो सकते हो। और यह कुछ पैसे हैं। जाकर खाना खा लो। किशोर ने पैसे लिए और एक छोटी सी ढाबा जैसी जगह पर गया। आज पहली बार उसने अपनी मेहनत से कमाए पैसों से खाना खाया। थाली में गरम-गरम रोटियां, दाल और थोड़ी सब्जी थी। उसने हर निवाले को जैसे चखा महसूस किया। मेहनत से कमाए खाने का स्वाद ही अलग है। यह सोचकर उसके होठों पर मुस्कान आ गई। खाना खत्म करके वह दुकान की छत पर चला गया। ऊपर से पूरा आसमान दिखाई दे रहा था। तारे चमक रहे थे। उसने अपने हाथों को देखा सफ़ेदी और धूल से भरे हुए और सोचा आज मैंने सच में कुछ किया है और अगर ऐसे करता रहा तो शायद सच में अपनी किस्मत लिख सकता हूं। धीरे-धीरे नींद ने उसे अपनी गोद में ले लिया। और उसके सपनों में वही अजनबी फिर आ गया कहते हुए। बेटा अपनी किस्मत खुद लिखो। सुबह की ठंडी हवा और शहर की हलचल के बीच किशोर की नींद खुली। दुकान की छत पर से नीचे झांका तो देखा कि पेंटर पहले से ही नीचे तैयार खड़ा है। हाथ में चाय का कप और मुंह में हल्की सी मुस्कान। अरे सोकर उठ गए। चलो नीचे आओ। आज थोड़ा जल्दी काम शुरू करना है। पेंटर ने आवाज दी। किशोर ने जल्दी-जल्दी मुंह धोया। कपड़े झाड़े और नीचे उतर आया। पेंटर ने उसे चाय थमा दी। चाय की गर्माहट ने नींद का आखिरी अंश भी भगा दिया। आज उनका काम थोड़ा अलग था। कल तक किशोर सिर्फ पुराना रंग घिस रहा था। लेकिन आज पेंटर उसे चूना मिलाना और पुताई का बेसिक तरीका सिखाने वाला था। पेंटर ने बाल्टी में पानी और पाउडर डाला। फिर उसे लकड़ी की डंडी से घुमाने लगा। देख बेटा चूना ऐसे अच्छे से मिलाना होता है। अगर गांठ रह गई तो दीवार पर दाग पड़ेंगे। पेंटर ने समझाया। किशोर ध्यान से देखता रहा। फिर खुद भी कोशिश की। शुरुआत में डंडी उसके हाथ से फिसल रही थी। लेकिन उसने हार नहीं मानी। पेंटर ने उसकी पीठ थपथपाई। गलतियां होंगी लेकिन सीखते-सीखते तू मुझसे भी अच्छा करेगा। दिनभर वह कभी चुना मिलाता, कभी ब्रश धोता, कभी पुराने डिब्बों में रंग तैयार करता। धीरे-धीरे उसकी पकड़ काम पर मजबूत होने लगी। उस दुकान के आसपास के लोग अब किशोर को पहचानने लगे थे। पहले वह एक अनजान लड़का था जो बस फुटपाथ पर सोता था। लेकिन अब वह पेंटर का चेला कहलाने लगा था। कभी-कभी पास की दुकानों वाले उसे आवाज देकर पानी पिला देते या चाय पिला देते। उसे अच्छा लगता था। पहली बार उसे महसूस हो रहा था कि वह किसी काम का हिस्सा है। किसी पहचान के साथ जी रहा है। लगभग 10 दिन बाद दुकान का काम खत्म होने को था। पेंटर ने किशोर को बुलाया और कहा, देख बेटा अब तुझे असली काम देना है। एक दीवार का कोना तू अकेले पेंट करेगा। मैं बस देखूंगा। किशोर के दिल की धड़कन तेज हो गई। उसने ब्रश उठाया। चूना डुबोया और सावधानी से स्ट्रोक लगाना शुरू किया। शुरुआत में हाथ थोड़ा कांप रहा था लेकिन फिर उसने लय पकड़ ली। ब्रश दीवार पर ऐसे चलने लगा जैसे वह बरसों से यही काम कर रहा हो। पेंटर मुस्कुराया। अरे वाह ऐसे ही करते रहना। एकदम बढ़िया। शाम तक काम खत्म हुआ और किशोर का चेहरा गर्व से चमक रहा था। आज उसने सिर्फ सहायक का काम नहीं किया बल्कि पेंटर की तरह काम किया। दुकान का काम पूरा होते ही पेंटर ने किशोर से कहा, चल अब तुझे एक नया काम दिखाता हूं। ये काम एक बिल्डिंग में है जहां हमें पूरा पेंट करना है। वहां तू मेरे साथ रहेगा और काम भी सीखेगा। किशोर ने उत्साह से हामी भरी। दोनों अगले दिन कंस्ट्रक्शन साइट पहुंचे। वहां आधी बनी बिल्डिंग खड़ी थी। मजदूर इधर-उधर ईंट पत्थर ढो रहे थे और हवा में सीमेंट की खुशबू फैली थी। पेंटर ने किशोर को एक कमरा दिखाया। यह तेरा सोने का कमरा है जब तक काम चलेगा। दिन में काम, रात में यही आराम। और हां, सामान की देखभाल भी तू करेगा। किशोर के लिए यह किसी होटल जैसा था। चार दीवारें, छत और एक कोना उसका अपना। दिन पर दिन महीना पर महीना किशोर काम सीखता गया। अब वह सिर्फ दीवार घिसने वाला लड़का नहीं था। वह ब्रश, रोलर, पेंट मिक्सिंग सब में माहिर हो चुका था। पेंटर उस पर भरोसा करने लगा था। कभी-कभी छोटे हिस्से का पूरा काम किशोर को सौंप देता और वह पूरी लगन से करता। रात में कमरे में लेटे हुए किशोर अक्सर उस अनजान आदमी को याद करता। जिसने कहा था 5 साल बाद तू मुझे याद करेगा। अब उसे लग रहा था कि वह सही रास्ते पर है। 1 साल बाद बिल्डिंग का काम खत्म हुआ। किशोर अब 17 साल का हो चुका था। पेंटर ने उसका मेहनताना गिना। यह अब तक की सबसे बड़ी रकम थी जो किशोर के हाथ में आई थी। उसने नोटों को देखते हुए एक लंबी सांस ली। मैं सच में बदल रहा हूं। मेरी जिंदगी बदल रही है। पेंटर ने उसे सलाह दी। बेटा अब तू किराए पर कमरा ले ले। तेरे पास पैसे भी हैं, हुनर भी। काम ना भी मिले तो 3 महीने आराम से खा पी सकता है। किशोर ने उसकी बात मानी। पेंटर ने अपने घर के पास ही उसे एक छोटा सा कमरा दिलवा दिया। कमरा छोटा था लेकिन किशोर के लिए यह किसी महल से कम नहीं था। कोने में एक लकड़ी की चारपाई, पास में एक छोटा सा चूल्हा। बगल में रखी गैस सिलेंडर की छोटी सी टंकी और दीवार पर टंगे दो-तीन जोड़ी कपड़े। सुबह की धूप खिड़की से अंदर आती तो कमरा चमक उठता। अब किशोर के दिन फुटपाथ पर आंखें मिचमिचाते शुरू नहीं होते थे। अब वह अपने कमरे में अपने बिस्तर पर उठता था। पेंटर उस्ताद अक्सर उससे मिलने आता। काम की बातें करता। नए प्रोजेक्ट्स की उम्मीद बंधाता। लेकिन अगले महीने हालात बदल गए। एक दिन किशोर अपने उस्ताद के घर पहुंचा तो देखा उस्ताद आंगन में चारपाई पर लेटे हैं। चेहरे पर थकान आवाज में कमजोरी। अरे उस्ताद जी क्या हुआ? आप तो बिल्कुल बीमार लग रहे हो। किशोर ने चिंतित होकर पूछा। उस्ताद ने मुस्कुराने की कोशिश की। हां बेटा अब शरीर साथ नहीं दे रहा। बुखार कमजोरी। लगता है पेंट का काम मैं अब खुद नहीं कर पाऊंगा। किशोर ने पास बैठते हुए कहा तो फिर मैं देखूंगा काम। आप बस आराम करो। उस्ताद ने उसके कंधे पर हाथ रखा। याद रखना बेटा काम छोटा बड़ा नहीं होता। चाहे जैसा भी काम मिले मना मत करना। यह वक्त का खेल है। अगले कई हफ्ते किशोर काम की तलाश में निकला। लेकिन कुछ खास नहीं मिला। पुराने जानकार लोग उस्ताद की तबीयत का सुनकर कहते जब ठीक हो जाए तब बताना। लेकिन किशोर जानता था कि उस्ताद अब पहले जैसे नहीं हो पाएंगे। एक दिन उसे एक कमरे में पुताई करने का छोटा सा काम मिला। उसने अकेले ही एक दिन में काम खत्म कर दिया और शाम को उस्ताद को बताया। उस्ताद ने संतोष भरी नजरों से कहा, "बस बेटा, ऐसे ही लगे रहना।" धीरे-धीरे बड़ा काम भी मिलेगा। अगली सुबह किशोर पास की एक चाय की दुकान पर बैठा था। तभी वहां एक आदमी आया जिसने बढ़िया कपड़े पहन रखे थे और हाथ में फाइल थी। दुकानदार ने फुसफुसाकर बताया यह ठेकेदार है। बिल्डिंग वगैरह का काम करवाता है। ठेकेदार ने किशोर की तरफ देखा। क्या काम करते हो? किशोर ने सीधे कहा पेंटिंग पुताई सब आता है। ठेकेदार ने पूछा आजकल क्या कर रहे हो? कोई काम है? किशोर ने सिर हिलाया। नहीं काम की तलाश में हूं। ठेकेदार ने थोड़ी देर सोचा मेरे पास एक कोठी का काम है। पुताई करनी है। करोगे। किशोर के दिल में जैसे ढोल बजने लगे लेकिन चेहरे पर संयम रखते हुए उसने कहा हां करूंगा। दोनों ने वही रेट तय किया। किशोर ने पहली बार अपने दम पर अपनी शर्तों पर काम लिया। बिना उस्ताद की मदद के। कोठी बड़ी थी लेकिन किशोर ने ठान लिया था कि वह समय से पहले काम खत्म करेगा। वह सुबह-सुबह पहुंचता, रात तक काम करता। हर ब्रश स्ट्रोक में जैसे वह अपने सपनों को रंग रहा था। ठेकेदार ने बीच-बीच में आकर देखा और हर बार उसकी मेहनत की तारीफ की। एक महीने में कोठी चमक उठी। ठेकेदार ने पैसे गिनकर किशोर के हाथ में दिए। तुमने उम्मीद से भी जल दी और अच्छा काम किया। किशोर ने पैसे लिए लेकिन उस दिन का सबसे बड़ा इनाम था आत्मविश्वास। उसने तुरंत उस्ताद के लिए दवाई और फल खरीदे। यह लो उस्ताद जी। यह मेरी पहली अपनी कमाई है। किशोर ने कहा, उस्ताद की आंखें भर आई। तूने कर दिखाया बेटा। इसके बाद पीछे मुड़कर देखने का सवाल ही नहीं था। किशोर का नाम इलाके में फैल गया। ठेकेदार, बिल्डर, मकान मालिक सब उसे बुलाने लगे। 2 साल गुजर गए। अब किशोर 20 साल का हो चुका था। उसके पास इतना काम था कि वह छोटे-मोटे काम अपने साथियों को देने लगा। लोग कहते सबसे अच्छा पेंटर है किशोर। एक दिन शाम को वह अपने उस्ताद के पास बैठा था। उस्ताद जी अब मैं अपना घर बनाना चाहता हूं। किशोर ने कहा। उस्ताद ने गर्व से कहा। हां बेटा अब तेरे पास सब है। नाम भी, काम भी, पैसे भी। बना ले। अगले कुछ महीनों में किशोर ने अपने घर की नींद रखी। ईंट पर ईंट जुड़ती गई और आखिरकार एक छोटा लेकिन सुंदर घर खड़ा हो गया। एक रात घर के आंगन में बैठा किशोर तारों को देख रहा था। अचानक उसे वह पहला अनजान आदमी याद आया। बस स्टैंड पर सफेद धोती कुर्ता पहने जिसने कहा था। 5 साल बाद तू मुझे याद करेगा। अपनी किस्मत खुद लिख सकता है। आज 5 साल पूरे हो गए थे। और सचमुच किशोर ने अपनी किस्मत खुद लिखी थी। मेहनत लगन और विश्वास से उसने खुद से कहा हां मैंने कर दिखाया और अब मैं भी किसी और का रास्ता बदललूंगा। आंगन में ठंडी हवा चल रही थी और किशोर के चेहरे पर संतोष की मुस्कान थी। उसकी जिंदगी अब फुटपाथ से निकल कर अपने घर की चौखट तक पहुंच चुकी थी। अपनी किस्मत खुद लिखो। यह वाक्य अब उसकी पहचान बन चुका था। दोस्तों इस कहानी की सबसे बड़ी सीख यही है कि इंसान सच में अपनी किस्मत खुद लिख सकता है। अगर वह हालात से हार मानने के बजाय मेहनत लगन और खुद पर भरोसा बनाए रखे। किसी भी मुश्किल की शुरुआत में रास्ता अंधेरा और अकेला लगता है। लेकिन जो इंसान ठान ले कि चाहे जैसे हालात हो वह आगे बढ़ेगा वही अपनी मंजिल तक पहुंचता है। गरीबी, भूख या ठोकरें यह सब सिर्फ इम्तिहान हैं जो हमें और मजबूत बनाते हैं। जब दिल में हौसला हो, हाथों में मेहनत का दम हो और दिमाग में साफ मकसद हो तो वक्त भी आपके पक्ष में मुड़ जाता है। याद रखिए, किस्मत आसमान से नहीं उतरती। उसे अपने पसीने, अपने जज्बे और अपने यकीन से जमीन पर बनाया जाता है। दोस्तों, अगर आपको यह कहानी पसंद आई हो और इससे आपको भी मेहनत, लगन और खुद पर भरोसा रखने की प्रेरणा मिली हो, तो इसे लाइक और शेयर जरूर करें ताकि यह सीख और लोगों तक पहुंच सके। हमारे YouTube चैनल ट्रुथ ऑफ लाइफ को सब्सक्राइब करें और बेल आइकन दबाएं ताकि आपको ऐसी ही सच्ची और प्रेरणादायक कहानियां मिलती रहे और हां क्या आप भी अपनी किस्मत खुद लिखोगे? अपना जवाब हमें कमेंट में जरूर बताइए। आपकी एक लाइन किसी और की जिंदगी बदल सकती
3) https://youtu.be/YTVNJO1wdFY?si=5hEQ8qvTQAImZ2rh
दोस्तों किसी राज्य के एक छोटे से गांव के सुदूर कोने में एक साधारण सा मिट्टी का घर था। जिसके सामने एक टूटी-फूटी चारपाई पड़ी रहती थी। यह घर गोपाल का था। 24 साल का एक दुबला गेहूं रंग का युवक जिसकी आंखों में कभी सपनों की चमक हुआ करती थी। लेकिन अब वह चमक धुंधली पड़ चुकी थी। गांव में लोग कहते थे यह वही लड़का है जो शहर पढ़ने गया था। अब वापस आ गया है। कोई ताने मारता, कोई हंसी उड़ाता और कुछ लोग तरस भी खाते। गोपाल का बचपन गांव की तंग गलियों और मिट्टी के घर में बीता। उसके पिता हरनाम मेहनती किसान थे। उनके पास बस दो बीघा जमीन थी। ना बहुत उपजाऊं ना पूरी तरह बंजर। बरसात अच्छी हो तो गेहूं और धान की फसल ठीक हो जाती। वरना पैदावार इतनी कम होती कि साल का आधा समय उधार चुकाने में निकल जाता। मां कमला देवी घर संभालती, गाय भैंस का दूध निकालती, गोबर के उपले बनाती और कभी कभार आसपड़ोस के घरों में मदद भी कर देती ताकि कुछ अनाज मिल जाए। घर का चूल्हा जलाना रोज का संघर्ष था। गांव के और बच्चों की तरह गोपाल ने भी सरकारी स्कूल में पढ़ाई शुरू की। स्कूल की हालत अच्छी नहीं थी। टूटी खिड़कियां कभी-कभी महीनों तक शिक्षक ना आना। फर्श पर बैठकर पढ़ना लेकिन गोपाल में पढ़ने की लगन थी। वह अपने पुराने फटे से बैग में किताबें रखता और रोज समय पर स्कूल पहुंचता। हरनाम के मन में एक ही सपना था। मेरा बेटा पढ़ लिखकर कुछ बड़ा करे हमारी जिंदगी बदल दे। दसवीं तक की पढ़ाई गांव में ही पूरी हुई। नतीजे आए तो गोपाल ने अच्छे अंक हासिल किए। यही देखकर पिता ने तय किया कि अब उसे शहर भेजना चाहिए। लेकिन शहर भेजना आसान नहीं था। वहां का स्कूल अच्छा था लेकिन फीस बहुत ज्यादा। रहने और खाने का खर्चा अलग। हरनाम ने कई रातें जागकर हिसाब लगाया। आखिरकार उन्होंने एक बड़ा फैसला लिया। दो बीघा जमीन बेच दी। उस दिन जब कागजों पर दस्तखत हुए, हरनाम के हाथ कांप रहे थे। यह जमीन उनके बाप दादा की निशानी थी। लेकिन बेटे का भविष्य उनके लिए उससे भी ज्यादा अहम था। उन्होंने गोपाल से कहा, बेटा तू बस पढ़ाई पर ध्यान दे। बाकी की चिंता मत कर। शहर पहुंचकर गोपाल ने एक छोटे से हॉस्टल में जगह ली। कमरा छोटा था लेकिन उसमें चार और लड़के रहते थे। सुबह जल्दी उठकर स्कूल, फिर ट्यूशन, फिर देर रात तक पढ़ाई। शहर की जिंदगी आसान नहीं थी। वहां कोई जान पहचान नहीं ना ही गांव जैसी अपनापन भरी बातें। हॉस्टल के खाने का स्वाद बेस्वाद था और महीने के अंत में पैसे हमेशा कम पड़ जाते थे। गोपाल का लक्ष्य साफ था सरकारी नौकरी। वह जानता था कि यही रास्ता है जिससे वह अपने घर की हालत बदल सकता है और पिता की कुर्बानी का मान रख सकता है। उसने कई परीक्षाएं दी। रेलवे, बैंक, टीचर भरती, लेकिन हर बार थोड़े-थोड़े अंकों से रह जाता। नतीजे देखने के बाद उसकी आंखें भर आती। लेकिन वह खुद को संभाल लेता, सोचता अगली बार जरूर पास हो जाऊंगा। 3 साल तक यही सिलसिला चलता रहा। हर बार असफलता, हर बार उम्मीद टूटना। पिता की भेजी हुई रकम भी अब कम होने लगी। एक दिन पिता का फोन आया। आवाज भारी थी। बेटा अब बस पैसे भेजना मुश्किल है। ना जमीन बची है ना और साधन। अब तो मजदूरी करके ही घर चल रहा है। गोपाल कुछ देर चुप रहा। यह वही पिता थे जिन्होंने कभी उसे एक बार भी पैसों के लिए ना नहीं कहा था। लेकिन अब उनकी हिम्मत टूट चुकी थी। उस रात उसने लंबी सोच विचार के बाद फैसला किया। गांव लौट जाना ही ठीक है। गांव लौटने पर लोगों की निगाहें अलग ही थी। कुछ सहानुभूति भरी, कुछ तिरस्कार भरी। कोई कहता अरे इतने साल शहर में रहकर भी कुछ नहीं कर पाया। तो कोई हंसते हुए कहता अब देखो पढ़ा लिखा लड़का भी घर बैठा है। माता-पिता ने कुछ नहीं कहा लेकिन उनकी आंखों में चिंता साफ झलक रही थी। गोपाल अब दिन का ज्यादा वक्त घर के बाहर चौपाल पर या नदी किनारे बिताने लगा। कभी पेड़ की छाव में बैठकर सोचता, मैं कहां गलत हो गया। कभी मन में गुस्सा आता कभी निराशा। उसे लगता जैसे जिंदगी रुक गई है। 6 महीने ऐसे ही बीत गए। वह किसी काम में हाथ नहीं डालता। अंदर ही अंदर उसे शर्म महसूस होती कि अगर मजदूरी करेगा तो लोग हसेंगे। लेकिन रात को जब माता-पिता सो जाते, वह आसमान की तरफ देखता और मन ही मन भगवान से सवाल करता। मेरी मेहनत बेकार क्यों गई? मेरे माता-पिता की कुर्बानी का क्या हुआ? एक दिन अचानक बिना कुछ सोचे गोपाल गांव के खेतों की तरफ निकल पड़ा। शाम का समय था। हल्की-हल्की धूप और मीठी हवा चल रही थी। वह पगडंडी पर चलता रहा। खेतों के बीच हरियाली थी। चलते-चलते वह एक पुराने पीपल के पेड़ के नीचे पहुंचा। पेड़ के पास एक छोटी सी कुटिया थी। बाहर सफेद कपड़े पहने एक बाबा शांत अवस्था में बैठे थे। चारों तरफ सन्नाटा और सुकून था। गोपाल ठिठक कर रुक गया और बाबा को देखने लगा। बाबा ने भी उसकी तरफ देखा और मुस्कुरा कर पूछा बेटा क्या देख रहे हो? गोपाल बोला कुछ नहीं बाबा बस। आपकी कुटिया के पास आकर बहुत शांति महसूस हुई। बाबा ने कहा हां शांति है यहां। लेकिन यह शांति खुद बनाई जाती है। मैंने इसे बनाकर रखा है। गोपाल को यह बात समझ नहीं आई। खुद बनाई जाती है। बाबा हल्के से मुस्कुराए लगता है तुम उलझे हुए हो बेटा। तभी मेरी बात तुम्हें समझ नहीं आई। गोपाल ने कहा हां बाबा उलझा तो हूं। बाबा बोले खड़े क्यों हो? आओ मेरे पास बैठो। मैं कोई तांत्रिक या चमत्कार करने वाला बाबा नहीं हूं। बस इस संसार की मोह माया त्याग कर बैठा हूं। और तुम्हारे जैसे भटके और परेशान लोगों को उनकी मंजिल का रास्ता दिखाता हूं। गोपाल ने पूछा वो कैसे बाबा? बाबा बोले पहले यह बताओ तुम्हारी परेशानी क्या है? गोपाल ने गहरी सांस लेते हुए कहा मेरी परेशानी यह है कि मैं सरकारी नौकरी में नहीं लग पाया। मेरे पिताजी ने अपनी जमीन बेचकर मुझे पढ़ाया। खुद भूखे रहे लेकिन मेरी पढ़ाई में कभी कमी नहीं आने दी। फिर भी भगवान ने ना मेरी मेहनत देखी ना मेरे पिताजी का बलिदान। बाबा ध्यान से सुनते रहे और बोले बेटा जरूरी नहीं कि इंसान एक बार में सफल हो जाए। समय लगता है हर काम में। गोपाल बोला बाबा जी मैंने कई बार परीक्षा दी लेकिन कभी चयन नहीं हुआ। बाबा बोले तो अब क्यों छोड़ दिया दे देना? अगर सच में सरकारी नौकरी करनी है तो कोशिश जारी रखो। गोपाल ने कहा बाबा अब कैसे दूं? पिताजी अब हॉस्टल की फीस नहीं भर सकते और गांव में रहकर पढ़ाई कैसे करूं? बाबा मुस्कुराए। गोपाल हैरान हुआ। आप हंस क्यों रहे हैं बाबा? बाबा ने कहा इसका कारण मैं तुम्हें आगे बताऊंगा। पहले तुम बताओ गांव में कब से हो? गोपाल बोला 6 महीने हो गए। बाबा ने कहा तो इन 6 महीनों में क्या किया? गोपाल बोला कुछ नहीं बाबा। मुझे गांव में कोई काम नहीं आता। अगर खेती या मजदूरी करूंगा तो लोग कहेंगे शहर से पढ़ाई करके आया है और यह कर रहा है। बाबा फिर हंस पड़े। गोपाल झुंझुलाया क्या मेरी बातें आपको मजाक लग रही हैं। आपको नहीं पता मैं किस मुसीबत में हूं। बाबा शांत होकर बोले बेटा मैं हंस इसलिए रहा हूं क्योंकि तुम इतना पढ़ लिखकर भी समझदारी नहीं सीख पाए। समझदारी का विकास तब तक नहीं होता जब तक इंसान हालात से नहीं सीखता। तिरस्कार को नहीं समझता और यह नहीं जान पाता कि इस दुनिया को फर्क नहीं पड़ता कि तुम क्या करते हो क्या नहीं। गोपाल चुप रहा। बाबा बोले अभी सूरज ढलने वाला है। तुम कल सुबह आना फिर मैं तुम्हें समझाऊंगा कि तुम्हें क्या करना चाहिए। गोपाल ने उनकी तरफ एक बार और देखा लेकिन कुछ और पूछने की हिम्मत नहीं हुई। वह धीरे-धीरे उठकर कुटिया से बाहर आया और उसी पगडंडी से गांव की तरफ लौट चला। जब वह घर पहुंचा तो आंगन में चूल्हा जल रहा था। मां कमला देवी मिट्टी के चूल्हे पर बर्तन चढ़ाए बैठी थी। बगल में पिता हरनाम लकड़ी काट रहे थे। उनके चेहरे पर थकान साफ झलक रही थी। कपड़े धूल और पसीने से भीगे हुए थे। गोपाल ने दरवाजे से ही सुना। कमला पता नहीं कब तक ऐसे चलेगा। उम्र हो चली है। हाथ-पांव जवाब दे रहे हैं। बेटा है तो सही लेकिन उसे हमारी हालत का अंदाजा ही नहीं। मां ने धीरे से कहा वो भी परेशान है। हरनाम। उसे मत कहो कुछ। परेशान। अरे जब तक अपने मां-बाप की थकान नहीं समझेगा तब तक उसकी परेशानी अधूरी है। गोपाल की आंखें भर आई। वह दरवाजे पर खड़ा रहा लेकिन अंदर नहीं गया। कुछ देर बाद वह आंगन के सामने पड़ी चारपाई पर जाकर लेट गया। खाना तैयार हो गया। मां ने कई बार बुलाया लेकिन उसने बस कह दिया भूख नहीं है मां। रात भर नींद नहीं आई। कानों में पिता के शब्द गूंजते रहे। उसे हमारी हालत का अंदाजा ही नहीं। सूरज उगने से पहले ही वह उठ गया। बिना नाश्ता किए, बिना कुछ कहे सीधे खेतों की ओर चल पड़ा। ठंडी हवा और ओस से भीगी घास के बीच चलते हुए वह फिर पीपल के पेड़ के पास पहुंचा। बाबा पहले से ही जागे हुए थे। उनकी गोदी में एक मोटी किताब थी लेकिन वह उसे बंद करके मुस्कुरा उठे। आ गए बेटा अच्छा है। आओ बैठो। गोपाल उनके सामने बैठ गया। बाबा कल आपने कहा था कि रास्ता खुद बनाना पड़ता है पर मैं समझ नहीं पाया। बाबा ने गहरी सांस ली और बोले बेटा जिंदगी में कोई भी मंजिल तैयार सड़क पर नहीं मिलती। हर आदमी को अपनी राह खुद बनानी पड़ती है। तुम शहर गए पढ़ाई की यह अच्छा था। लेकिन तुमने रास्ता सिर्फ एक ही रखा। सरकारी नौकरी। गोपाल ने सिर झुका कर कहा। वही तो मेरा सपना था। बाबा सपना होना बुरा नहीं लेकिन जब एक रास्ता बंद हो जाए तो नया रास्ता ढूंढना सीखो। बाबा आगे बोले तुम्हारे पिता ने तुम्हारे लिए अपनी जमीन तक बेच दी। वह बलिदान तुम्हारे सिर पर कर्ज है बेटा। और कर्ज सिर्फ पैसा चुका नहीं उतरता। उसे मेहनत और काबिलियत से उतारना पड़ता है। गोपाल चुप था पर भीतर से जैसे कोई दीवार टूट रही थी। तुमने 6 महीने गांव में गुजारे लेकिन एक दिन भी अपने मां-बाप के साथ खेत में नहीं गए। कभी सोचा वे धूप में कैसे काम करते होंगे। उनकी पीठ झुक चुकी है। पर फिर भी वे तुम्हारे लिए रोज रोटी जुटा रहे हैं। गोपाल की आंखें नम हो गई। बाबा मैं डरता था कि लोग कहेंगे पढ़ा लिखा लड़का मजदूरी कर रहा है। बाबा हल्के से मुस्कुराए। लोग बेटा यह लोग ना तुम्हारे घर का चूल्हा जलाएंगे ना भूख में रोटी देंगे। इनकी बातों से डरकर जो अपने मां-बाप का साथ छोड़ देता है वो जिंदगी की असली लड़ाई हार जाता है। बाबा ने पास पड़ी एक लकड़ी उठाई और मिट्टी पर सीधी रेखा खींची। देखो बेटा यह है तुम्हारी मंजिल की सड़क। सरकारी नौकरी पाने के लिए पढ़ाई जरूरी है। यह तुम जानते हो। लेकिन अभी तुम्हारे पास पैसों की कमी है। घर की हालत खराब है। इस हालत में सीधे मंजिल तक जाने का सपना अधूरा रहेगा। पहले तुम्हें इस सड़क पर छोटे-छोटे मोड़ बनाने होंगे। ऐसे काम जो घर चलाएं और तुम्हें पढ़ाई जारी रखने का मौका दें। गोपाल ने धीरे से पूछा। तो मुझे क्या करना चाहिए? बाबा आज से कोई भी काम छोटा मत समझना। दिन में मेहनत मजदूरी करो। रात में पढ़ाई, पैसों का इंतजाम खुद करो। घर वालों को महसूस कराओ कि उनका बेटा उनके साथ खड़ा है। यही तुम्हारा पहला रास्ता है। बाबा ने उसकी आंखों में देखते हुए कहा। याद रखना मंजिल पाने के लिए सबसे पहले चलना जरूरी है। उस दिन गोपाल जब घर लौटा तो उसके कदम पहले से भारी लेकिन मन हल्का था। आंगन में पिता लकड़ी काट रहे थे। मां बर्तन साफ कर रही थी। उसने बिना कुछ कहे उनके पास जाकर लकड़ी उठाई और चूल्हे के पास रख दी। पिता ने चौंक कर पूछा, क्या हुआ? कुछ नहीं। बस मदद कर रहा हूं। उस रात उसने खाना मां के साथ बनाया। पिता के साथ बैठकर खाया और अंदर से तय कर लिया। अब वह बदलाव की शुरुआत करेगा। अगली सुबह उसने एक पुरानी धोती कुर्ता पहनी जो पिता के थे। साफ सुथरे कपड़े पहनकर वह गांव में काम ढूंढने निकल पड़ा। शुरुआत आसान नहीं थी। कई लोगों ने हंसकर कहा, अरे तुम तो पढ़े लिखे हो। यह काम कैसे करोगे? सरकारी नौकरी नहीं लगी तो अब मजदूरी करोगे। लेकिन उसने किसी को जवाब नहीं दिया। दोपहर तक भटकने के बाद वह गांव के किनारे पहुंचा। जहां एक किसान अपनी बैलगाड़ी के पास खड़ा था। जमीन पर गेहूं की बोरियां पड़ी थी। किसान परेशान लग रहा था। गोपाल पास जाकर बोला चाचा मदद चाहिए क्या? किसान ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा। बेटा बस यह बोरिया बैलगाड़ी में चढ़ा दे। मजदूरी दूंगा। गोपाल ने बिना देर किए काम शुरू कर दिया। बोरियां भारी थी। पसीना बहने लगा। लेकिन उसने एक-एक करके सब बैलगाड़ी में रख दी। काम पूरा हुआ तो किसान ने उसकी हथेली में ₹50 रख दिए। यह उसकी जिंदगी की पहली कमाई थी। अपने दम पर अपने गांव में। घर लौटकर उसने वह ₹50 पिता के हाथ में रख दिए। पिता ने हैरानी से पूछा यह कहां से आए? आज मैंने मजदूरी की। चाचा की मदद की। यही कमाई है। पिता की आंखें भर आई। बेटा मुझे आज तसल्ली हुई कि तू अब सच में हमारे साथ है। उस रात खाना खाते हुए मां ने मुस्कुरा कर कहा। आज रोटी का स्वाद अलग है। यह मेहनत की मिठास है। गोपाल चुपचाप मुस्कुराया। उसके भीतर एक नया जोश था। वह जानता था यह बस शुरुआत है। उस रात जब गोपाल मां की मुस्कान और पिता की भीगी आंखें देख रहा था। उसे भीतर से एक अजीब सी ताकत महसूस हुई। वह जान गया था यही सही रास्ता है। अगली सुबह वह जल्दी उठा। पिता के साथ खेतों में गया। फिर वापस आकर गांव में किसी को मदद की जरूरत है या नहीं यह देखने लगा। कभी किसी की बैलगाड़ी में अनाज भर देता। कभी कुएं से पानी खींचने में मदद करता तो कभी बाजार से सामान लाने का काम कर देता। पैसे ज्यादा नहीं मिलते थे। कभी ₹5 कभी 10, कभी 25। लेकिन उसे हर सिक्के में अपनी मेहनत की गूंज सुनाई देती। काम करते हुए अक्सर कानों में बातें पड़ती। देखो शहर से पढ़कर आया है। अब मजदूरी कर रहा है। सरकारी नौकरी का सपना देख रहा था और अब बैलगाड़ी धकेल रहा है। कुछ लोग तो सीधे उसके सामने कह देते तुम्हारे बाप ने इतनी जमीन बेच दी और तुम यही कर रहे हो। शर्म नहीं आती। पहले तो यह बातें उसे चुभती। लेकिन बाबा की सीख याद आते ही वह चुपचाप मुस्कुराकर काम करता रहता। उसे समझ आ गया था जो लोग बोलते हैं वे कभी मदद नहीं करते। एक दिन पिता ने कहा बेटा कल जहां मैं कम करता हूं उस खेत में बुवाई करनी है। मजदूर नहीं मिल रहे। गोपाल ने तुरंत हामी भर दी। सुबह सूरज उगने से पहले दोनों खेत में पहुंच गए। हाथ में हल, बैलों की रस्सी और पैरों में कीचड़। पसीना बहते-बहते पीठ दर्द करने लगी। लेकिन पिता की आंखों में चमक थी। आज तूने मुझे अकेला नहीं छोड़ा। उस दिन गोपाल ने पहली बार समझा कि खेत में काम सिर्फ रोटी उगाना नहीं है। यह धैर्य और मेहनत का असली इम्तिहान है। अब दिन में वह काम करता। शाम को घर लौटकर नहा धोकर पढ़ाई में लग जाता। पुरानी किताबें ही थी। कागज पर पेंसिल से नोट्स बनाता। बिजली चली जाए तो लालटेन में पढ़ता। कभी-कभी थकान इतनी होती कि आंखें बंद होने लगती। लेकिन वह खुद को जगाकर पढ़ाई पूरी करता। उसके लिए अब पढ़ाई सिर्फ सपना नहीं बल्कि पिता के बलिदान का कर्ज चुकाने का जरिया थी। 6 महीने ऐसे ही बीत गए। इस दौरान उसने गांव में छोटे-मोटे कामों से इतना बचा लिया कि परीक्षा का फॉर्म भर सके। यह उसकी चौथी कोशिश थी। इस बार रेलवे की भर्ती। परीक्षा देने शहर गया। पूरी मेहनत से पेपर हल किया। लौटते वक्त मन में उम्मीद थी कि अबकी बार जरूर होगा लेकिन नतीजे आए तो फिर वही कुछ अंकों से रह गया। कागज पर असफल शब्द देखकर उसके हाथ ठंडे पड़ गए। घर आकर उसने रिजल्ट पिता को दिखाया। पिता ने बस उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा। कोई बात नहीं बेटा। जब तक कोशिश छोड़ नहीं देते हार पक्की नहीं होती। उस रात गोपाल देर तक करवटें बदलता रहा। रिजल्ट की असफलता उसकी आंखों के सामने घूम रही थी। लेकिन अब उसके भीतर हार मानने की आदत नहीं बची थी। पिता के शब्द जब तक कोशिश छोड़ नहीं देते। हार पक्की नहीं होती बार-बार याद आ रहे थे। सुबह जब सूरज की पहली किरण आंगन में पड़ी, वह उठ खड़ा हुआ। मन में एक ख्याल था बाबा से फिर मिलना है। पीपल के पेड़ के नीचे बाबा वैसे ही चटाई पर बैठे थे। जैसे पिछले साल पहली बार मिले थे। उनके सामने मिट्टी का कुल्हड़ और एक पुरानी डायरी पड़ी थी। गोपाल ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया। बाबा फिर से आ गया हूं। लगता है आपको ही मेरी राह दिखानी है। बाबा ने मुस्कुराकर कहा राह कोई और नहीं दिखाता बेटा। बस सही सवाल पूछने वाला मिल जाए तो जवाब खुद मिल जाता है। गोपाल ने बैठते हुए कहा बाबा मैंने मेहनत की पढ़ाई भी की लेकिन सरकारी नौकरी फिर नहीं मिली। अब समझ नहीं आ रहा क्या करूं। बाबा ने धीमी आवाज में कहा तुम अभी भी नौकरी के पीछे भाग रहे हो। जबकि तुम्हें काबिल बनने की जरूरत है। देखो बेटा बाबा ने पास पड़ी लकड़ी उठाकर मिट्टी पर गोल घेरा खींचा। यह घेरा तुम्हारी सोच है। तुम इसमें फंसे हो, सोचते हो कि सरकारी नौकरी ही सफलता है। लेकिन सफलता कई रास्तों से आती है और हर रास्ते की बुनियाद एक ही है। काबिलियत। गोपाल चुपचाप सुन रहा था। अगर तुम इतने काबिल हो जाओ कि कोई तुम्हें नजरअंदाज ना कर सके। तो काम खुद तुम्हारे पास आएगा। चाहे वो नौकरी हो या अपना धंधा। लेकिन बाबा मैं पढ़ाई के अलावा क्या कर सकता हूं? पढ़ाई रखो लेकिन साथ में हुनर सीखो। अपने गांव अपने लोगों की जरूरत समझो। यहां जो कमी है उसे पूरा करने की कोशिश करो। यही असली काबिलियत है। बाबा की बात गोपाल के मन में घर कर गई। उसने तय किया कि अब गांव को सिर्फ रहने की जगह नहीं बल्कि सीखने की जगह मानेगा। वह खेतों में पिता के साथ हर काम करने लगा। बुवाई, कटाई, सिंचाई, गोबर से खाद बनाना। गांव के बुजुर्गों से उसने बैल संभालना सीखा। पंचक्की चलाना यहां तक कि छप्पर छाने तक का काम। बाजार के दिन वह पिता के साथ अनाज बेचने जाता और खरीदारों से मोलभाव करना सीखता। धीरे-धीरे उसने समझा कि गांव की असली ताकत उसकी आत्मनिर्भरता है। अगले 12 महीने ऐसे ही गुजर गए। दिन में खेत और मजदूरी शाम को पढ़ाई। उसकी मेहनत का असर यह हुआ कि घर की हालत कुछ बेहतर हो गई। मां के हाथ में रोज के खर्च के लिए पैसे रहने लगे। पिता की आंखों में तसल्ली थी। गांव वाले जो पहले ताने देते थे अब कहते लड़का मेहनती है कहीं भी काम चला लेता है। लेकिन सरकारी नौकरी की तरफ उसका मन अब पहले जैसा बेताब नहीं था। हां, वह अब भी परीक्षा देता, लेकिन अब उसके लिए यह एक रास्ता था। इकलौता नहीं। एक दिन गांव के स्कूल से छुट्टी पाकर लौटते समय कुछ बच्चे रास्ते में मिले। उनके हाथ में अधूरी कॉपियां और फटी किताबें थी। एक लड़के ने कहा गोपाल भैया मास्टर जी ठीक से पढ़ाते नहीं हमें कुछ समझ नहीं आता। गोपाल ठिठक गया। उसे याद आया जब वह छोटा था तो उसे भी अच्छे शिक्षक की कमी खलती थी। शहर में उसने जो पढ़ाई की थी, वह इन बच्चों के लिए बहुत मददगार हो सकती थी। उस रात उसने बैठकर सोचा अगर मैं इन बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दूं तो उनकी पढ़ाई सुधरेगी और मुझे भी कुछ कमाई हो जाएगी। अगले दिन बाबा के पास गया और अपना विचार बताया। बाबा ने संतोष की मुस्कान के साथ कहा यही है काबिलियत बेटा अपने ज्ञान को बांटना और उससे खुद को और दूसरों को आगे बढ़ाना। बाबा के आशीर्वाद के बाद गोपाल का मन जैसे किसी नए उत्साह से भर गया था। वह जानता था कि अब सिर्फ सोचने से कुछ नहीं होगा। इसे करने के लिए तैयारी करनी पड़ेगी। गोपाल ने सबसे पहले तय किया कि बिना कर्ज लिए सेंटर शुरू करेगा। उसने अपनी रोजमर्रा की मजदूरी, खेत से होने वाली छोटी कमाई और कभी-कभी घर में सब्जियां बेचकर मिलने वाले पैसों को जोड़ना शुरू किया। अब उसका खर्च और भी सख्ती से तय हो गया था। मिठाई या चाय नाश्ते पर एक भी बेकार नहीं खर्च करता। जरूरत हो तो खुद के कपड़े भी पैबंद लगाकर पहन लेता लेकिन पैसे नहीं उड़ाता। मां को उसने बात बताई तो उन्होंने चुपचाप अपने पल्लू में बंधे कुछ नोट उसके हाथ में रख दिए। यह तेरे पिता ने तेरे लिए बचा कर रखे थे। अब तेरे काम आएंगे। पिता ने भी कहा, अगर तेरा इरादा साफ है तो मेहनत रंग लाएगी। 2 महीने में उसके पास इतने पैसे हो गए कि वह गांव के बीचोंबीच एक पुराना कमरा किराए पर ले सके। छत थोड़ी टपकती थी। दीवारों पर पपड़ी उखड़ी हुई थी। लेकिन गोपाल की आंखों में यह किसी महल से कम नहीं था। उसने खुद सफेदी की। पुरानी टीम के टेबल कुर्सियां गांव के एक जानकार सस्ते में ले ली और गांव के बच्चों के लिए चौक बोर्ड बना डाला। पहले दिन उसने गांव में मुनादी करवाई। गोपाल मास्टर जी का नया कोचिंग सेंटर पहली कक्षा मुफ्त सबका स्वागत है। शुरुआत आसान नहीं थी। पहले दिन सिर्फ तीन बच्चे आए, दो प्राथमिक के और एक आठवीं का। उनके माता-पिता को भरोसा नहीं था कि बिना डिग्री के यह लड़का उनके बच्चों को क्या पढ़ाएगा। गांव के कुछ लोग काफूसी करते। सरकारी नौकरी तो मिली नहीं, अब मास्टर बनकर नाम कमाएगा। गोपाल ने इन बातों को अनसुना किया। वह उन तीन बच्चों को ऐसे पढ़ाने लगा जैसे उसके पास 100 छात्र हो। धीरे-धीरे एक हफ्ते में पांच बच्चे हो गए। फिर 10, फिर 15 गोपाल का पढ़ाने का तरीका बच्चों को पसंद आने लगा। वह सिर्फ किताबें नहीं बल्कि जीवन से जुड़े उदाहरण देकर समझाता। गणित सिखाते समय खेत की नाप से सवाल बनाता। हिंदी में गांव की कहानियां पढ़ाता और विज्ञान में खेतों के बीज और पौधों से प्रयोग करता। माता-पिता ने देखा कि बच्चे पहले से ज्यादा उत्साह से पढ़ाई करने लगे हैं। जो परिवार फीस नहीं दे सकते थे, उनके बच्चों को वह मुफ्त पढ़ाता लेकिन उनसे एक वादा लेता। पढ़ाई में ढील नहीं वरना तुम्हारी सीट किसी और को दे दूंगा। एक साल बाद पहला बैच परीक्षा में बैठा। गांव के स्कूल में उसी साल नतीजे आए तो सब हैरान रह गए। गोपाल के पढ़ाए बच्चे टॉपर बने। यहां तक कि जो पहले फेल हो जाते थे। अब अच्छे अंकों से पास हुए। गांव के मास्टर जी भी कहने लगे तुम्हारे पढ़ाने का असर साफ दिख रहा है। गोपाल माता-पिता के चेहरे पर गर्व था। कई लोग जो पहले उसकी हंसी उड़ाते थे। अब अपने बच्चों का नाम सेंटर में लिखवाने आए। धीरे-धीरे सेंटर में जगह कम पड़ने लगी। अब वहां गरीब ही नहीं बल्कि गांव के अमीर किसान भी अपने बच्चों को भेजने लगे। जो बच्चे पहले शहर के महंगे स्कूल जाते थे वे भी छुट्टियों में गोपाल के पास पढ़ने आने लगे। गांव का नजरिया पूरी तरह बदल गया था। गोपाल मास्टर जी ने गांव के बच्चों का भाग्य बदल दिया। यह बदलाव सिर्फ बच्चों के अंक में नहीं बल्कि उनके आत्मविश्वास में भी दिख रहा था। वे अब सपने देखने लगे थे। कोई इंजीनियर बनना चाहता था। कोई शिक्षक तो कोई खेती में नया प्रयोग करना चाहता था। गांव में बच्चों की सफलता की लहर चल पड़ी थी। हर साल सेंटर से निकलने वाले छात्र शहर के कॉलेजों में दाखिला लेने लगे। कुछ ने तो प्रतियोगी परीक्षाओं में भी अच्छा प्रदर्शन किया। गोपाल की मेहनत का असर सिर्फ बच्चों पर ही नहीं बल्कि उसके अपने घर पर भी पड़ा। अब गोपाल की आय स्थिर हो चुकी थी। कोचिंग सेंटर से मिलने वाली फीस और कुछ निजी ट्यूशन से इतना पैसा आने लगा कि घर के खर्च आराम से पूरे हो जाते। एक दिन वह पिता के पास बैठा और बोला अब समय आ गया है कि हम मिट्टी के इस कच्चे घर को पक्का बना लें। पिता ने मुस्कुराकर कहा तूने जो किया उससे हमें किसी पर निर्भर नहीं रहना पड़ा। पक्का घर तो अब तेरे हक का है। कुछ महीनों बाद गांव के बीचोंबीच ईंट पत्थर से बना दो मंजिला घर खड़ा हो गया। मां ने पहली बार पक्की छत के नीचे चूल्हा जलाया तो उनकी आंखों में आंसू थे। गोपाल ने पढ़ाई पूरी तरह छोड़ी नहीं थी। कोचिंग सेंटर चलाने के साथ-साथ वह सरकारी शिक्षक की भर्ती परीक्षा की तैयारी भी करता रहा। तीसरे प्रयास में उसे सफलता मिल गई। पत्र आया आपका चयन प्राथमिक विद्यालय शिक्षक पद के लिए हुआ है। घर में खुशी का माहौल था। लेकिन सबसे बड़ी बात यह हुई कि गोपाल ने ट्रांसफर की अर्जी दी और कुछ महीनों में उसका पोस्टिंग आदेश आया। स्थान राजकीय प्राथमिक विद्यालय ग्राम उसका अपना गांव। जब वह बतौर सरकारी शिक्षक अपने ही गांव के स्कूल में पहली बार पहुंचा तो बच्चे दौड़कर उसके पास आ गए। गोपाल मास्टर जी आ गए। यह आवाज पूरे आंगन में गूंज उठी। स्कूल की हालत पहले जैसी नहीं रही थी। अब बच्चे समय पर आते किताबें संभाल कर रखते और पढ़ाई में रुचि लेने लगे थे। यह सब गोपाल के कोचिंग सेंटर के असर से हुआ था। लेकिन अब वह स्कूल में भी वही जोश लेकर पढ़ाने लगा। वह जानता था कि सरकारी तनख्वाह से स्थिरता आएगी। लेकिन असली खुशी तब होगी जब गांव का हर बच्चा पढ़ लिखकर अपने पैरों पर खड़ा होगा। कुछ महीनों बाद ब्लॉक स्तर पर एक बड़ा सम्मान समारोह हुआ जिसमें क्षेत्र के सभी सफल शिक्षकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को बुलाया गया। जब गोपाल का नाम पुकारा गया। शिक्षा और समाज सेवा में विशेष योगदान के लिए सम्मानित गोपाल कुमार पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। स्टेज पर जाते समय उसकी नजर भीड़ में बैठे बाबा पर पड़ी। सफेद दाढ़ी वाले वही पीपल के पेड़ के नीचे बैठने वाले बाबा अब भी उसी सादगी में मुस्कुरा रहे थे। गोपाल ने मंच से बोलना शुरू किया। मेरी कहानी किसी एक दिन की नहीं। यह सालों की मेहनत और सीख का परिणाम है। मैंने भी कभी सोचा था कि सफलता सिर्फ सरकारी नौकरी में है। लेकिन बाबा ने मुझे सिखाया काबिल बनो। सफलता खुद तुम्हारे पास आएगी। आज मैं सरकारी शिक्षक हूं। लेकिन उससे पहले मैं एक गांव का बेटा हूं। जिसने यह सीखा कि वह थोड़ा रुका फिर कहा रास्ता खुद बनाना पड़ता है। दुनिया आपको तभी पहचानेगी जब आप अपनी मेहनत से अपने दम पर एक नई दिशा बनाएंगे। सरकारी नौकरी, व्यापार, खेती, रास्ता कोई भी हो सकता है। लेकिन मंजिल वही है अपने और अपने गांव का भविष्य सवारना। आज मैं आप सब से यही कहूंगा हालात कैसे भी हो कोशिश मत छोड़ो। अगर एक गांव का साधारण लड़का बदल सकता है तो कोई भी बदल सकता है। तालियों की गड़गड़ाहट के बीच वह मंच से उतरा और बाबा ने पास आकर उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा बेटा मैंने कहा था ना रास्ता खुद बनाना पड़ता है। उस दिन के बाद गोपाल का नाम सिर्फ एक मास्टर के रूप में नहीं बल्कि प्रेरणा के रूप में लिया जाने लगा। वह बच्चों को पढ़ाता रहा। नए शिक्षण तरीके लाता रहा और हर साल गांव से दर्जनों बच्चे बड़ी सफलताएं हासिल करने लगे। पीपल के पेड़ के नीचे बाबा की बातें अब सिर्फ गोपाल के लिए नहीं बल्कि पूरे गांव के लिए एक मंत्र बन चुकी थी। रास्ता खुद बनाना पड़ता है। दोस्तों जिंदगी में हालात चाहे जैसे भी हो हमें उनके बहाने नहीं ढूंढने बल्कि उनसे निकलने के रास्ते बनाने होते हैं। सिर्फ एक मंजिल पर अटक कर मत रहिए। खुद को इतना काबिल बनाइए कि हर दरवाजा आपके लिए खुलने लगे। याद रखिए मौके हमेशा तैयार लोगों के पास आते हैं और जो मेहनत के साथ सीखता और आगे बढ़ता है वही सच में अपनी तकदीर बदल देता है। दोस्तों अगर यह बात आपके दिल तक पहुंची हो तो इस वीडियो को लाइक और शेयर करके और लोगों तक पहुंचाएं। कमेंट में जरूर लिखें मैं खुद अपना रास्ता बनाऊंगा। ताकि पूरी दुनिया को पता चले कि आप तैयार हैं। और हां, ऐसे ही सच्ची और प्रेरणादायक बातें सुनने के लिए। हमारे YouTube चैनल ट्रुथ ऑफ लाइफ को सब्सक्राइब कर लीजिए। क्योंकि आपका अगला कदम आपकी पूरी जिंदगी बदल सकता
4) https://youtu.be/D-8v-ZepjCA?si=QSlzDtL7n8sPrRIW
दोस्तों 15 साल के लड़के अजय का परिवार गांव के सबसे गरीब लोगों में गिना जाता था। घर मिट्टी का था। छत इतनी जजर की बारिश की हर बूंद सीधा अंदर टपकती थी। ठंडी रातों में चादर एक होती थी और वह भी तीन लोगों के लिए। रोज सुबह उठते ही अजय के दिमाग में एक ही सवाल होता। आज खाने को कुछ मिलेगा या नहीं? मां सुबह-सुबह खेत पर निकल जाती दूसरों के खेतों में काम करने। पिता कभी ईंट गारा ढोते, कभी किसी निर्माण साइट पर मजदूरी करते। दिन भर का मेहताना इतना होता कि अगर रोटी मिलती तो सब्जी नहीं। और अगर किसी दिन सब्जी आ भी जाती तो गैस या लकड़ी नहीं होती। अजय रोज देखता था। मां की हथेलियों पर पड़े छाले और पिता की पीठ पर सूखते पसीने के निशान। उसकी उम्र खेलने की थी। लेकिन उसका बचपन भूख, शर्म और मजबूरी के बीच फंस चुका था। एक दिन उसका पिता एक अमीर जमींदार के यहां मजदूरी करने गया था। थोड़ी देर देर हो गई तो उसी अमीर आदमी ने सरेआम गाली देकर उसे भगा दिया। लोग हंस रहे थे और अजय थोड़ी दूर पर खड़ा सब कुछ देख रहा था। उस दिन उसने कुछ नहीं कहा लेकिन उसकी आंखों में आंसू नहीं आंख थी। शाम को जब पिता घर लौटे वो चुप थे। मां ने कुछ नहीं पूछा। शायद अब पूछने की भी आदत छूट चुकी थी। अजय एक कोने में बैठा रहा। दिल में बस एक ही बात बार-बार गूंज रही थी। मेरे बाप ने पूरी जिंदगी मेहनत की। लेकिन आज उसके हिस्से में सिर्फ गाली आई। क्या यही मिलेगा हमेशा? मेहनत के बदले अपमान। उस रात अजय ने पहली बार अपने लिए एक वादा किया। अब मैं किसी के नीचे नहीं रहूंगा। चाहे जितनी भी मेहनत करनी पड़े। लेकिन अब मैं खुद की इज्जत खुद बनाऊंगा। अजय ने शहर जाने का फैसला किया। अजय गांव से निकला तो साथ में ना कोई पैसा था ना कोई योजना। उसके पास सिर्फ एक जोड़ी कपड़े और एक जिद्दी इरादा था। अब जो भी होगा यहीं से बदललूंगा। शहर में कदम रखते ही उसे सबसे पहले अपने होने की औकात समझ में आ गई। ना कोई जानने वाला ना सिर पर छत, ना जेब में सिक्का। पहले दिन से ही पेट में भूख थी और आंखों में नींद। कभी होटल में बर्तन धोता, कभी ईंटों का ढेर धोता, कभी गाड़ियों पर कपड़ा मारता। जो भी मिला वो कर लिया। रातें फुटपाथ पर गुजरी बिना चादर बिना उम्मीद के। बरसात में भीगते हुए कई बार सोचा क्या वापस लौट जाऊं? लेकिन हर बार खुद से एक ही बात कहता। तू यहां सोचने नहीं लड़ने आया है। हर एक दिन ने उसे थोड़ा-थोड़ा बदलना शुरू किया। शहर में मजदूरी करते-करते अजय ने सिर्फ हाथ नहीं चलाए। अपनी आंखें और दिमाग भी खोल कर रखा। वो जिस भी साइट पर काम करता बस ईंट नहीं उठाता। वो लोगों को देखता, बातें सुनता और काम को समझता। कौन कितना रेट लेता है? कौन किससे माल मंगवाता है। कौन किससे कैसे बात करता है? कैसे थोड़ा बोलकर ज्यादा कमाया जाता है। वो हर बात नोट करता गया। अपने मन में चुपचाप एक दिन उसने सोचा क्यों ना अब खुद काम मांगने जाऊं पर मजदूर बनकर नहीं टीम बनाकर उसने अपने जैसे तीन से चार मेहनती मजदूरों को जोड़ा सबको कहा अब हम किसी के कहने पर काम नहीं करेंगे खुद वादा करेंगे कम पैसों में समय पर ईमानदारी से काम पूरा करेंगे पहले कुछ लोग हंसे कहा तुम क्या ठेकेदारी करोगे पर फिर एक बिल्डिंग िंग साइट पर जब उन्होंने दो दिन में पानी का टैंक बना दिया। वहीं से उनकी पहचान शुरू हो गई। काम वक्त पर हुआ सफाई से हुआ और बिना किसी चोरीच पार्टी के। अब अजय उस मुकाम पर था जहां लोग उसे सिर्फ मजदूर नहीं काम का आदमी कहने लगे थे। वो अब सिर्फ दूसरों के कहने पर काम नहीं करता था। वो खुद काम बनाता था। उसने मेहनती लोगों की एक छोटी टीम बना ली थी। काम बड़ा हो या छोटा वो खुद भी बराबर मेहनत करता था। वो ऊपर खड़ा होकर सिर्फ आदेश नहीं देता था। वो नीचे आकर सबसे पहले ईंट उठाता था। अब वो खुद साइट पर माल मंगवाता था। काम का रेट खुद तय करता था। हर दिन कुछ नया सीखता और टीम को भी सिखाता था। वो जान चुका था कि काम सिर्फ हाथ से नहीं भरोसे से भी चलता है। उसकी सादगी, समय पर काम और ईमानदारी। उसे धीरे-धीरे छोटे ठेकेदारों की भीड़ से अलग करने लगी। कई साल बाद अजय अपने गांव लौटा। लेकिन अब वह सिर्फ लौट नहीं रहा था। पहचान लेकर आ रहा था। वो वही अजय था जो कभी गांव में जूठन उठाता था। जिसे कभी स्कूल की किताबें नहीं मिली थी। जिसे कभी किसी ने काबिल समझा ही नहीं था। लेकिन अब लोग नजरें चुराते नहीं। नजरें उठाकर देखते थे। कोई कहता अरे यह वही अजय है। तो कोई कहता हम तो सोचते थे यह कुछ कर ही नहीं पाएगा। अजय मुस्कुराता रहा क्योंकि अब उसे कुछ साबित करने की जरूरत नहीं थी। उसका काम खुद बोल रहा था। अजय आज भी करोड़पति नहीं है। उसके पास ना महंगी गाड़ियां हैं ना कोई बड़ा बंगला। लेकिन आज उसके पास वो चीज है जो पैसे से नहीं खरीदी जा सकती। इज उसकी अपनी एक टीम है। लोग उस पर भरोसा करते हैं। और सबसे बड़ी बात अब वो किसी का नौकर नहीं बल्कि काम देने वाला इंसान बन चुका है। वो दिखावे में नहीं। अपने उसूलों और मेहनत में यकीन रखता है। दोस्तों सबसे पहले अजय ने सीखा सिर्फ मेहनत करने से पेट नहीं भरता। अगर मेहनत में समझदारी ना हो तो इंसान पूरी जिंदगी एक ही जगह पर घूमता रह जाता है। पसीना बहाना जरूरी है लेकिन उसके पीछे सोच भी होनी चाहिए। वरना जिंदगी सिर्फ मजदूरी बनकर रह जाएगी। फिर जब उसके पिता को गाली दी तो उस वक्त अजय ने सीखा इज्जत मांगने से नहीं मिलती। कमानी पड़ती है और उसके लिए दर्द भी सहना पड़ता है। अगर तू गरीब है तो तुझे दो चीजें खुद बनानी होंगी। अपनी किस्मत और अपनी पहचान। शहर में रहकर उसे भूख ने सिखाया सब्र क्या होता है। जब पेट में आग लगी हो और जेब खाली हो तब इंसान को खुद पर काबू रखना आ जाता है। तिरस्कार ने सिखाया कब चुप रहना है और कब बोलना है। जब लोग ताने मारते थे। अजय चुप रहता था क्योंकि वह जानता था। आज नहीं तो कल बोलने का वक्त खुद आ जाएगा। अकेलापन सिखाता गया। खुद ही सहारा बनना पड़ता है। शहर की भीड़ में कोई किसी का नहीं होता। वह समझ गया कि अगर गिरा तो उठाने वाला कोई नहीं आएगा। खुद ही गिरना है। खुद ही उठना है। कभी-कभी जिंदगी चुपचाप मारती है। पर हर चोट कुछ ना कुछ सिखा ही जाती है। फिर जब उसने 2 दिन में पानी का टैंक बना दिया तो उसने सीखा। दुनिया को समझाने की जरूरत नहीं। दुनिया को दिखाने की जरूरत होती है। काम जब बोलेगा तब नाम अपने आप गूंजेगा। और फिर जब अजय खुद मॉल मंगवाने लग गया। खुद कम को करने लगा। तब उसने सीखा नेतृत्व का मतलब सिर्फ कुर्सी पर बैठना नहीं होता। नेतृत्व का मतलब होता है सबसे आगे चलना। अगर तू खुद मेहनत नहीं करेगा तो तेरे साथ कोई दिल से नहीं चलेगा। जब गांव में अजय ने कदम रखा उस दिन गांव में सीखा। गरीब का बेटा गरीब ही रहेगा। यह कहने वाले भूल गए थे कि हालात बदलते हैं। पर सोच बदलनी हो तो किसी अजय को देख लो। अजय ने साबित कर दिया अगर इरादा मजबूत हो तो एक मजदूर का बेटा भी मालिक बन सकता है। अजय का कहना था कि मैंने कभी स्कूल नहीं देखा। ना किताबें पढ़ी लेकिन भूख ने सिखाया कैसे झुकना नहीं। अपमान ने सिखाया कब चुप रहना है और कब बोलना है और हालातों ने सिखाया अगर जिंदगी में कुछ चाहिए तो किसी के भरोसे मत बैठो खुद खड़ा होना सीखो। दोस्तों यह कहानी सिर्फ अजय की नहीं है। यह कहानी हर उस इंसान की है जिसने हालातों से हार मानने की बजाय उन्हीं को अपना गुरु बना लिया। दोस्तों जिंदगी की सच्चाई, मेहनत की कहानी और हौसले की उड़ान यही है ट्रुथ ऑफ लाइफ। अगर यह बातें आपके दिल को छूती हैं, तो वीडियो को लाइक करें। अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमारे YouTube चैनल ट्रुथ ऑफ लाइफ को सब्सक्राइब करके हमारे सफर का हिस्सा बने। क्योंकि यहां हम सिर्फ कहानियां नहीं सुनाते। हम जिंदगी जीना सिखाते
5) https://youtu.be/V4cEBSIEWjA?si=5IHaVi48Nt2ysizy
बहुत समय पहले की बात है। एक छोटे से शहर में रहने वाला राघव नाम का युवक रोज मेहनत करता था। वह ईमानदार और मेहनती था। लेकिन उसकी जिंदगी संघर्षों से भरी थी। हर सुबह वह शहर के बाजार या आसपास के गांवों में काम की तलाश में निकल जाता। कभी मजदूरी, कभी दिहाड़ी जो भी मिल जाए। शाम को जो कमाई होती उससे खाना बनाता, खाता और सो जाता। एक दिन जब वह पूरा दिन काम की तलाश में भटक कर निराश घर लौट रहा था। तभी पीछे से एक आवाज आई। अरे बेटा क्या यहां कोई मजदूर मिलेगा? राघव ने मुड़कर देखा। एक उम्रदराज बुजुर्ग खड़े थे। झुकी कमर, सफेद बाल और कंधे पर तीन भारी बोरियां। राघव बोला जी मैं काम कर सकता हूं। क्या करना है? बुजुर्ग मुस्कुराए और बोले मुझे इस पहाड़ी रास्ते से होते हुए अगले गांव तक जाना है। यह दो बोरियां मैं उठा सकता हूं। लेकिन तीसरी बहुत भारी है। क्या तुम इसे उठा सकते हो? मेहनताना के रूप में। मैं तुम्हें तीन सोने के सिक्के दूंगा। सोने के सिक्कों का नाम सुनकर राघव की आंखें चमक उठी। उसने बोरी उठाई और तुरंत बोला, यह तो बहुत भारी है। बुजुर्ग ने धीरे से कहा, हां बेटा, क्योंकि इसमें पीतल के सिक्के भरे हैं। राघव ने हिम्मत दिखाई और बोरी उठाकर बुजुर्ग के साथ चल पड़ा। चलते-चलते उसने देखा कि बुजुर्ग बार-बार उसकी तरफ देख रहा है। राघव के मन में ख्याल आया। शायद इन्हें लगता होगा कि मैं भाग जाऊंगा। लेकिन मैं ऐसा इंसान नहीं हूं। थोड़ी देर बाद वे एक नदी के किनारे पहुंचे। राघव ने तुरंत पानी में उतर कर बोरी कंधे पर रखी और नदी पार करने लगा। लेकिन बूढ़ा व्यक्ति किनारे ही खड़ा रह गया। बुजुर्ग ने किनारे खड़े रहकर कहा, बेटा मैं बूढ़ा हूं। दो बोरियां लेकर नहीं उतर सकता। अगर मैं कोशिश करूंगा तो पानी के साथ बह जाऊंगा। क्या तुम एक और बोरी उठा लोगे? उसके बदले तीन और सोने के सिक्के दूंगा। राघव ने कहा, दे दीजिए। बूढ़े ने झिझकते हुए कहा, लेकिन यह बोरी चांदी के सिक्कों से भरी है। अगर तुम भाग गए, तो मैं पकड़ भी ना पाऊंगा। राघव थोड़ा नाराज हुआ और बोला, "मैं मेहनत करता हूं। चोरी नहीं। आप निश्चिंत रहिए। वो दूसरी बोरी लेकर नदी पार कर गया। अब दोनों साथ चलने लगे। थोड़ी दूर बाद पहाड़ी चढ़ाई शुरू हुई। रास्ता सा और मुश्किल था। राघव ने देखा कि बुजुर्ग नीचे रुक गए। उसने आवाज लगाई, आइए क्यों रुक गए? बुजुर्ग ने जवाब दिया, बेटा, यह चढ़ाई मेरे बस की नहीं है। यह बोरी लेकर चढ़ना मुश्किल है। अगर तुम इसे भी उठा लो, तो तीन और सोने के सिक्के दूंगा। लेकिन इसमें असली सोने के सिक्के हैं। अगर तुम भाग गए तो राघव ने थोड़ा ऊंची आवाज में कहा मैं आपको कितनी बार कहूं कि मैं ईमानदार मजदूर हूं। आप दीजिए बोरी। उसने तीसरी बोरी भी उठा ली और चढ़ाई शुरू कर दी। पर चलते-चलते उसके मन में एक नकारात्मक विचार आया। उसने सोचा क्यों ना भाग जाऊं। इतना पैसा होगा तो पूरी जिंदगी आराम से कट जाएगी। मैं जवान हूं। मेरे सामने पूरी जिंदगी है। बुजुर्ग वैसे भी बूढ़े हैं। इतने पैसों का क्या करेंगे? इसी सोच में बहकर राघव तीनों बोरियां लेकर तेजी से भागा और अपने घर पहुंच गया। उसने सांस संभालते ही बोरियां खोली। लेकिन जैसे ही खोली उसकी आंखें फटी रह गई। अंदर सोना चांदी नहीं बल्कि छोटे-छोटे पत्थर थे। सदमे में राघव बैठ गया। उसी समय उसे तीसरी बोरी में एक चिट्ठी मिली। कांपते हाथों से उसने उसे खोला। उस पर लिखा था मैं इस राज्य का राजा हूं। मेरी कोई संतान नहीं है और मैं बूढ़ा हो गया हूं। मैं एक सच्चे और ईमानदार व्यक्ति की तलाश में था। जिसे मैं अपना उत्तराधिकारी बना सकूं। अगर तुमने लालच में आकर बोरियाओं लेकर भागने की बजाय मेरे साथ अंत तक सफर पूरा किया होता तो आज तुम्हारी किस्मत बदल जाती। लेकिन तुम्हारे लालच ने तुम्हें परख लिया। राघव पत्थरों के ढेर पर बैठकर रो पड़ा। उसने सोचा बस एक पल की लालच ने मेरी सारी ईमानदारी पर मिट्टी डाल दी। काश मैं अपने मन के लालच को रोक पाता। यह कहानी हमें विचारों की शक्ति और हमारे जीवन पर उनके गहरे प्रभाव को समझाती है। हमारे विचार ही हमारी किस्मत के निर्माता होते हैं। इस कहानी में राघव शुरू में एक ईमानदार युवक था। लेकिन जैसे ही उसके मन में नकारात्मक विचार आए। वह अपनी ही ईमानदारी के सिद्धांतों से डगमगा गया। पहले विचार आया अगर मैं यह बोरिया लेकर भाग जाऊं तो बूढ़ा मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। यही अगर वह रुक जाता तो उसकी ईमानदारी बच जाती। लेकिन उसने सोच को आगे बढ़ने दिया। अगर मेरे पास यह दौलत होगी तो मेरी जिंदगी आसान हो जाएगी। शादी कर लूंगा। सुख सुविधाओं से भरी जिंदगी जी सकूंगा। यही विचारों की श्रृंखला धीरे-धीरे लालच में बदल गई और अंततः उसे ऐसा कदम उठाने पर मजबूर कर दिया जिसने उसकी जिंदगी का सबसे बड़ा अवसर छीन लिया। यही हमें सिखाता है कि हमारे विचार हमारे सबसे बड़े मित्र भी बन सकते हैं और शत्रु भी। यदि हम अपने विचारों पर नियंत्रण रखें तो हम अपने जीवन की दिशा बदल सकते हैं। सकारात्मक विचार हमारे जीवन में शांति, सुख और सफलता लाते हैं जबकि नकारात्मक विचार हमें पछतावे की राह पर ले जाते हैं। इसलिए अपने विचारों पर नजर रखें और हमेशा पॉजिटिव सोें। दोस्तों, अगर आपको यह कहानी पसंद आई हो, तो कृपया इसे लाइक करें और अपने दोस्तों के साथ शेयर करें। अगर आप ऐसी ही और प्रेरक कहानियों को सुनना चाहते हैं तो हमारे चैनल को सब्सक्राइब करें और बैल आइकन दबाना ना भूलें ताकि हमारी नई कहानियां आप तक सबसे पहले पहुंच सके।
6) https://youtu.be/xtnQ9XAl0Uw?si=j2yUExpV9ZKcClrm
राजस्थान का बीकानेर जिला और उसके भीतर बसा एक छोटा सा गांव नवलगढ़। दूर तक फैली तपती रेत, तेज लू के थपड़े और आसमान से बरसती आग जैसी धूप। यहां की जिंदगी रेगिस्तान जैसी ही थी। सूखी कठिन और विम्रहम। कुएं और तालाब सूख चुके थे। और हर घर में सबसे बड़ा संघर्ष था पानी। गांव के चौपाल पर अक्सर झगड़े होते। किसका घड़ा पहले भरेगा? किसे दो लोटा पानी मिलेगा और किसके हिस्से सिर्फ प्यास रह जाएगी। इसी गांव में रहता था एक लड़का इरफान। उम्र सिर्फ 16 साल लेकिन जिम्मेदारियों का बोझ उसकी पीठ को वक्त से पहले झुका चुका था। पिता पुराने ट्रक पर हेल्पर का काम करते थे। जिनकी आमदनी इतनी कम थी कि महीने भर का राशन भी किसी चमत्कार से पूरा होता। मां दूसरों के घर झाड़ू पोछा करती। तभी चूल्हे में आग जल पाती। उनका घर मिट्टी और टाट का बना हुआ था। छोटा सा कमरा जिसमें गर्मियों में छत से धूप झांकती और बरसात में पानी टपकता। इरफान की सुबह गांव के बाकी बच्चों जैसी नहीं थी। सुबह 4:00 बजे उठना, सिर पर खाली मटका रखना और 5 कि.मी. दूर चल पड़ना। रास्ता ऐसा कि तपती रेत नंगे पैरों को जला देती। लेकिन पानी लाना जरूरी था। कई बार कुएं पर इतनी भीड़ होती कि घंटों लाइन में खड़ा रहना पड़ता और जब तक घड़ा भरकर घर लौटता तब तक सूरज सिर पर चढ़ चुका होता। फिर मां का हाथ बटाना, छोटे भाई बहनों को तैयार करना और खुद किसी तरह स्कूल पहुंचना। उसके पास सिर्फ एक ही यूनिफार्म थी। फटी हुई जिसे रोज रात को धोकर सुबह पहनना पड़ता। पैरों में टूटी चप्पलें जिनसे चलते हुए मिट्टी झांक जाती। क्लास में बच्चे अक्सर उसका मजाक उड़ाते। अरे देखो यह गरीब इंजीनियर बनने चला है। कभी ताने कभी हंसी, कभी अपमान लेकिन इरफान इन सबसे परे अपनी किताबों में डूबा रहता। उसके दिल में एक सपना था। कभी मैं अपने गांव का नाम रोशन करूंगा। यही सपना उसे टूटने नहीं देता था। उसकी सबसे बड़ी ताकत थे उसके अध्यापक शर्मा सर। एक दिन क्लास में उन्होंने कहा था बच्चों हालात इंसान को बदल देते हैं। लेकिन असली विजेता वही है जो हालात को बदल दे। यह शब्द सीधा इरफान की आत्मा में उतर गए। उस दिन से उसने ठान लिया कि चाहे रास्ता कितना भी कठिन क्यों ना हो हालात को वह अपनी मेहनत से झुका कर रहेगा। कुछ ही दिनों बाद गांव में विज्ञान प्रदर्शनी का ऐलान हुआ। खबर सुनते ही बच्चों के चेहरे चमक उठे। लेकिन इरफान का नाम आते ही सब हंस पड़े। तेरे पास ना किताबें हैं ना औजार। तू क्या मॉडल बनाएगा? हंसी उड़ती रही। मगर इरफान चुप रहा। उसने सोचा जिनके पास कुछ नहीं होता। उनके पास सोच होती है और वही सबसे बड़ी ताकत है। उसने गांव-गांव से कबाड़ इकट्ठा किया। पुराने पाइप, टूटी बाल्टियां, खाली बोतलें और अपनी बहन की खिलौना कार से निकाली छोटी सी मोटर। दिनरा मेहनत की। हाथों में छाले पड़ गए। लेकिन आखिरकार उसने बना डाला एक छोटा सा मॉडल। पानी बचाओ सिस्टम। इसमें पाइप से टपकता पानी टैंक में इकट्ठा होता और वहां से फिल्टर होकर खेती के लिए उपयोगी बनता। प्रदर्शनी के दिन बच्चों ने अपने-अपने चमचमाते मॉडल लगाए। कहीं बिजली से चलने वाली कार तो कहीं महंगे केमिकल्स वाले प्रयोग भीड़ सब देख रही थी। और फिर आया इरफान का नंबर। उसका मॉडल भले ही साधारण दिख रहा था। लेकिन जब उसने समझाना शुरू किया यह सिस्टम हमारे गांव जैसे इलाकों में हर बूंद बचा सकता है तो पूरा हॉल चुप हो गया। जज ने पूछा इतना शानदार आईडिया कहां से आया? इरफान ने सिर झुका कर धीमे स्वर में कहा। यह मेरे गांव की जरूरत है। मैंने बस उसी से सोचा। उस पल उसके जीवन के अंधेरे में पहली बार उम्मीद की एक उजली किरण चमकी। गांव की प्रदर्शनी जीतने के बाद अब बारी थी शहर के स्कूल में होने वाले फाइनल की। लेकिन वहां तक पहुंचना आसान नहीं था। घर में तो रोज की रोटी के लाले थे। बस का किराया भी भारी लग रहा था। तब मां ने अपनी छोटी सी चांदी की पायल और कान की बाली गिरवी रख दी। जब इरफान जाने लगा तो मां ने उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहा, बेटा तू सिर्फ अपना नहीं। पूरे गांव का सपना लेकर जा रहा है। यह शब्द उसके दिल में आग की तरह धकने लगे। पहली बार जब वह शहर पहुंचा तो आंखें फटी की फटी रह गई। ऊंची-ऊंची इमारतें, सजीधजी सड़कें, एसी से ठंडे हॉल और वहां इकट्ठा बड़े-बड़े स्कूलों के बच्चे। सबके पास शानदार और महंगे मॉडल थे। किसी ने सोलर कार बनाई थी। किसी ने ड्रोन, किसी ने वाटर प्यूरिफिकेशन मशीन। सब अंग्रेजी में आत्मविश्वास से प्रेजेंटेशन दे रहे थे। इरफान को लगा जैसे वह किसी और ही दुनिया में आ गया है। उसके भीतर घबराहट की लहरें उठी। हाथ पसीने से भीगने लगे और गला सूख गया। जब उसका नंबर आया तो उसने किसी तरह हिम्मत जुटाई और मंच पर अपना मॉडल रखा। शुरुआत में सब ठीक चला लेकिन अचानक मोटर फंस गई और पानी का बहाव रुक गया। पूरा हॉल्ट ठहाकों से गूंज उठा। अरे गांव का लड़का क्या जाने टेक्नोलॉजी क्या होती है। इरफान की आंखों में आंसू भर आए। दिल जैसे बैठने ही वाला था। उस पल उसे मां के आंसुओं से भरे चेहरे की याद आई पिता की थकी हुई आंखों की। और शर्मा सर के वह शब्द हालात इंसान को बदल देते हैं। लेकिन विजेता वही है जो हालात को बदल दे। उसने हार मानने के बजाय हिम्मत दिखाई। मंच पर ही झुककर उसने मोटर खोला। उसमें फंसी मिट्टी को निकाला और फिर से जोड़ दिया। और फिर जैसे किसी चमत्कार ने साथ दिया हो। मॉडल चालू हो गया। पानी धीरे-धीरे टैंक में जमा होने लगा और साफ होकर खेतों की ओर बहने लगा। पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। वहां मौजूद हर आंख उसकी मेहनत और आत्मविश्वास देखकर दंग रह गई। नतीजे का ऐलान हुआ। इरफान का मॉडल दूसरे स्थान पर आया। उसके लिए यह जीत सोने से भी कीमती थी। इस उपलब्धि के साथ उसे स्कॉलरशिप मिली। आरटीयू कॉलेज में दाखिले का मौका और सरकार की ओर से सम्मान। जब वह गांव लौटा तो वही लोग जो कभी उसका मजाक उड़ाते थे। अब उसकी मिसाल देने लगे। बच्चे उसकी ओर दौड़ते और कहते इरफान भैया हमारे गांव का हीरो है। उस दिन उसने समझ लिया कि हार और जीत हर किसी के हिस्से आती है। लेकिन असली फर्क इस बात से पड़ता है कि आप हार के वक्त झुकते हो या लड़ते हो। कॉलेज पहुंचकर इरफान की दुनिया और बड़ी हो गई। उसने देखा कि उसके जैसे ना जाने कितने बच्चे हैं जिनके सपने गरीबी और हालात में दब जाते हैं। कई बच्चे टैलेंटेड थे लेकिन किताबें खरीदने तक के पैसे नहीं थे। तभी उसने ठान लिया कि वह सिर्फ अपनी किस्मत नहीं बदलेगा बल्कि औरों का सहारा भी बनेगा। उसने कॉलेज की पढ़ाई के साथ-साथ गांव लौटकर बच्चों के लिए फ्री साइंस और इंग्लिश क्लास शुरू की। शाम को लाल अटेन की रोशनी में बैठकर वह बच्चों को पढ़ाता। उन्हें समझाता कि सपनों को हालात से बड़ा बनाना है। धीरे-धीरे उसकी मेहनत और सोच पूरे इलाके में चर्चा का विषय बन गई। अखबारों में उसके काम की खबरें छपने लगी। टीवी चैनल्स पर उसका इंटरव्यू आने लगा। उसे टेक्स टॉक्स और यूथ आइकॉन अवार्ड्स जैसे बड़े मंचों पर बुलाया गया। लेकिन इरफान का सपना इससे भी बड़ा था। उसने अफसर बनने का फैसला किया और दिन रात मेहनत में जुट गया। आखिरकार उसकी लगन रंग लाई और वह सरकारी अफसर बन गया। आज इरफान ने अपने गांव और आसपास के इलाकों में पानी बचाने की नई-नई तकनीकें लगवाई है। उसने छोटे-छोटे टैंक, पाइपलाइन और रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाकर गांवों को पानी की समस्या से राहत दिलाई है। नवलगढ़ जिसे लोग कभी प्यासा गांव कहते थे, आज मिसाल बन गया है। गांव के लोग गर्व से कहते हैं, इरफान ने हमारे गांव का नाम रोशन कर दिया। उसकी कहानी हमें यह सिखाती है कि हालात चाहे कितने भी मुश्किल क्यों ना हो इंसान की सबसे बड़ी ताकत उसका हौसला है। असफलता मिलने पर भी हार मत मानो क्योंकि असली हीरो वही है जो गिरकर भी उठे। जिस दुनिया ने कभी तुम्हें कमजोर समझा वही एक दिन तुम्हें मिसाल मानकर ताली बजाएगी। टूटी चप्पल और पुरानी यूनिफार्म से शुरू हुई यह यात्रा आज हजारों बच्चों के लिए प्रेरणा बन चुकी है और साबित करती है कि इंसान अगर ठान ले तो रेगिस्तान में भी सपनों की नदियां बहा सकता है। [संगीत]
7) https://youtu.be/HSzXkIMNdl0?si=ktVRA6Ke8N1m6bqF
क्या आप जानते हैं कि सही सोच आपकी जिंदगी को पूरी तरह बदल सकती है आपने कभी सोचा है कि क्यों कुछ लोग हर मुश्किल में भी मुस्कुराते हैं और हर हाल में खुश रहते हैं जबकि कुछ लोग छोटी-छोटी बातों में उलझ करर निराश हो जाते हैं क्या ऐसा उनके हालात की वजह से है या उनके पास कोई खास ताकत है नहीं फर्क सिर्फ उनके सोचने के तरीके में है सोचिए अगर आप हर चुनौती को एक मौके की तरह देख पाएं अगर हर परेशानी आपको तोड़ने की बजाय मजबूत बना सके तो आपकी जिंदगी कितनी बदल सकती है लेकिन सवाल यह है सही तरीके से सोचना आखिर सीखा कैसे जाए आज की इस वीडियो में मैं आपको 10 ऐसे पावरफुल और साइंटिफिकली प्रूवन टिप्स बताने वाला हूं जो आपकी सोचने की क्षमता को बेहतर बनाएंगे यह टिप्स ना सिर्फ आपकी मेंटल हेल्थ को बूस्ट करेंगे बल्कि आपको हर स्थिति में पॉजिटिव और कॉन्फिडेंट भी बनाएंगे तो अगर आप अपनी जिंदगी को एक नई दिशा देना चाहते हैं और खुद को पहले से ज्यादा मजबूत और खुश देखना चाहते हैं तो इस वीडियो को आखिर तक जरूर देखें यह टिप्स आपकी सोच को और आपकी सोच आपकी किस्मत को बदलने की ताकत रखते हैं चलिए इस सफर की शुरुआत करते हैं पहला अपने इमोशंस पर ध्यान दें हमारे दिमाग में जो घटनाएं होती हैं उनमें से केवल एक छोटा हिस्सा हमारी कॉन्शसनेस तक पहुंचता है मस्तिष्क हर पल बड़ी मात्रा में जानकारी को संसाधित करता है जिसे हम पूरी तरह से समझ नहीं पाते हमारी इमोशंस इन घटनाओं का परिणाम होती है जब भी कोई भावना उत्पन्न होती है इसे अनदेखा ना करें यह आपके दिमाग का एक संकेत है अपने इमोशंस को समझने की कोशिश करें क्योंकि यह आपका मस्तिष्क आपको महत्त्वपूर्ण जानकारी देने की कोशिश कर रहा है अगर आप अपनी इमोशंस को अनदेखा करेंगे तो आप अपने अंदर के संकेतों को खो देंगे अपनी इमोशंस पर ध्यान देने से आप अपने निर्णयों को बेहतर बना सकते हैं दूसरा दबाव में मत सोचे जब आप किसी चुनौतीपूर्ण स्थिति में होते हैं तो कई बार सने की प्रक्रिया में खुद को फसा लेते हैं लेकिन यह जरूरी है कि जब कार्यवाही की आवश्यकता हो तो सोचने के बजाय अपनी क्षमता पर भरोसा करें मान लीजिए आप किसी खेल में हैं और आपको तुरंत फैसला लेना है उस समय सोचने में वक्त बर्बाद करने से काम बिगड़ सकता है अगर आपने किसी स्किल्स को सही तरीके से सीखा है तो उस पर भरोसा करें उदाहरण के लिए जब कोई पायलट विमान उड़ाता है तो उसे हर कदम के लिए सोचने की जरूरत नहीं होती उसने पहले से ही किया होता है इसी तरह आप भी अपने प्रैक्टिस पर भरोसा करें और काम को तेजी और कुशलता से करें तीसरा अल्टरनेटिव्स पर विचार करें जब भी आप किसी निर्णय पर पहुंचते हैं तो यह मानकर मत चले कि आप जो सोच रहे हैं वही सही है पोकर प्लेयर्स की तरह सोचे वे हर विकल्प पर विचार करते हैं उदाहरण के लिए अगर आपको लगता है कि आपका साथी झूठ बोल रहा है तो अपने दिमाग में यह धारणा रखें कि वह सच बोल रहा है और फिर देखें कि कौन-कौन सी बातें इस धारणा से मेल नहीं खाती यह तरीका आपको सही फैसले लेने में मदद करेगा चौथा अपनी आदतों पर सवाल उठाएं हमारी हैबिट्स हमें कंट्रोल करती है उदाहरण के लिए अगर आपको महंगी वाइन पसंद है तो क्या आपने कभी सोचा है कि यह पसंद आपकी अपनी है या समाज ने आपको यह सिखाया है बुक्स मूवीज म्यूजिक इन सभी चीजों के बारे में सोचे कि क्या आप इन्ह सच में पसंद करते हैं या बस हैबिट के कारण इन्हे अपनाए हुए हैं जब आप अपनी हैबिट्स पर सवा उठाएंगे तो आप अपनी असली पसंद को समझ पाएंगे और जीवन का अधिक आनंद उठा पाएंगे पांचवा लंबे समय तक शॉवर ले कई बार हमें किसी समस्या का हल तभी मिलता है जब हम तनाव मुक्त होते हैं स्टडी से पता चला है कि जब आप लंबे समय तक टहलते हैं या शावर लेते हैं तो मस्तिष्क का दाया गोलार्ध अधिक सक्रिय हो जाता है यह वही भाग है जो क्रिएटिव थिंकिंग और नई समस्याओं को हल करने में मदद करता है इसलिए जब भी आपको कोई समस्या हल नहीं हो रही हो थोड़ा ब्रेक ले टहल या शावर लीजिए और फिर देखिए कि कैसे नए आइडियाज आपके दिमाग में आते हैं छठवां अपनी यादों के प्रति संदेह पूर्ण दृष्टिकोण रखें क्या आप जानते हैं कि हमारी मेमोरीज हमेशा सही नहीं होती साइंटिस्ट ने यह साबित किया है कि जब हम किसी घटना को याद करते हैं तो हमारा ब्रेन उस घटना की जानकारी को बदल देता है जितनी बार हम किसी घटना को याद करते हैं उतनी ही बार उस घटना के डिटेल्स बदल सकते हैं इसलिए अपनी मेमोरीज पर पूरी तरह से भरोसा ना करें जब भी आप किसी इंपॉर्टेंट डिसीजन पर पहुंचे यह याद रखें कि आपकी मेमोरीज पूरी तरह से सही नहीं हो सकती सातवा एक ही समय में सब कुछ करने की कोशिश ना करें विल पावर और थिंकिंग कैपेसिटी दोनों लिमिटेड होती हैं अगर आप एक ही समय में कई चीजें करने की कोशिश करेंगे तो आपका ब्रेन जल्दी एग्जॉस्ट हो जाएगा एक स्टडी में पाया गया कि जिन लोगों को एक उन्होंने ज्यादातर केक चुना लेकिन जिन लोगों को एक सिंपल नंबर याद करने को कहा गया उन्होंने सैलेड चुना ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जब आपका माइंड पहले से ही टायर्ड होता है तो आप नेचुरली आसान और कम हेल्थी ऑप्शंस चुनते हैं इसलिए एक समय पर सिर्फ एक टास्क करें और अपनी एनर्जी को बचाएं इससे आप अधिक फोकस्ड और एफिशिएंट रहेंगे आठवा त्रुटियों पर काम करें जो लोग सक्सेसफुल होते हैं वे अपनी मिस्टेक्स को लेकर डरते नहीं है वे अपनी वीकनेसेस को स्वीकार करते हैं और उन पर वर्क करते हैं अगर आप किसी काम में अच्छे हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि आप उसमें और बेहतर नहीं हो सकते अपनी मिस्टेक्स को पहचाने और उन्हें इंप्रूव करने के लिए मेहनत करें यह सोचे कि आप कहां गलत हो सकते हैं और अगली बार बेहतर कैसे कर सकते हैं यह माइंडसेट आपको हर फील्ड में प्रोग्रेस करने में मदद करेगा नौवा सपने देखें हम सभी बिजी स्केड्यूल में अक्सर अपने ड्रीम्स को नजरअंदाज कर देते हैं लेकिन ड्रीमिंग आपकी क्रिएटिविटी को बूस्ट करता है जब आप दिन में सपने देखते हैं तो आपका ब्रेन नए कनेक्शंस बनाता है और नई पॉसिबिलिटीज को एक्सप्लोर करता है ड्रीम सिर्फ बच्चों के लिए नहीं होते हर उम्र के लोग सपने देख सकते हैं और अपनी क्रिएटिविटी को बढ़ा सकते हैं इसलिए समय निकाले रिलैक्स करें और अपने माइंड को भटकने दें यह प्रोसेस आपको नए आइडियाज देगा और आपके थिंकिंग पैटर्स को एनहांस करेगा दसवां सोचने के बारे में सोचे क्या आपने कभी सोचा है कि आप कैसे सोचते हैं सही समाधान पाने के लिए केवल बुद्धिमत्ता की जरूरत नहीं होती बल्कि यह समझना भी जरूरी है कि आप अपनी सोचने की प्रक्रिया को कैसे बेहतर बना सकते हैं हमारा दिमाग एक स्विस आर्मी नाइफ की तरह है जिसमें अलग-अलग समस्याओं को हल करने के लिए कई तरह के टूल्स होते हैं जब भी कोई समस्या सामने आए तो खुद से यह सवाल करें कौन सा टूल इस स्थिति के लिए सबसे सही रहेगा यही प्रक्रिया आपको अधिक प्रभावी तरीके से सोचने में मदद करेगी सही तरीके से सोचने की आदत आपके निर्णय लेने की क्षमता रचनात्मकता और समस्या हल करने की शक्ति को भी बढ़ा सकती है इन 10 पावरफुल टिप्स को अपनाकर आप अपने थिंकिंग प्रोसेस को बेहतर बना सकते हैं यह ना सिर्फ आपकी मेंटल हेल्थ को मजबूत करेंगे बल्कि आपकी जिंदगी में भी सकारात्मक बदलाव लाएंगे याद रखें अच्छा सोचना एक आदत है और इसे नियमित अभ्यास से विकसित किया जा सकता है अपनी सोचने की आदतों पर काम करें और अपनी जिंदगी को नई ऊंचाइयों तक ले जाए अगर आपको यह वीडियो पसंद आई है और आप चाहते हैं कि मैं ऐसे और भी लाइफ चेंजिंग टिप्स शेयर करता रहूं तो अभी चैनल को सब्सक्राइब करें और बेल आइकन दबाएं ताकि आप कोई भी नया वीडियो मिस ना करें साथ ही नीचे कमेंट्स में बताएं कि इन 10 टिप्स में से कौन सा आपको सबसे ज्यादा पसंद आया और आप इसे अपनी डेली लाइफ में कैसे अप्लाई करने वाले हैं आपकी राय मेरे लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है चलिए साथ मिलकर एक पॉजिटिव कम्युनिटी बनाते हैं और अपनी सोच को नई ऊंचाइयों तक ले जाते हैं [संगीत]
8) https://youtu.be/JS5Vt26Uxxw?si=i9pVWc36W8PJsLPS
जिंदगी में कई बार हम ऐसी परेशानियों से घिर जाते हैं जहां हमें सही समाधान समझ नहीं आता ऐसा लगता है कि दुनिया की हर मुश्किल हमारे सामने खड़ी है और हमारे पास उससे बचने का कोई रास्ता नहीं है लेकिन अक्सर समाधान हमारे सामने ही होता है बस हमें उसे देखने का सही तरीका अपनाने की जरूरत होती है इस कहानी में हम जानेंगे कि किस तरह सही सोच और धैर्य से बड़ी से बड़ी समस्या का हल निकाला जा सकता है यह कहानी हमें यह भी सिखाती है कि धन दौलत और साधनों से ज्यादा महत्त्वपूर्ण सही सोचने की क्षमता होती है नमस्कार दोस्तों फिर से स्वागत है आपका इंस्पायर्ड स्टोरी हब उसके पास हर सुख सुविधा थी शहर में उसकी गिनती सबसे अमीर और प्रभावशाली लोगों में होती थी लेकिन उसके जीवन में एक दिन ऐसा मोड़ आया जिसने उसकी सोच को पूरी तरह बदल दिया एक दिन अचानक उस अमीर आदमी की आंखों में जलन होने लगी उसकी आंखें लाल हो गई और दर्द भी बहुत बढ़ गया शुरुआत में उसे लगा कि यह कोई छोटी सी समस्या है जो कुछ दिनों में ठीक हो जाएगी लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतते गए उसकी परेशानी बढ़ती गई अब उसे अपनी आंखों में इतनी जलन महसूस होती थी कि वह ठीक से देख भी नहीं पाता था उसने तुरंत शहर के सबसे अच्छे डॉक्टर को बुलाया डॉक्टर ने उसकी आंखों की जांच की और कुछ दवाइयां दी लेकिन दवाइयों से कोई फर्क नहीं पड़ा उसकी जलन जिस की तस बनी रही अमीर आदमी ने कई और डॉक्टरों को बुलाया लेकिन कोई भी डॉक्टर उसकी बीमारी का सही कारण समझ नहीं पाया हर डॉक्टर ने अलग-अलग दवाइयां दी लेकिन कोई भी आज काम नहीं आया आखिरकार वह आदमी बहुत परेशान हो गया उसकी तकलीफ इतनी बढ़ गई थी कि अब उसे विदेश जाकर इलाज कराने का फैसला करना पड़ा वह विदेश के सबसे बड़े डॉक्टर के पास गया डॉक्टर ने उसकी आंखों की गहराई से जांच की काफी देर तक जांच करने के बाद डॉक्टर ने गंभीर स्वर में कहा मैंने अपनी पूरी जिंदगी में ऐसा केस कभी नहीं देखा यह सुनकर अमीर आदमी डर गया उसने घबराकर पूछा डॉक्टर साहब क्या हुआ क्या मेरी आंखों की रोशनी चली जाएगी डॉक्टर ने गहरी सांस ली और कहा आपकी आंखों में एक दुर्लभ एलर्जी हो गई है यह एलर्जी इस वजह से हो रही है कि आपकी आंखें केवल हरा रंग ही सहन कर सकती हैं अगर आप हरे रंग के अलावा कोई और रंग देखेंगे तो आपकी आंखों में जलन होगी और धीरे-धीरे आपकी आंखों की रोशनी भी जा सकती है यह सुनकर अमीर आदमी चौक गया उसने पूछा तो इसका इलाज क्या है क्या कोई दवाई है जिससे मैं ठीक हो सकता हूं डॉक्टर ने जवाब दिया इस एलर्जी का कोई स्थाई इलाज नहीं है आपको अपनी आंखों को बचाने के लिए केवल हरा रंग ही देखना होगा डॉक्टर की बात सुनने के बाद अमीर आदमी बहुत निराश हो गया उसने सोचा कि अब उसे अपनी जिंदगी को बचाने के लिए हर जगह हरा रंग ही करना पड़ेगा उसने तुरंत अपने घर लौटते ही कई पेंटर को बुलाया और कहा तुम मेरे पूरे घर को हरे रंग से पेंट कर दो हर दीवार हर फर्नीचर हर सामान को हरा कर दो पेंटर ने उसके घर को हरे रंग से रंग दिया लेकिन बात यहीं नहीं रुकी अमीर आदमी ने कहा सिर्फ घर ही नहीं मुझे जहां भी जाना हो वहां भी सब कुछ हरा होना चाहिए गली सड़क बाजार हर जगह हरा रंग होना चाहिए उसने अपनी गली को सड़क को और यहां तक कि अपने ऑफिस को भी हरे रंग से पेंट करवा दिया बोर्ड साइन बोर्ड गाड़िया फर्नीचर हर चीज को हरा कर दिया गया लेकिन समस्या यह थी कि हर चीज को हरा नहीं किया जा सकता था आसमान का रंग नीला होता है जिसे हरा नहीं किया जा सकता खाने पीने की चीजें कपड़े और लोगों की त्वचा का रंग भी हरा नहीं किया जा सकता था एक दिन उसी गली से एक साधारण लड़का गुजर रहा था उसने देखा कि चारों ओर हर चीज हरे रंग की है उसे यह बहुत अजीब लगा उसने वहां के लोगों से पूछा यहां चारों ओर हरा रंग क्यों किया गया है लोगों ने उसे बताया कि यह सब एक अमीर आदमी की वजह से है उसकी आंखों में एलर्जी है और वह केवल हरा रंग ही देख सकता है इसलिए उसने सब कुछ हरा करवा दिया है लड़के ने यह सुनकर सोचा कि यह समस्या इतनी बड़ी भी नहीं है जितनी इस अमीर आदमी ने बना ली है वह अमीर आदमी के घर गया और उससे मिलने की अनुमति मांगी जब वह लड़का अमीर आदमी से मिला तो उसने कहा मुझे आपकी समस्या का हल पता है अमीर आदमी ने उत्सुकता से पूछा क्या बताओ मेरी समस्या का हल क्या है लड़के ने मुस्कुराते हुए कहा आपको सब कुछ हरा करने की जरूरत नहीं है बस एक हरे रंग का चश्मा पहन लीजिए आपको हर चीज हरी दिखाई देगी और आपकी आंखों को जलन भी नहीं होगी यह सुनकर अमीर आदमी हैरान रह गया उसने सोचा कि यह हल कितना सरल है और उसने कितनी बेवजह मेहनत और पैसे खर्च कर दिए यह कहानी हमें एक बहुत महत्त्वपूर्ण सीख देती है जब भी कोई समस्या आए हमें घबराना नहीं चाहिए समस्या का समाधान अक्सर हमारे सामने ही होता है हमें बस धैर्य और सही सोच के साथ उसे देखने की जरूरत होती है इस कहानी में अमीर आदमी ने एक बड़ी गलती की उसने बिना सोचे समझे हर जगह हरा रंग करवा दिया लेकिन अगर वह थोड़ी देर रुककर सोचता तो उसे समझ में आता कि समस्या का हल कितना आसान है इसी तरह हमारी जिंदगी में भी कई बार समस्याएं बहुत बड़ी लगती हैं लेकिन अगर हम शांति और धैर्य से सोचे तो हमें उनका समाधान मिल सकता है हमें अपने नजरिए को बदलने की जरूरत है समस्या से भागने या उसे अनदेखा करने के बजाय हमें उसे समझने और हल करने की कोशिश करनी चाहिए सही सोच और नजरिए से हम किसी भी समस्या का हल पा सकते हैं हमारी सोचने की काबिलियत हमें अलग बनाती है अगर हम सही तरीके से सोचे तो हम अपनी जिंदगी की हर चुनौती का सामना कर सकते हैं किसी भी समस्या का समाधान तुरंत नहीं मिलता हमें धैर्य के साथ सही सोच अपनानी चाहिए गलत दिशा में किया गया प्रयास हमें सिर्फ थकान देगा हमें सही दिशा में सोचना और कदम उठाना चाहिए समस्या से भागने की बजाय उसका सामना करें भागने से समस्या खत्म नहीं होती हमें उससे लड़ना और उसका समाधान खोजना चाहिए जब भी जिंदगी में कोई सम आए तो घबराए नहीं समस्या का हल हमारे सामने ही होता है बस हमें सही सोच और धैर्य से उसे देखना और समझना होता है इस कहानी का सबसे बड़ा सबक यह है कि हमें अपनी सोचने की काबिलियत को कभी कम नहीं आकना चाहिए सही सोच से हम किसी भी समस्या का हल पा सकते हैं और अपनी जिंदगी को बेहतर बना सकते हैं तो दोस्तों यही थी आज की स्टोरी सोचने की काबिलियत आशा करते हैं आपको जरूर पसंद आई होगी और जाते-जाते चैनल को सब्सक्राइब जरूर कर लेना आपका एक सब्सक्राइब हमें बहुत मोटिवेशन देता है धन्यवाद [संगीत] [संगीत]
9) https://youtu.be/XGlB7KfqFMM?si=byiWQxEjThXyVvYm
एक 14 साल का बच्चा बहुत बड़े-बड़े सपनों के साथ अपने गांव से शहर आ जाता है लेकिन उसके पास पैसे नहीं होते पर सपने बहुत बड़े होते हैं कि एक दिन मैं बहुत बड़ा आदमी बनूंगा बहुत बड़ा बिजनेस करूंगा अब वह बच्चा बहुत मेहनत करता है तरह-तरह के काम करता है और उसकी उम्र 14 से बढ़कर 30 साल हो जाती है अब 30 साल में जब वह आदमी पीछे मुड़कर देखता है तो उसे समझ आता है कि उसने कितनी मेहनत की आज वह चा चार फैक्ट्रियों का मालिक है अब उसे लगता है कि यह सही समय है शादी करने का और फिर वह शादी कर लेता है शादी के एक साल बाद उसका एक बच्चा हो जाता है अब सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा होता है वह भगवान का शुक्रिया अदा करता है कि तुमने मुझे जिंदगी में सब कुछ दिया है लेकिन जब वह इंसान 40 साल का हो जाता है उसे कैंसर हो जाता है अब जब उसे कैंसर होता है तो यह बात उसे हजम ही नहीं होती वह सोच में पड़ जाता है कि मैंने जिंदगी में इतना कुछ किया है इतना पैसा कमाया यह किस काम का है वह सोचता है मेरा बच्चा सिर्फ 9 साल का है मेरे बाद इसे ही बिजनेस देखना है लेकिन यह अभी तैयार नहीं है बिजनेस करने के लिए मैं इसे कैसे तैयार करूंगा मुझे तो यह भी नहीं पता कि मेरे पास वक्त कितना है तो वह एक सुबह अपने बच्चे को बुलाता है जो कि सिर्फ 9 साल का होता है और उसे कहता है आज मैं तुम्हें एक चैलेंज दूंगा क्या तुम मेरा चैलेंज पूरा करोगे बच्चा बोलता है हां पिताजी बताइए मैं क्या कर सकता हूं तो वह अपने बच्चे को एक बड़ा सा डब्बा देता है और उसे बोलता है कि इस डब्बे को उठाओ बच्चे से वह डब्बा उठ भी नहीं पा रहा होता वह डब्बा भारी होता है उस बच्चे के लिए पर फिर भी उस बच्चे को बोला जाता है कि इस डब्बे में जो भी है उसे तुम अभी नहीं देखोगे घर से बाहर निकलोगे तीन घंटे की मोहलत मिलेगी तुम्हें और तीन घंटे में जो भी इस डब्बे के अंदर है उसकी कीमत को बढ़ाकर वापस लाना है अब वह बच्चा हैरानी में पड़ जाता है कि ऐसा मुझे क्या करना पड़ेगा कि मैं जो इस डब्बे के अंदर है उसकी कीमत को बढ़ाकर लेकर आऊं लेकिन वह होता है एक बिजनेसमैन का बच्चा वह बाहर निकलता है और देखता है उस डब्बे के अंदर गेहूं है अब वह सोचता है कि मैं गेहूं की कीमत को कैसे बढ़ा सकता हूं पर फिर उसे एक आईडिया आता है कि गेहूं से आटा बन सकता है वह पास वाली चक्की के पास जाता है और उस चक्की के मा को बोलता है कि अंकल क्या आप इस गेहूं का आटा बनाकर मुझे दे सकते हो चक्की का मालिक बच्चे की मासूमियत को देखकर गेहूं को पीस के आटा बनाकर बच्चे को दे देता है और कुछ भी उस बच्चे से नहीं मांगता वह बच्चा आटा लेकर घर आ जाता है और बोलता है कि पिताजी मैंने गेहूं की कीमत को बढ़ा दिया देखो आटा मैं ले आया हूं अब उसके पिताजी खुश तो होते हैं पर अभी भी उस बच्चे को बहुत कुछ सिखाना बाकी है अगली सुबह वह फिर अपने बच्चे को बुला लेता है और बोल बोलता है आज जो इस बॉक्स में है उसकी कीमत को बढ़ाकर तुम्हें लेकर आना है अब बच्चा बाहर निकलता है और देखता है कि उस डब्बे में वही आटा है जो वह कल पिसवा कर लेकर आया था अब बच्चा दिमाग लगाता है कि अब मैं क्या करूं अब मैं आटे की कीमत को कैसे बढ़ाऊ उसको समझ आता है कि आटे से ब्रेड बन सकती है तो वह पास वाली बेकरी के पास चला जाता है और बेकरी के मालिक से बोलता है कि मेरे पास आटा है क्या आप इसकी ब्रेड बनाकर मुझे दे दोगे वह बोलता है कि मुझे सारी ब्रेड नहीं चाहिए आप ब्रेड बना रहे हो आधी ब्रेड आप रख लो आधी मुझे दे दो मेरा आटा काम आ जाएगा आपके वह बेकरी का मालिक भी उस बच्चे की इस मासूमियत को देखकर उसे ब्रेड बनाकर दे देता है वह बच्चा वह आधी ब्रेड की पैकेट को घर ले आता है अब ब्रेड के आठ पैकेट मिलते हैं उस बच्चे को यह देखकर उसके पिताजी खुश होते हैं कि बच्चा आटे की ब्रेड बना के ले आया बहुत बढ़िया पर फिर भी उसके पिताजी को लगता है कि अभी भी उस बच्चे को बहुत कुछ सिखाना बाकी है अब उसके पिताजी उसे बोलते हैं कि आज की सुबह फिर से मैं तुम्हें एक चैलेंज दे रहा हूं लेकिन आज सिर्फ तुझे कीमत को बढ़ाकर लेकर नहीं आना कीमत को कम से कम पांच गुना करके आना है तब उसके पिताजी उसे ब्रेड के चार पैकेट देते हैं और बोलते तुझे इनकी कीमत पांच गुना बढ़ाकर लेकर आनी है अब वह बच्चा घर से निकलता है और फिर दिमाग चलता है कि मैं क्या कर सकता हूं फिर उसे समझ आता है कि ब्रेड के सैंडविच बन सकते हैं तब वह पास वाले रेस्टोरेंट मालिक को रिक्वेस्ट करता है कि क्या आप मुझे इस ब्रेड से सैंडविच बनाकर दे सकते हो मुझे सारी ब्रेड नहीं चाहिए चार पैकेट हैं सारे आप रख लो मुझे सिर्फ चार सैंडविच बना के दे दो जिसमें आठ ब्रेड लगेंगी यह रेस्टोरेंट का मालिक भी बच्चे की मासूमियत देखकर उसे चार सैंडविच बनाकर दे देता है वह रेस्टोरेंट बहुत फेमस होता है लेकिन फिर भी अपनी ब्रांडिंग के साथ पैक करके वो चार सैंडविच बच्चे को दे दिए जाते हैं बच्चा घर आता है और अपने पिताजी को बोलता है कि जो ब्रेड आपने दी थी चार पैकेट वो तो कुछ 00 की थी पर अब मैं चार सैंडविच बनवा कर के लेके आया हूं और इस रेस्टोरेंट का एक सैंडविच ₹2000000 के हो गए तो 00 की ब्रेड को मैंने 800 का कर दिया तो क्या मैं यह चैलेंज जीत चुका हूं उसके पिता मुस्कुराते हैं और बोलते हैं हां बेटा तू अब बिजनेस करना सीख गया है और कल से स्कूल के बाद तू मेरे ऑफिस में आया करेगा अब इस कहानी से आपको क्या सबक मिलता है पहला बिजनेस मल्टीप्लिकेशन के ऊपर डिपेंड करता है मतलब हम जो भी इन्वेस्टमेंट कर रहे हैं उस इन्वेस्टमेंट को हम बढ़ा पाएं और मल्टीप्लाई कर पाएं जिस दिन आप पैसे को मल्टीप्लाई करना सीख गए उस दिन आप बिजनेस करना सीख गए आपकी उम्र मैटर नहीं करती दूसरा हमेशा अपनी वैल्यू बढ़ाने पर ध्यान दें दूसरा लेसन जो आप सीखते हो इस कहानी से वह यह कि जब तक आप गेहूं बने रहोगे और गेहूं से पीसकर आटा नहीं बनोगे तब तक आपकी वैल्यू नहीं बढ़ेगी आपको जीवन में अपनी वैल्यू इंक्रीज करने पर ध्यान देना चाहिए उसी गेहूं से आटा बना उसी गेहूं के आटे से ब्रेड बनी और उसी ब्रेड से सैंडविच बना आपकी जो जिंदगी है वह भी इन्हीं लेवल्स पर निर्भर करती है जैसे-जैसे आप विकसित करते हो और जैसे-जैसे आप अपनी वैल्यू इंक्रीज करते हो आप जिंदगी में आगे बढ़ते हो देखो जितने भी इंसान हैं सबके पास दो हाथ दो पैर दो आंखें और एक दिमाग है पर कुछ लोग अपने दिमाग से अपने आप को जो वो गेहूं रूपी होते हैं कुछ लोग आटा बना लेते हैं कुछ लोग गेहूं ही बन के रह जाते हैं कुछ लोग ब्रेड बना लेते हैं और कुछ लोग सैंडविच भी बना लेते हैं यह सिर्फ आप पर ही निर्भर करता है कि आप अपने आप को कैसे विकसित कर रहे हो एक बात दिमाग में डाल लो खुद को विकसित करना बहुत ज्यादा जरूरी है वक्त के साथ बदलना बहुत जरूरी है और अगर आप बदलना चाहते हो तो उसकी शुरुआत आज से करो नई स्किल्स को सीखकर हम आशा करते हैं कि आपको यह वीडियो पसंद आई होगी तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना ना भूलें धन्यवाद
10) https://youtu.be/h-zSJ_x7jq4?si=t_BMuEemjhzrWuDH
नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका इंस्पायर्ड स्टोरी हब [संगीत] [संगीत] कि कैसे आप इन आसान तरीकों का इस्तेमाल करके मानसिक रूप से स्ट्रांग बन सकते हैं और अपने हर काम को आसानी से पूरे परफेक्शन के साथ खत्म कर सकते हैं मानसिक रूप से स्ट्रांग होना हर इंसान चाहता है जो इंसान मेंटली स्ट्रांग होता है उसे कोई भी इंसान बेवकूफ नहीं बना सकता बल्कि वह अपने काम को पूरी समझदारी से करता है अपने हर फैसले को सोच समझ कर लेता है उसे सही और गलत कार्य करने के बारे में पता होता है लेकिन जो इंसान मानसिक रूप से कमजोर होता है उस इंसान को कोई भी व्यक्ति आसानी से मूर्ख बना देता है मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति अपने काम को ठीक तरह से कर नहीं पाता अपने फैसले ठीक से नहीं ले पाता उसकी सोचने समझने की क्षमता कमजोर हो जाती है कोई भी काम करने से पहले उसके अंदर पहले ही डर पनपने लगता है ऐसे इंसान का लोग बड़ी आसानी से फायदा उठा लेते हैं और अपना काम निकलवा लेते हैं आज इस वीडियो के माध्यम से हम जानेंगे कि कैसे मानसिक रूप से स्ट्रांग बना जाए पहला हर रोज योगा करें मेंटली स्ट्रांग बनने के लिए आपको हर रोज ध्यान लगाना होगा ध्यान लगाने से इंसान मानसिक रूप से अपनी पावर को कई गुना तक बढ़ा सकता है इसे शब्दों में समझाया नहीं जा सकता पर है ध्यान लगाने से कई ऋषि मुनियों ने अपनी मेंटली पावर को जरूर बढ़ाया है यह आप लोगों को भी पता होगा कि टेशन करने के क्या-क्या फायदे होते हैं हर रोज योगा करने से आपकी जागरूकता बढ़ती है और आपकी सोचने समझने की क्षमता कोई भी फैसला लेने की क्षमता और हर समस्या का समाधान निकालने की शक्ति आपके अंदर प्रवेश करती है यह आपको मानसिक रूप से मजबूत बनाती है और हर परिस्थिति से लड़ना सिखाती है दूसरा अपने लक्ष्य पर ध्यान लगाएं अपने ड्रीम को पूरा करने के लिए पहले अपने ड्रीम को पेपर पर लिखें और स्ट्रेटजी बना यह तय करें कि कहां कब कैसे और कितने वक्त में आपको अपना ड्रीम पूरा करना है उसके ऊपर विजुलाइजेशन करें या उसकी अपने दिमाग में छवि बनाए अपने दिमाग का उपयोग करें ताकि आपको पता चल सके कि आपका दिमाग कितना स्ट्रांग है अपने दिमाग का इस्तेमाल करके आपको यह पता लगाना है कि कहां कब किस वजह से और मेरे क्या करने से मुझे क्या परेशानियां आ सकती हैं इसका अ अंदाजा आपको पहले से ही पता होना चाहिए ताकि आप आने वाली समस्या से लड़ने के लिए पहले से ही खुद को तैयार रख सकें अगर आप ऐसा कर लेते हैं तो आप मेंटली स्ट्रांग हैं धीरे-धीरे अपने लक्ष्य की ओर बढ़े और उन्हें हासिल करें तीसरा हर परिस्थिति में खुद को संभालने के लिए खुद को हमेशा तैयार रखें वह कहते हैं ना कि प्रॉब्लम बताकर नहीं आता है कब कहां कैसे आ जाए उसकी कोई खबर नहीं होती पर खुद को उस प्रॉब्लम से लड़ने के लिए हमेशा तैयार रखना पड़ता है जैसे कि एक शख्स की शादी होती है वह भी अरेंज्ड मैरिज शादी के कुछ ही महीनों के बाद यदि किसी भी वजह से लड़के की फैमिली लड़के और लड़की दोनों को घर से निकाल दें वह भी बिना कुछ सपोर्ट के तो उस परिस्थिति में आप खुद को कैसे संभालेंगे अगर आप मेंटली कमजोर हो तो आप फैसले ठीक से नहीं ले पाएंगे और ना ही आप उस लड़की को संभालने के लायक बन पाएंगे जो लड़की आपके लिए सब कुछ अपना छोड़कर आपके भरोसे आई हैं बट अगर आप मेंटली स्ट्रांग होंगे तो आप अपने दिमाग का सही इस्तेमाल करके लड़का लड़की दोनों कहीं जॉब करके कुछ ना कुछ अरेंज करके अपना जीवन बेहतर तरीके से तो निभा पाएंगे और हर परिस्थिति से लड़ पाएंगे एक दूसरे को सपोर्ट करके एक दूसरे का सहारा बनेंगे ऐसा करके आप पहले से कई गुना ज्यादा मानसिक रूप से मजबूत बन जाएंगे चौथा आत्मनिर्भर बने आप लोग कभी अपने आसपास में ऑब्जर्व करके देखिएगा कि हर दूसरा इंसान किसी ना किसी पर डिपेंड है और इस डिपेंड होने की वजह से व इंसान अपनी लाइफ में औरों से कई साल पीछे रह जाता है क्योंकि उसे किसी भी चीज का खोने का हासिल करने का डर जो नहीं होता है ऐसे लोग मेंटली कमजोर होते हैं जो लाइफ में कुछ करने से डरते हैं और जो लोग आत्मनिर्भर होते हैं किसी पर डिपेंड नहीं होते वे लोग लाइफ में सक्सेस जल्दी हासिल कर लेते हैं क्योंकि उनका वाय क्लियर होता है कि उन्हें कब कैसे किसके लिए काम करना है बिना कोई सहारे के उन्हें तो बस आगे बढ़ना है हर प्रॉब्लम का सामना अकेले से उन्हें लड़ना है इसलिए वे फुली कॉन्फिडेंट एंड मेंटली स्ट्रांग होते हैं पांचवां टाइम मैनेजमेंट अपने समय की कदर करें पैसा जब पास होता है तो इंसान सब कुछ खरीद सकता है सिवाय वक्त के क्योंकि यह वक्त पैसे से नहीं खरीदा जा सकता इस वीडियो में जितने भी टॉपिक पर हम बात करेंगे यह सबसे इंपॉर्टेंट टॉपिक हैं अगर आप ने इस टॉपिक को फॉलो नहीं किया तो सारे टॉपिक बेकार हैं समय के साथ इंसान को बदलना पड़ता है जो खुद को नहीं बदलता है वह कभी कुछ नया नहीं सीखता है ना सीखने की वजह से वह मानसिक रूप से कमजोर होता है और जो इंसान समय समय पर खुद के अंदर परिवर्तन लाता है वह मानसिक रूप से मजबूत होता है जो लोग मानसिक रूप से कमजोर होते हैं वे लोग इधर-उधर के चक्कर में पढ़कर सही फैसले ना ले पाने की वजह से अपना कीमती समय बर्बाद कर बैठ बैठते हैं और कुछ टाइम के बाद दूसरों से काफी पीछे रह जाते हैं बाद में सिर्फ उन्हें पछताना पड़ता है वे लोग समय से खुद को परफेक्ट तरीके से हर परिस्थिति का सामना करने के लिए तैयार कर लेते हैं वे लोग अपना जरा सा भी समय फालतू चीजों में बर्बाद नहीं करते हैं छठवां नए-नए लोगों से मिलें और उनसे कुछ सीखें आप जिस फील्ड में भी अपना करियर बनाने जा रहे हैं उस फील्ड से संबंधित सक्सेसफुल लोगों से मिलें उनसे कुछ सीखें उनका अनुभव ले ताकि आप वह गलतियां ना करें जो उन्होंने की है ऐसा करके आप अपना समय और पैसा दोनों बचा सकते हैं जब आप नए-नए लोगों से मिलना शुरू करेंगे तो आपके अंदर कॉन्फिडेंस बिल्ड होगा और आप मानसिक रूप से मजबूत बनते चले जाएंगे आपकी अंडरस्टैंडिंग पावर भी बढ़ने लगेगी सातवां ऑलवेज लर्निंग हमेशा सीखते रहना जैसे पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती वैसे ही सीखने की भी कोई उ नहीं होती अगर आप खुद को हमेशा दूसरों से बेहतर बनाना चाहते हैं तो आपको हमेशा कुछ ना कुछ सीखते रहना होगा ताकि आप मानसिक रूप से खुद को मजबूत बना सकें बड़े-बड़े दिग्गज जिन्होंने इतिहास रचा है वे लोग आज भी समय निकालकर कुछ ना कुछ सीखते रहते हैं ताकि वे खुद को दूसरों से अलग साबित कर सकें अपना आईक्यू लेवल बढ़ा सकें और अपने फैसलों पर खरे उतर सकें आठवां फेस टू फियर डर का सामना करें खुद को साबित करने का सबसे बढ़िया तरीका है जब आप डर के सामने होते हैं तभी आपकी ताकत और क्षमता देखने को मिलती है जिससे पता चलता है कि आप मेंटली कितने ज्यादा स्ट्रांग हैं जैसे कि अगर आपको स्विमिंग नहीं आती तो बेझिझक होकर स्विमिंग सीखना शुरू कर दें धीरे-धीरे आप इसमें परफेक्ट होते चले जाएंगे इससे होगा यह कि आगे आने वाले डर से लड़ने और उनका सामना करने का कॉन्फिडेंस आपके अंदर पहले से आ जाएगा और आप मानसिक रूप से और भी ज्यादा मजबूत बनते चले जाएंगे नौवा लर्न फ्रॉम फेलर असफलता से सीखें असफलता से सबक ले अपनी पास्ट की गई गलतियों को पहचाने और उनसे सीखें यह देखें कि कौन-कौन सी गलतियां आपने की हैं ताकि आने वाले समय में आप उन्हें दोहराए नहीं गलतियां हर इंसान करता है लेकिन उनसे सीखना हर किसी के बस की बात नहीं खुद को सुधारने का सबसे बढ़िया तरीका यह है कि आप अपने फे से सबक ले और आगे बढ़े जिनके अंदर असफलता का डर होता है वे कभी जीवन में आगे नहीं बढ़ पाते दो चीजें होती हैं सफलता या असफलता अगर सफलता मिली तो ठीक और अगर असफलता मिली तो उससे सीखें असफलता आपको आगे बढ़ने के लिए मोटिवेट करती है और सिखाती है कि जो गलती अब की है उसे दोबारा ना करें जो इंसान असफलता से सीखकर आगे बढ़ता है वह लंबे समय तक सफलता का स्वाद चकता है और मानस रूप से मजबूत बनता है दसवां ट्रस्ट योरसेल्फ अपने आप पर भरोसा रखें किसी भी काम को करने के लिए सबसे पहले अपने आईडिया पर खुद भरोसा होना बहुत जरूरी है क्योंकि कोई भी काम बिना भरोसे के पूरा नहीं किया जा सकता जो लोग मेंटली कमजोर होते हैं वे अपना काम तो शुरू कर देते हैं पर कुछ समय बाद अपने काम में असफल होते नजर आते हैं खुद पर भरोसा और संदेह के चलते वे अपने काम को बीच में ही छोड़ देते हैं उनके डिसीजन मेकिंग पावर मजबूत नहीं होते जिसकी वजह से वे असफल व्यक्ति की श्रेणी में आ जाते हैं लेकिन जो लोग मेंटली मजबूत होते हैं उनके डिसीजन मेकिंग पावर मजबूत होते हैं उनके अंदर हर काम को खत्म करने की प्रबल शक्ति होती है ऐसे लोग अपने हर काम को आसानी से पूरा कर लेते हैं और एक सफल व्यक्ति कहलाते हैं क्योंकि वे खुद पर ज्यादा भरोसा करते हैं 11वां नेगेटिव थॉट्स नकारात्मक विचारों से बचे इंसान को अपने फैसले बदलते देर नहीं लगती एक नकारात्मक विचार इंसान की पूरी जिंदगी बर्बाद कर सकता है इतनी ताकत होती है नकारात्मकता में नकारात्मक सोच से अपनी पुरानी हार को कभी भी अपने ऊपर हावी ना होने दें बल्कि अपनी पुरानी हार से सीखकर आगे बढ़े नकारात्मक विचारों पर ज्यादा सोचे नहीं जितना हो सके नकारात्मक सोच से बचे अपने आसपास का माहौल सकारात्मक रखें सकारात्मक सोचे नकारात्मक सोच आपको मानसिक रूप से कमजोर बना सकती है और आपका मानसिक तनाव बढ़ा सकती है 12वां हर रोज खुद से बातें करें कोई भी काम एकदम से परफेक्ट नहीं बनता और ना ही होता है किसी भी काम को परफेक्ट बनाने के लिए आपको हर रोज अपने आईडिया पर खुद से थोड़ी देर तक बात करनी होगी धीरे-धीरे खुद से बात करना आपको अच्छा लगने लगेगा और आप अपने आईडिया पर एक मजबूत रणनीति बनाना शुरू कर देंगे जब हम खुद से बात करना शुरू कर देते हैं तो हमारी गलतियां और हमारे डाउट्स साफ होते चले जाते हैं इसके बाद हम अपनी गलतियों को सुधारने का कार्य शुरू कर देते हैं इस तरह से हमारा काम पहले से बेहतर और परफेक्ट होने लगता है और हम मानसिक रूप से मजबूत बनते चले जाते हैं 13वां कंट्रोल योर इमोशंस अपनी भावनाएं नियंत्रित करें दुख में जो मिले उसे फेस करें और सुख में जो मिले जितना भी मि उसमें खुश रहने की आदत डाले इसका मतलब है कि आपको हर परिस्थिति में अपनी भावनाओं को नियंत्रित करके रखना होगा कई लोग ऐसे होते हैं जिनके पास शुरू में कुछ भी नहीं होता परंतु समय के साथ जब उन्हें बहुत कुछ मिल जाता है तो वे उसे संभाल नहीं पाते क्योंकि उन्होंने अपनी भावनाओं को नियंत्रित करना सीखा ही नहीं होता ऐसे लोग ज्यादा समय तक अपनी उपलब्धियों को नहीं टिकाए रख पाते और अर्श से फर्श पर आ गिरते हैं मैंने कई लोगों को महलों से सड़कों पर बैठे देखा है क्योंकि उन्होंने अपने इमोशंस को नियंत्रित करना नहीं सीखा ऐसे लोग मानसिक रूप से कमजोर होते हैं लेकिन जो लोग अपने इमोशंस को नियंत्रित कर लेते हैं और हर परिस्थिति का सामना करने के लिए खुद को तैयार रखते हैं वे मानसिक रूप से मजबूत बनते हैं चवा विजुलाइज योर गोल अपने लक्ष्य की कल्पना करें हर कोई अपने ड्रीम को पूरा करना चाहता है और उसे पाने के लिए कड़ी मेहनत करता है लेकिन केवल मेहनत करना ही काफी नहीं है आपको स्मार्ट तरीके से अपने ड्रीम और गोल को हर दिन विजुलाइज भी करना होगा कहीं एकांत में बैठकर अपने लक्ष्य को कल्पना में देखें ताकि आपका ध्यान केंद्रित रहे और आप अपने लक्ष्य से भटके नहीं यह प्रक्रिया ना केवल आपको मानसिक रूप से मजबूत बनाती है बल्कि आपकी माइंड एक्सरसाइज भी होती है सकारात्मक ऊर्जा आपके अंदर भरती रहती है और हर सकारात्मक विचार से आपको मोटिवेट मिलता है आपका वातावरण सकारात्मक बना रहता है जिससे आपका लक्ष्य जल्दी हासिल हो सकता है 15वां गेट यूज टू हियरिंग द बिटर ट्रुथ कड़वा सच सुनने की आदत डाले हर रिश्ता हमेशा के लिए नहीं होता हर भाई या दोस्त हमेशा आपका साथ दे यह भी जरूरी नहीं आपकी नौकरी या व्यवसाय कब तक चलेगा इसका भी कोई भरोसा नहीं इसका मतलब यह है कि आपको हर चीज में कड़वा सच पहचानने की आदत डा नी होगी यह जानना होगा कि क्या टेंपरेरी है और क्या परमानेंट जितनी जल्दी आप इस सच्चाई को स्वीकार करेंगे उतनी ही जल्दी आप मानसिक रूप से मजबूत बन पाएंगे इससे आप अपनी जिंदगी के लिए एक बैक सपोर्ट सिस्टम बना पाएंगे और हर परिस्थिति में खुद को खड़ा रखने की प्रेरणा प्राप्त करेंगे अगर इन 15 बातों को आप सही तरह से उपयोग करते हैं और उन पर अमल करते हैं तो आप ना केवल मानसिक रूप से मजबूत बनेंगे बल्कि अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए खुद को हमेशा प्रेरित भी रख पाएंगे दोस्तों आज हमने इस वीडियो के माध्यम से जाना कि मेंटली स्ट्रांग कैसे बने और कैसे इन 15 आसान तरीकों का इस्तेमाल करके अपनी मानसिक शक्ति को बढ़ा सकते हैं अगर आपको हमारा वीडियो पसंद आया हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर साझा करें और अपने सुझाव कमेंट बॉक्स में जरूर दें ताकि हमें और मोटिवेशन मिलती रहे [संगीत]
11) https://youtu.be/Rac9uk9cA3s?si=ZC7p4zCdqFheIyln
किसी शहर के रेलवे स्टेशन पर एक भिखारी रहता था वह वहां आने जाने वाली रेलगाड़ियों में बैठे यात्रियों से भीख मांगकर अपना पेट भरता था एक दिन जब वह भीख मांग रहा था तो सूट बूट पहने एक लंबा सा व्यक्ति उसे दिखा उसने सोचा कि यह व्यक्ति बहुत अमीर लगता है इससे भीख मांगने पर यह मुझे जरूर अच्छे पैसे देगा वह उस लंबे व्यक्ति से भीख मांगने लगा भिखारी को देखकर उस लंबे व्यक्ति ने कहा तुम हमेशा मांगते ही रहते हो क्या कभी किसी को कुछ देते भी हो भिखारी बोला साहब मैं तो भिखारी हूं हमेशा लोगों से मांगता ही रहता हूं मेरी इतनी औकात कहां कि किसी को कुछ दे सकूं लंबा व्यक्ति बोला जब किसी को कुछ दे नहीं सकते तो तुम्हें मांगने का भी कोई हक नहीं है मैं एक व्यापारी हूं और लेनदेन में ही विश्वास करता हूं अगर तुम्हारे पास मुझे कुछ देने को हो तभी मैं तुम्हें बदले में कुछ दे सकता हूं इतना कहने के बाद वह लंबा आदमी ट्रेन में बैठकर चला गया इधर भिखारी उसकी कही गई बात के बारे में सोचने लगा उस लंबे व्यक्ति के द्वारा कही गई बात उस भिखारी के दिल में उतर गई वह सोचने लगा कि शायद मुझे भीख में अधिक पैसा इसीलिए नहीं मिलता क्योंकि मैं उसके बदले में किसी को कुछ दे नहीं पाता हूं लेकिन मैं तो भिखारी हूं किसी को कुछ देने लायक भी नहीं हूं लेकिन कब तक मैं लोगों को बिना कुछ दिए केवल मांगता ही रहूंगा बहुत सोचने के बाद उस भिखारी ने निर्णय किया कि जो भी व्यक्ति उसे भीख देगा उसके बदले में वह भी उस व्यक्ति को कुछ जरूर देगा लेकिन अब उसके दिमाग में यह प्रश्न चल रहा था कि वह खुद भिखारी है तो भीख के बदले में वह दूसरों को क्या दे सकता है इस बात को सोचते हुए दो दिन हो गए लेकिन उसे अपने प्रश्न का कोई उत्तर नहीं मिला था तीसरे दिन जब वह स्टेशन के पास बैठा हुआ था तभी उसकी नजर कुछ फूलों पर पड़ी जो स्टेशन के आसपास के पौधों पर खिल रहे थे उसने सोचा क्यों ना मैं लोगों को भीख के बदले कुछ फूल दे दिया करूं उसको अपना यह विचार अच्छा लगा और उसने वहां से कुछ फूल तोड़ लिए अब वह ट्रेन में भीख मांगने पहुंचा अब जब भी कोई उसे भीख देता तो उसके बदले में वह भीख देने वाले को कुछ फूल दे देता उन फूलों को लोग खुश होकर अपने पास रख लेते थे अब भिखारी रोज फूल तोड़ता और भीख के बदले में उन फूलों को लोगों में बांट देता था कुछ ही दिनों में उसने महसूस किया कि अब उसे बहुत अधिक लोग भीख देने लगे हैं वह स्टेशन के पास के सभी फूलों को तोड़ लाता था जब तक उसके पास फूल रहते थे तब तक उसे बहुत से लोग भीख देते थे लेकिन जब फूल बांटते बांटते खत्म हो जाते तो उसे भीख भी नहीं मिलती थी अब रोज ऐसा ही चलता रहा एक दिन जब वह भीख मांग रहा था तो उसने देखा कि वही लंबा व्यक्ति ट्रेन में बैठा है जिसकी वजह से उसे भीख के बदले फूल देने की प्रेरणा मिली थी वह तुरंत उस व्यक्ति के पास पहुंच गया और भीख मांगते हुए बोला आज मेरे पास आपको देने के लिए कुछ फूल है आप मुझे भीख दीजिए तो बदले में मैं आपको कुछ फूल दूंगा उस लंबे व्यक्ति ने उसे भीख के रूप में कुछ पैसे दे दिए और भिखारी ने कुछ फूल उसे दे दिए उस लंबे व्यक्ति को बात बहुत पसंद आई वह बोला वाह क्या बात है आज तुम भी मेरी तरह एक व्यापारी बन गए हो इतना कहकर फूल लेकर वह लंबा व्यक्ति अपने स्टेशन पर उतर गया लेकिन उस लंबे व्यक्ति द्वारा कही गई बात एक बार फिर से उस भिखारी के दिल में उतर गई वह बार-बार उस लंबे व्यक्ति के द्वारा कही गई बात के बारे में सोचने लगा और बहुत खुश होने लगा उसकी आंखें अब चमकने लगी उसे लगने लगा कि अब उसके हाथ सफलता की वह चाबी लग गई है जिसके द्वारा वह अपने जीवन को बदल सकता है वह तुरंत ट्रेन से नीचे उतरा और उत्साहित होकर बहुत तेज आवाज में ऊपर आसमान की तरफ देखकर बोला मैं भिखारी नहीं हूं मैं तो एक व्यापारी हूं मैं भी अमीर बन सकता हूं लोगों ने उसे देखा तो सोचा कि शायद यह भिखारी पागल हो गया है और अगले दिन से वह भिखारी उस स्टेशन पर फिर कभी नहीं दिखा लेकिन छ महीने बाद इसी स्टेशन पर दो व्यक्ति सूट बूट पहने हुए यात्रा कर रहे थे दोनों ने एक दूसरे को देखा तो उनमें से एक ने दूसरे से हाथ मिलाया और कहा क्या आपने मुझे पहचाना दूसरा व्यक्ति बोला नहीं क्योंकि मेरे हिसाब से हम लोग पहली बार मिल रहे हैं पहला व्यक्ति बोला नहीं आप याद कीजिए हम पहली बार नहीं बल्कि तीसरी बार मिल रहे हैं दूसरा व्यक्ति बोला मुझे याद नहीं वैसे हम पहले दो बार कब मि थे अब पहला व्यक्ति मुस्कुराया और बोला हम पहले भी दो बार इसी ट्रेन में मिले थे मैं वही भिखारी हूं जिसको आपने पहली मुलाकात में बताया कि मुझे जीवन में क्या करना चाहिए और दूसरी मुलाकात में बताया कि मैं वास्तव में कौन हूं दूसरा व्यक्ति मुस्कुराया और अचंभित होते हुए बोला ओ याद आया तुम वही भिखारी हो जिसे मैंने एक बार भीख देने से मना कर दिया था और दूसरी बार मैंने तुमसे कुछ फूल खरीदे थे लेकिन आज तुम यह सूट बूट में कहां जा रहे हो और आजकल क्या कर रहे हो तब पहला व्यक्ति बोला हां मैं वही भिखारी हूं लेकिन आज मैं फूलों का एक बहुत बड़ा व्यापारी हूं और इसी व्यापार के काम से ही दूसरे शहर जा रहा हूं कुछ देर रुकने के बाद वह फिर बोला आपने मुझे पहली मुलाकात में प्रकृति का वह नियम बताया था जिसके अनुसार हमें तभी कुछ मिलता है जब हम कुछ देते हैं लेनदेन का यह नियम वास्तव में काम करता है मैंने यह बहुत अच्छी तरह महसूस किया है लेकिन मैं खुद को हमेशा भिखारी ही समझता रहा इससे ऊपर उठकर मैंने कभी सोचा ही नहीं और जब आपसे मेरी दूसरी मुलाकात हुई तब आपने मुझे बताया कि मैं एक व्यापारी बन चुका हूं अब मैं समझ चुका था कि मैं वास्तव में एक भिखारी नहीं बल्कि व्यापारी बन चुका हूं मैंने समझ लिया था कि लोग मुझे इतनी भीख क्यों दे रहे हैं क्योंकि वह मुझे भीख नहीं दे रहे थे बल्कि उन फूलो का मूल्य चुका रहे थे सभी लोग मेरे फूल खरीद रहे थे क्योंकि इससे सस्ते फूल उन्हें कहां मिलते मैं लोगों की नजरों में एक छोटा व्यापारी था लेकिन मैं अपनी नजरों में एक भिखारी ही था आपके बताने पर मुझे समझ आ गया कि मैं एक छोटा व्यापारी हूं मैंने ट्रेन में फूल बांटने से जो पैसे इकट्ठे किए थे उनसे बहुत से फूल खरीदे और फूलों का व्यापारी बन गया यहां के लोगों को फूल बहुत पसंद है और उनकी इसी पसंद ने मुझे आज फूलों का बहुत बड़ा व्यापारी बना दिया दोनों व्यापारी अब खुश थे और स्टेशन आने पर साथ उतरे और अपने अपने व्यापार की बात करते हुए आगे बढ़ गए दोस्तों इस कहानी से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है कहानी में लंबा व्यापारी गिव एंड टेक के नियम को बहुत अच्छी तरह जानता था दुनिया के सभी बड़े व्यापारी इसी जीवन के नियम का उपयोग करके सफल हुए हैं इस फार्मूले को उसने भिखारी को भी बताया भिखारी ने इस प्राकृत नियम को अपना लिया और इसका असर उसके जीवन में साफ दिखाई देने लगा उसने अपनी सोच बदली और उसकी जिंदगी बदल गई यह कहानी हमें बताती है कि हम यदि अपनी सोच बदल ले तो कुछ भी हासिल किया जा सकता है यदि हम खुद को छोटा समझते रहेंगे तो हम हमेशा छोटे ही बने रहेंगे बड़ा बनने के लिए हमें अपनी सोच को बदलना होगा और खुद के बारे में बड़ा सोचना होगा कहानी का सार यह है कि सफलता आपकी सोच में छुपी होती है खुद का आत्मसम्मान जगाए अपनी सोच को बड़ा बनाइए और देखिए कैसे आप सफलता के शिखर पर पहुंच जाते हैं [संगीत] [संगीत]
12) https://youtu.be/RDDvskL26Dk?si=ZnfbBV-xysSB2kyV
ज्यादा सीधे मत बनो सीधे पेड़ जल्दी काट लिए जाते हैं आज की कहानी के माध्यम से आपको कुछ ऐसे तरीके पता चलेंगे जिनसे आप धोखा खाने से खुद को बचा सकते हैं भावनात्मक रूप से कमजोर आदमी का लोग हमेशा फायदा उठाते रहते हैं हम सबने देखा होगा अपने आसपास जो भी इंसान नर्म दिल का होता है यानी कि भावनात्मक रूप से करुणान होता है वह अपनी करुणा से बस दूसरों की सहायता तो कर देता है लेकिन बदले में उसे हमेशा धोखा ही मिलता है तो क्या एक इंसान को भावनात्मक नहीं होना चाहिए क्या उसे दूसरों पर भरोसा नहीं करना चाहिए दूसरों की सहायता नहीं करनी चाहिए क्या करुणा वान और संवेदनशील होना गुनाह है कोई गलती है पाया तो यह जाता है कि कोई संवेदनशील आदमी दिल का अच्छा होता है दूसरों की सहायता करता है दूसरों का ख्याल रखता है दूसरों से प्रेम करता है प्रेम भी तो एक संवेदना ही है वह भी तो एक भावना का रूप है तो क्या प्रेम करना भी गलत हो जाता है और यह तो आप सबको पता होगा कि प्रेम तो आध्यात्मिक साधना का एक बहुत महत्त्वपूर्ण कदम है तो किस प्रकार एक इंसान समाज में संवेदनशील करुणान और दयालु यानी कि एक अच्छा आदमी बनकर रह सकता है ताकि लोग उसका फायदा भी ना उठा पाए और वह अपने मन की अच्छाई अपने मन की कोमलता करुणा सब कुछ बरकरार भी रख सके एक बार एक युवा लड़का जंगल के पेड़ों पर मुक्के मार रहा था वह बड़े जोर-जोर से मुक्के मार रहा था वह अपने मन का गुस्सा निकालने की कोशिश कर रहा था शायद उसको किसी ने धोखा दिया था या फिर उसके साथ बहुत बुरा हुआ था जिससे वह बहुत ज्यादा परेशान था उसे कहीं भी शांति नहीं मिल रही थी वह लगातार उस पेड़ पर मुक्का मार रहा था जिससे उसकी उंगलियां लहू लुहान हो चुकी थी उसी जंगल में एक शीतल पानी का झरना था वहां पर एक भिक्षु रोज संध्या समय स्नान करने आया करते थे यह उनका नित्य का नियम था आज जब वह बिछू इस रास्ते से स्नान करने के लिए लिए उस जंगल में आया तो उसने उस लढके की हालत देखी वह जोर-जोर से चीख रहा था रो रहा था और लगातार मुक्के मारे जा रहा था उस लड़के के आसपास कोई मौजूद नहीं था इससे उस भिक्षु को उस युवक की चिंता होने लगी उसने सोचा कि कहीं मैं इसे ऐसे ही छोड़ दूं और कहीं यह आत्महत्या कर ले तो ऐसे विचार आने के बाद भी वह कुछ नहीं बोला और लगातार उस युवक की तरफ देखे जा रहा था पिच्छू एकदम चुपचाप खड़ा हुआ था उसने युवक से कुछ नहीं बोला कुछ नहीं कहा बस वह उसको लगातार देखता रहा कुछ देर तक तो उस युवक ने उस भिक्षु को नजरअंदाज किया लेकिन कुछ देर बाद उसे अजीब सा लगने लगा उसने सोचा ना तो यह मुझे रोक रहा है और ना ही कुछ कह रहा है यह तो बस मुझे देखे जा रहा है इसका क्या मतलब है बड़ा अजीब आदमी है ऐसे ही विचार उस लड़के के मन में उठने लगे थे जब कुछ देर बाद भी वह बिच्छू कुछ नहीं बोला तो लड़के ने अचानक से उससे पूछा कि महाशय आप अपने रास्ते क्यों नहीं चले जाते आप को क्या मतलब आप खड़े हुए मुझे देख क्यों रहे हैं भिक्षु ने बड़े शांत स्वर में कहा कि मैं तुम्हें रोक नहीं रहा हूं तुमसे कुछ कह नहीं रहा हूं तो मुझसे तुम्हें क्या परेशानी है मेरे ही तरह है यह पेड़ पौधे यह पक्षी यह सब तुम्हें तो देख ही रहे हैं जब इनसे तुम्हें कोई परेशानी नहीं है तो मुझसे क्यों परेशानी है यह सुनकर लड़का जोर से चीख कर बोला मुझे सबसे परेशानी है मैं सबसे नफरत करता हूं यहां पर सब धोखेबाज गद्दार होते हैं कोई किसी का नहीं होता इस दुनिया में और इस तरह बोलते बोलते वह फूट फूट कर रोने लगा और रोए जा रहा था और भिक्षु उसे देखे जा रहा था वह उसे चुप करने की कोशिश भी नहीं कर रहा था यह बात तो उस लड़के को और ज्यादा अजीब लगी अब रोना छोड़कर उस लड़के ने सीधे खड़े होकर उस भिक्षु से कहा बड़े अजीब आदमी है कि सामने कोई इंसान रो रहा है दुखी है परेशान है और आप उसे चुप भी नहीं कर सकते आपके मन में बिल्कुल भी संवेद वेदना नहीं है बड़े अजीब और कठोर हृदय वाले साधु हैं पाप को अपने साधु होने पर खेद होना चाहिए और ऐसे ही ना जाने क्या-क्या जली कटी बातें वह युवक उस भिक्षु को सुनाने लगा कुछ देर बाद जब युवक की सारी भड़ास निकल चुकी थी तब भिक्षु ने बड़े ही शांत स्वर में कहा कि आज मैं तुम्हें कंधा दे सकता हूं तुम्हारे आंसू पोच सकता हूं लेकिन इससे तुम्हारी समस्या का समाधान नहीं होगा कुछ देर के लिए तुम्हारा मन बहल जाएगा बस उसके बाद वही जिंद वही लोग जो तुम्हें आज कंधा देने के लिए भी तुम्हारे पास नहीं है फिर से तुम उसी जिंदगी में लौट जाओगे कोई तुम्हें धोखा देगा कोई तुम्हारा फायदा उठाएगा और तुम अपने मन को ऐसे ही तकलीफ पहुंचाते रहोगे तो आंसू पोचने की बजाय तुम्हें मुझसे कुछ ज्ञान की बातें लेना चाहिए जिससे तुम्हें जीवन में कोई भी धोखा ना दे सके तुम्हारी अच्छाई का कोई भी फायदा ना उठा सके याद रखना आंसू पोछने वाले तो तुम्हें बहुत मिल जाएंगे लेकिन ज्ञान और सही समझ देने वाला कभी-कभी कभी कोई इंसान मिलता है भिक्षु ने उसे बताया कि मैं पास ही के झरने में स्नान करने के लिए जा रहा हूं बड़ा ही शीतल पानी है वहां का अगर तुम चाहो तो तुम भी मेरे साथ चल सकते हो यहां पर अकेले परेशान होने से अच्छा है कि तुम झरने की शीतल पानी में स्नान करो जिससे तुम्हारा दिमाग मन मस्तिष्क और तुम्हारा शरीर सब कुछ पवित्र हो जाएगा यह सुनकर वह लड़का उस भिक्षु के पीछे-पीछे चलने लगा जंगल के बीचोबीच रास्ता झरने की तरफ जाता था जंगल में सन्नाटा छाया हुआ था उनके पैरों तले सूखे पत्तों की चरमरा की आवाज पूरे जंगल में गूंज रही थी आज पूर्णिमा की रात थी और आसमान में चांद अपनी उजली रोशनी उस जंगल में फेंक रहा था उस रोशनी में दोनों उस झरने की तरफ बढ़ते चले जा रहे थे रास्ते में चलते चलते उस युवक ने उस भिक्षु से कहा कि महात्म आपकी जिंदगी मस्त है आपको किसी चीज की कोई परेशानी नहीं है आपको पता है कि दुनिया में कैसे-कैसे लोग बसते हैं कित कितने धोखेबाज कितने मक्कार और सबसे बड़ी बात अपने लोग ही धोखा देते हैं जिनसे हम प्रेम करते हैं जिनको हम अपना मानते हैं जब उन्हीं से धोखा मिलता है तो कैसा महसूस होता है कभी-कभी तो ऐसे लगता है कि भोले और दयालु लोगों के लिए यह दुनिया नहीं बनी है यह धोखे बाजों के लिए है मक्कार के लिए है वही यहां पर फलते फूलते हैं वही आनंद से जीते हैं और हमारे जैसे लोग जो दूसरों की सहायता करते हैं दूसरों को अपना मानते हैं वह हमेशा जीवन भर दुख में रहते हैं यही जीवन की सत्यता है और यही संसार है जिसमें हमें रोज घुट घुट कर मरना पड़ता है आपने सही किया ऐसे जिंदगी को त्याग दिया पीछे छोड़ दिया अब बस अपने में मस्त किसी से कोई परेशानी नहीं है किसी की कोई चिंता नहीं है मैं भी सोचता हूं कि मैं भी सन्यास ले लू छोड़ द इस दुनिया को यह सुनकर उस भिक्षु ने कहा कि तुम्हें क्या लगता है सन्यासी जीवन बहुत आसान होता है भिक्षु ने बड़े शांत स्वर में कहा कि तुम्हें तो दो वक्त की रोटी तो शांति से मिल जा जाती है हमें तो कभी-कभी वह भी नसीब नहीं होती अगर भिक्षा मिल जाती है तो हम खा लेते हैं वरना हमें तो भूखा ही सोना पड़ता है यही सन्यासी जीवन है हमें हमेशा नीचे सोना पड़ता है सिर्फ एक लंगोट में रहना पड़ता है चाहे कैसा भी मौसम क्यों ना हो तो यह सब तुम्हें आसान लगता है तो तुम भी सन्यासी बन जाओ युवक ने कहा कि आप कहते तो ठीक ही है संघर्ष तो दोनों तरफ है सांसारिक जीवन में भी और सन्यासी जीवन में भी वैसे सांसारिक जीवन भी अच्छा है लेकिन तब तक जब तक घर परिवार में सुख शांति बनी रहे धोखा ना मिले हमारे लोग हमारा फायदा ना उठाएं हमसे झूठ ना बोले हमें धोखा ना दे तब तो जीवन जीने का आनंद होता है वरना तो जीवन नर्क हो जाता है भिक्षु ने कहा देखो सन्यास अपने मन से लिया जाता है जब हमारा मन कहता है कि हमें सन्यास के मार्ग पर सफलता हासिल करनी है आगे बढ़ना है तो ही सन्यासी जीवन सफल हो पाता है लेकिन तुम अपने घर से परेशान होकर दूसरे लोगों से परेशान होकर सन्यासी बनना चाहते हो तो तुम्हारा सन्यासी जीवन भी कभी सफल नहीं होगा इससे अच्छा तो तुम सांसारिक जीवन में अगर कुछ तरीके कुछ नियम अपनाओ तो दूसरे लोग तुम्हें धोखा नहीं दे पाएंगे सबसे पहले तो यह समझो कि धोखा उन्हें ही मिलता है जो भावनात्मक रूप से कमजोर होते हैं जिनका दिल जल्दी पिघल जाता है जो दूसरों को दुख में नहीं देख पाते ऐसे लोगों के साथ होने की संभावना ज्यादा होती है क्योंकि कोई भी आदमी अपनी परेशानी बताकर अपने को दुख में बताकर तुम्हारा फायदा उठा सकता है क्या पता वह झूठ बोल रहा हो वह दुखी होने का अभिनय कर रहा हो लेकिन आपको तो सच ही लगेगा और उसके बाद कुछ समय बाद आपको पता चलता है कि आपके साथ धोखा हो गया उसके बाद आपका मन अंदर से टूट जाता है इसीलिए सबसे पहली बात ध्यान रखना कि किसी भी व्यक्ति को यह एहसास मत होने दो कि तुम भावनात्मक रूप से कम कजर हो अंदर से तुम्हारा दिल नर्म है अगर उन्हें आपकी यह कमजोरी पता चल गई तो वह कोई ना कोई जाल रचकर आपका फायदा उठाने की जरूर कोशिश करेंगे चाहे आप अंदर से संवेदनशील हो दूसरों की मदद करने वाले हो लेकिन किसी को एहसास मत होने दो ऊपर से कठोर बने रहो जब लोगों को लगेगा कि इससे कुछ बोलने का फायदा ही नहीं है यह आदमी कठोर है नहीं पिघले तो खुद [संगीत] बखुदा वह उन्हें चुनेंगे जो उनके आसान शिकार होंगे दूसरी बात समझने की यह होती है कि हम बहुत जल्दी दूसरों पर विश्वास कर लेते हैं और हमारी जल्दी विश्वास करने की आदत ही हमें हानि पहुंचाती है दो दिन तुम्हें किसी से मिले हुए नहीं होते हैं और तुम एक दूसरे के हो जाते हो एक दूसरे पर पूरा भरोसा करने लग जाते हो और यह भरोसा तीसरे दिन टूट जाता है और फिर तुम्हें धोखा मिलता है और फिर तुम परेशान होते हो इसीलिए समय दो किसी भी चीज को किसी भी रि रिश्ते को आगे बढ़ाने के लिए समय की जरूरत होती है समय के साथ तुम्हें सामने वाले इंसान की अच्छाई और बुराई पता चलती है तब तुम्हें पूर्ण रूप से पता चलता है कि इंसान वास्तव में कैसा है अच्छा है या बुरा है और वह कुछ समय देने के बाद ही होता है इसीलिए जल्दी किसी पर विश्वास मत करो अगली पहचान या अगला तरीका समझने के लिए तुम्हें ऐसे लोगों को समझना होगा जो दूसरों की चापलूसी करते रहते हैं कुछ लोगों की आदत होती है चापलूसी करने की आपके सामने आपकी बढ़ाई करेंगे आपके बारे में अच्छा-अच्छा बोलेंगे और आपको लगेगा कि यह इंसान कितने अच्छे हैं मेरे से कितना प्यार करते हैं लेकिन वास्तव में उनकी वह चापलूसी एक जाल होती है ताकि वह आपका दिल जीत सके और उनको चापलूसी करने का मौका तभी मिलता है जब आप दिखावा करते हैं अगर आप उनकी चापलूसी से प्रभावित ही नहीं होंगे तो कुछ समय बाद वह चापलूसी करना बंद कर देंगे इसीलिए किसी के सामने दिखावा मत करो वरना आप तो आकर्षण के कें केंद्र बन जाते हो लोगों को लगता है कि शायद इसके पास बहुत ज्यादा धन संपदा है इसीलिए इतना दिखावा कर रहा है और इसी वजह से जो लोग आपका फायदा उठाना चाहेंगे वह आपके करीब आने की कोशिश करेंगे आपकी चापलूसी करने की कोशिश करेंगे अगला नियम बताते हुए बिच्छू ने झरने की तरफ इशारा किया वह झरने के पास पहुंच चुके थे युवक को भी एहसास हो चुका था क्योंकि वहां पर ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी ढलान की तरफ जाते हुए बिच्छू ने कहा कि सांसारिक जीवन में एक बात समझने की यह होती है कि हम जिसकी सहायता कर रहे हैं चाहे किसी भी रूप में धन से शारीरिक रूप से या जिस भी अवस्था में हम किसी की सहायता कर रहे हैं तो हमें यह ख्याल रखना चाहिए कि सामने वाला वापस कभी भविष्य में हमारी सहायता करने योग्य है कि नहीं है अगर किसी को पैसा उधार दे रहे हो तो यह समझो कि उसके पास आए का कोई साधन है कि नहीं है कल भविष्य में वह तुम्हें वापस कर पाएगा कि नहीं कर पाएगा अगर वह नहीं नहीं करेगा तो तुम्हें तकलीफ होगी तुम्हें दुख होगा ऐसे तो इंसान करुणा बस भिखारियों को भी भीख देता है लेकिन वह गलत नहीं है क्योंकि जो भी पैसा अपने सामने वाले को दिया है उससे आपके ऊपर कोई ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा अगर वह आपको वापस भी नहीं लौटा आएगा तो तो अगर किसी ऐसे इंसान को पैसा देना है जो कभी वापस नहीं लौटा पाएगा तो उतना ही देना जिससे तुम्हारे ऊपर ज्यादा दबाव ना बने अगर वह वापस भी ना लौट आए तो तुम्हें ज्यादा दूख ना पहुंचे अब तक वह दोनों झरने पर पहुंच चुके थे दोनों ने अपने कपड़े उतारे और उस झरने के शीतल पानी में कूद पड़े पानी बहुत ठंडा था उन दोनों की सारी थकान सारी उदासी पल भर में ही दूर हो गई स्नान कर लेने के बाद दोनों एक पेड के नीचे उस झरने के सामने बैठकर बातें करने लगे बिच्छू ने उसे आगे समझाते हुए कहा कि शुरुआत में लोगों को नजरअंदाज करना सीखो जब तुम किसी को शुरुआत में नजरअंदाज करते हो हो तो जो भी लोग किसी लालच की वजह से तुम्हारे पास प्रभावित हो रहे थे उनकी छटनी हो जाएगी जब तुम उनको नजरअंदाज करोगे तब कोई एक दो बार लोग तुम्हारे पास आने की कोशिश करेंगे उसके बाद वह तुमसे दूरियां बना लेंगे और जो आदमी तुम्हारी इंसानियत तुम्हारी अच्छाई देखकर तुम्हारे पास आएगा वह नजरअंदाज करने के बावजूद भी तुम्हारे करीब ही बना रहेगा और यही तो एक सच्चे इंसान की पहचान होती है जो हमारे अपने होते हैं उनसे हम लड़ भी लेते हैं झगड़ भी लेते हैं उसके बावजूद भी वह हमारी बातों का बुरा नहीं मानते हैं चाहे थोड़े समय के लिए वह हमसे नाराज रहे लेकिन कुछ समय बाद फिर से हम एक हो जाते हैं और यही तो घर परिवार का मतलब होता है यही तो अपनों का मतलब होता है इसीलिए शुरुआत में अनजान लोगों को नजरअंदाज करना सीखो इग्नोर करना सीखो ताकि धोखेबाज मक्कार लोग तुम्हारे करीब ही ना आ पाए अपने इस वार्तालाप को खत्म करते हुए भिक्षु ने अपनी आखिरी बात बताते हुए कहा कि यह आखिरी सीख सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण है सब कुछ होने के बाद भी तुम्हें धोखे मिल सकते हैं लेकिन तुम अगर अपने आंख और कान और अपना दिमाग खोल कर रखते हो अगर तुम होश में रहोगे ध्यान करोगे तो तुम्हें इंसान की आंखें देखते ही समझ में आ जाएगा कि उसे तुमसे क्या चाहिए तुम उसकी इच्छा और उसका स्वभाव उसकी आंखों में ही पढ़ सकते हो लोगों की आंखों में उनकी वाणी में उनके स्वभाव में उनका सब कुछ दिखाई देता है बस हम ही अपनी आंखें मूंद कर रहते हैं दूसरे लोगों से जानो उसके रिश्तेदारों से जानो उसके परिवार वालों से जानो कि वह इंसान कैसा है दूसरों के साथ उसका व्यवहार कैसा है उसकी पड़ताल करो जब किसी पर विश्वास करो ऐसे ही किसी पर विश्वास मत कर लेना अपनी पूरी संतुष्टि करना अगर तुम किसी के साथ लंबे समय तक भरोसा करना चाहते हो किसी के साथ कोई संबंध बनाना चाहते हो कोई दोस्ती करना चाहते हो या किसी की मदद करना चाहते हो तो इन सभी परिस्थितियों में तुम्हें यह जरूर पता होना चाहिए कि दूसरे लोग उस इंसान के बारे में क्या सोच रखते हैं इसके बाद तुम जीवन में कभी भी धोखा नहीं खाओगे और तुम्हें कभी भी धोखे की वजह से पछताना नहीं पड़ेगा इसी तरह की बातें करते हुए भिक्षु और वह लड़का दोनों जंगल से बाहर आ गए अपने अपने घर को चले गए दोस्तों कभी भी किसी पर भी भरोसा करने से पहले उसके बारे में अच्छे से समझो जानो समय दो फिर भरोसा करो हमें आशा है कि आपको यह वीडियो पसंद आई होगी इसी तरह के मोटिवेशनल और इंस्पायरिंग वीडियो देखने के लिए आप हमारे चैनल को सब्सक्राइब कर सकते हैं हम मिलते हैं इसी तरह की नई मोटिवेशनल वीडियो के साथ [संगीत] धन्यवाद
13) https://youtu.be/dlF9eKRqRBk?si=9ydL1H5VYexTeXWp
दोस्तों किसी गांव की कच्ची गलियों में फैली धूल, टूटी-फूटी झोपड़ियां और चारों ओर दूर तक फैले खेत। यही था अनिकेत की दुनिया। अनिकेत 18 साल का लड़का था। जो अपनी मां और छोटे भाई राजू के साथ मिट्टी के बने एक जजर से घर में रहता था। राजू की उम्र अभी मात्र 8 साल थी। पिता की मृत्यु के बाद यह छोटा सा परिवार जैसे किसी गहरी खाई में धकेल दिया गया था। जब अनिकेत सिर्फ 12 साल का था। तभी उसके पिता किसी गंभीर बीमारी के कारण इस दुनिया से चले गए थे। वह उम्र ही ऐसी थी जब बच्चे खेलते हैं। सपने देखते हैं। लेकिन अनिकेत के बचपन पर तो जैसे एक साथ कई जिम्मेदारियों का बोझ आ गिरा। पिता के जाने के बाद घर में कमाने वाला कोई नहीं था। ना जमीन थी, ना कोई साधन, बस एक कच्चा मिट्टी का घर था। जिसकी दीवारें भी बारिश में गलने लगती थी। पिता के जाने के बाद उसकी मां और वह दोनों ही खेतों में मजदूरी करने लगे। उसी समय राजू मात्र 2 साल का था। मां उसे अपनी कमर पर चादर से कसकर बांध लेती और खेतों में दिन-रा पसीना बहाती। धूप में तपते खेतों में जब वह झुकी हुई काम करती थी तो राजू उसकी कमर पर रोता रहता। लेकिन मां रुकती नहीं थी क्योंकि अगर वह रुकती तो उस दिन का चूल्हा नहीं जलता। अनिकेत भी बहुत छोटा था, लेकिन घर की हालत देखकर उसने अपने बचपन को पीछे छोड़ दिया। मां के साथ दिनभर मजदूरी करना ही उसका जीवन बन गया। खेतों की कड़ी धूप, कांटों जैसी घास और मजदूरी के बाद भी मिलने वाला बेहद कम मेहनताना। यह सब उसकी दिनचर्या का हिस्सा था। समय धीरे-धीरे गुजरता रहा। लेकिन घर की हालत में कोई फर्क नहीं पड़ा। अब अनिकेत 18 साल का हो चुका था। मां की तबीयत लगातार बिगड़ने लगी थी। अब वह खेतों में काम नहीं कर पाती थी। सिर्फ घर के कामकाज ही संभाल पाती थी। घर चलाने की पूरी जिम्मेदारी अनिकेत पर आ गई थी। छोटा भाई राजू अभी सिर्फ 8 साल का था। उसे दुनिया की समझ कहां थी? वह पूरे दिन खेलकूद में लगा रहता था। लेकिन अनिकेत के भीतर चिंता का तूफान था। क्यों नहीं सुधर रहे हमारे हालात? मैं दिनरा मेहनत करता हूं लेकिन ना घर ठीक हो पा रहा है ना मां की बीमारी का इलाज हो रहा है। आखिर मुझसे कहां कमी रह गई? ऐसे ही दिन महीने गुजरते रहे। अनिकेत रोज खेतों में काम करता। लेकिन गरीबी का अंधेरा जैसे उनकी जिंदगी से हटने का नाम नहीं ले रहा था। कई बार खेतों के मालिक उसे डांट देते। उसे यह अपमान भीतर तक चुभता लेकिन मजबूरी थी कुछ कह नहीं सकता था। एक दिन की बात है। खेत में काम करते समय एक छोटी सी गलती हो गई। खेत के मालिक ने सबके सामने अनिकेत को बुरा भला कहना शुरू कर दिया। तुमसे कोई काम ठीक से नहीं होता। हर बार गलती कर देते हो। निकम्मे कहीं के। यह बातें अनिकेत को बहुत बुरी लगी। उसका दिल भर आया। काम छोड़कर चुपचाप खेत से बाहर निकल गया। घर नहीं गया। बस यूं ही पैरों को चलने दिया और गांव के बाहर बहती नदी के किनारे पहुंच गया। नदी शांत बह रही थी। अनिकेत किनारे बैठ गया और बहते पानी को देखने लगा। उसका मन बिल्कुल टूट चुका था। क्या यह भी कोई जिंदगी है? बचपन से अब तक सिर्फ मेहनत ही की है। फिर भी हालात क्यों नहीं सुधरे? ना जमीन है ना कोई हुनर। मैं बेकार हूं। मेरा जीवन व्यर्थ है। उसके मन में अंधेरे ख्याल आने लगे। क्यों ना यह जिंदगी ही खत्म कर दूं। सब खत्म हो जाएगा। कोई बोझ नहीं रहेगा। लेकिन अगले ही पल राजू का चेहरा उसके सामने आ गया। अगर मैंने खुद को खत्म कर दिया तो मां और राजू का क्या होगा? उनके पास तो मैं ही हूं। अनिकेत की आंखें भर आई। तभी पीछे से एक गहरी आवाज सुनाई दी। बेटा क्या देख रहे हो नदी में? अनिकेत ने मुड़कर देखा। गांव के बुजुर्ग बाबा उसके पीछे खड़े थे। उनका चेहरा शांत था जैसे सब कुछ समझ रहे हो। अनिकेत ने जल्दी से आंसू पोंछे। कुछ नहीं बाबा। बस ऐसे ही देख रहा था। बाबा हल्की मुस्कान के साथ बोले। बेटा मायूसी कभी छुपती नहीं। अगर तुम्हें मुझ पर विश्वास है तो अपनी तकलीफ बता सकते हो। क्या पता मैं तुम्हें कोई रास्ता दिखा दूं। मदद करने के लिए मेरे पास कुछ ज्यादा नहीं है। लेकिन शायद अनुभव तुम्हारे काम आ जाए। अनिकेत का दिल भर आया। वह बाबा के साथ नदी किनारे लगे एक पुराने पेड़ की छाया में बैठ गया। बाबा ने शांत स्वर में कहा। तो बेटा बताओ क्या सोच रहे थे नदी के किनारे खड़े होकर? अनिकेत ने भारी मन से कहा। बाबा मैं बहुत उलझा हुआ हूं। समझ नहीं आ रहा कि क्या करूं। एक मन करता है कि दुनिया छोड़ दूं। फिर सोचता हूं मां और भाई का क्या होगा। बाबा चुपचाप सुनते रहे। अनिकेत ने धीरे-धीरे अपनी सारी बातें उन्हें बता दी। बाबा मेरे पिता की मौत हो गई। बचपन मां के साथ खेतों में मजदूरी करते-करते निकल गया। अब जवानी भी मजदूरी में जा रही है। लेकिन हालात सुधर नहीं रहे। मां की तबीयत बिगड़ गई है। घर चलाना मुश्किल हो रहा है। क्या मेरी किस्मत ही खराब है? बाबा ने गहरी सांस ली और बोले, बेटा इतनी जल्दी हार मान गए। अभी तो तुम्हारा जीवन शुरू हुआ है। आगे तुम्हें बहुत से इम्तिहान देने हैं। जो इन इम्तिहानों को पार कर जाता है वही जीवन में सफल होता है। अनिकेत ने उलझन में पूछा। बाबा यह इम्तिहान कौन से होते हैं? बाबा ने समझाया बेटा जीवन की मुश्किलें ही इम्तिहान होती हैं। हर कोई इनसे गुजरता है लेकिन फर्क इस बात से पड़ता है कि इंसान उन मुश्किलों का सामना कैसे करता है। कोई हार मान लेता है। कोई लड़कर जीत जाता है। अनिकेत अब भी सोच में था। बाबा मैं समझ नहीं पा रहा आप क्या कहना चाहते हैं। बाबा ने कहा तुम बचपन से खेतों में काम कर रहे हो। तुम्हें पता है कि बीज कब बोना है, खाद कब डालनी है, पानी कब देना है? ज्यादा पानी आ जाए तो कैसे निकालना है? यह सब जानते हो ना? अनिकेत ने सिर हिलाया। हां बाबा यह सब आता है। कैसे अपनी फसल को बचाना है यह भी आता है। बाबा मुस्कुराए। बस बेटा यही तो बात है। खेत की फसल की तरह ही तुम्हारा जीवन भी है। इस जीवन को मुश्किलों से निकालना तुम्हें खुद ही पड़ेगा। कोई और तुम्हारे लिए यह नहीं करेगा। अब अनिकेत को बाबा की बातें थोड़ी समझ में आने लगी थी। लेकिन उसके मन में सवाल अभी भी थे। बाबा लेकिन मैं करूं क्या? मजदूरी के अलावा मुझे कुछ नहीं आता। बाबा ने दृढ़ स्वर में कहा बेटा सिर्फ एक काम के भरोसे कुछ नहीं होगा। अगर सच में हालात बदलना चाहते हो तो अलग-अलग प्रयास करो। सिर्फ मजदूरी करने से तुम अपने घर की हालत नहीं सुधार पाओगे। गांव में देखो कितने लोग खुद का काम कर रहे हैं। तुम भी कुछ सीख सकते हो जो तुम्हें अच्छा लगे। अनिकेत ने असमंजस में पूछा। लेकिन बाबा मैं कैसे कर पाऊंगा? खेत में मजदूरी भी करनी होती है। बाबा ने उसके सिर पर हाथ रखा और गंभीर स्वर में कहा, बेटा अगर मैं ही तुम्हें सब बता दूंगा तो तुम खुद कुछ नहीं कर पाओगे। जाओ खुद देखो कि इस मुश्किल का सामना कैसे करोगे। बस एक बात याद रखना जब तक सांस है तब तक उम्मीद है। जब तक जिंदा हो हौसला और उम्मीद कभी मत छोड़ना। इतना कहकर बाबा उठे और धीरे-धीरे वहां से चले गए। अनिकेत वहीं बैठा रहा। उसके मन में बाबा की बातें गूंज रही थी। वह गहरी सोच में डूब गया। क्या मैं सच में कुछ बदल सकता हूं? बाबा ठीक कहते हैं। मुझे खुद ही रास्ता खोजना होगा। उसने बाबा को जाते हुए देखा और देर तक उसी जगह बैठा रहा। हवा में ठंडक थी। लेकिन उसके मन में बेचैनी थी। रात का समय हो गया। वह धीरे-धीरे अपने मिट्टी के घर की तरफ बढ़ा। घर पहुंचा तो मखाट पर लेटी थी और राजू बाहर मिट्टी में खेल रहा था। अनिकेत चुपचाप दरवाजे के बाहर बैठ गया। मन में उथल-पुथल थी। क्या सच में मैं कुछ कर पाऊंगा? कौन सा काम करूंगा? मजदूरी छोड़ दूं तो घर कैसे चलेगा? सोचते-सचते रात गुजर गई। सुबह की पहली किरणों के साथ ही वह उठ गया। उसने तय किया कि आज मजदूरी के लिए खेत जाएगा। शायद काम मिल जाए। अनिकेत अपने पुराने कपड़े पहनकर खेतों की तरफ निकला। खेत में जाते-जाते उसने कई जगह काम पूछा लेकिन हर जगह जवाब वही मिला। आज तो कोई काम नहीं है। मजदूर पहले से हैं। यह सुनकर उसका मन और टूट गया। मजदूरी ही एक सहारा था और वह भी आज नहीं मिल रही थी। वह सोचने लगा अब क्या करूं? घर वापस जाऊंगा तो मां क्या सोचेगी? बाबा ने कहा था अलग-अलग कोशिश करनी चाहिए। पर कहां से शुरू करूं? धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए वह गांव की तरफ लौट आया। उसके मन में अब भी अनिश्चितता थी, लेकिन उसने ठान लिया कि हार नहीं मानेगा। सबसे पहले अनिकेत उस जगह पहुंचा जहां मिट्टी के बर्तन बनाने वाला कुम्हार काम कर रहा था। उसने कुछ देर खड़े होकर देखा। कुम्हार मिट्टी को गूंथ रहा था। फिर चाक पर रखकर अलग-अलग आकार के बर्तन बना रहा था। बर्तन बनाने की कला देखते ही बनती थी। लेकिन अनिकेत ने सोचा यह काम सीखना आसान नहीं होगा और इसमें तो समय भी बहुत लगेगा। मेरे पास इतना वक्त कहां है? वह वहां से चुपचाप आगे बढ़ गया। थोड़ी दूर जाने पर गांव के लाला की किराने की दुकान दिखाई दी। दुकान पर भीड़ लगी थी। लोग सामान खरीद रहे थे। अनिकेत दुकान के बाहर खड़ा हो गया। अगर मैं यहां काम करूं तो लेकिन तुरंत ही उसका मन बैठ गया। यह तो बहुत बड़ा काम है और लाला इतना अनुभवी है। वह मुझे काम पर क्यों रखेगा? यह मेरे बस का नहीं है। उसने वहां से भी कदम पीछे खींच लिए। अब अनिकेत गांव के पीपल के पेड़ के नीचे पहुंचा। वहां लकड़ी की एक पुरानी बेंच रखी थी। एक छोटा सा शीशा लकड़ी के फ्रेम में चढ़ा हुआ था और गांव का नाई ग्राहकों के बाल काट रहा था। चार लोग अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। अनिकेत पास ही बैठ गया। वह ध्यान से देखता रहा कि नाई कैसे बाल काट रहा था। वह कुशलता से कंघी और कैंची चलाता, दाढ़ी बनाता और काम खत्म होने पर लोग संतुष्ट होकर चले जाते। सुबह से लेकर दोपहर तक अनिकेत वहीं बैठा रहा। नाई एक-एक करके सभी ग्राहकों को निपटाता गया। काम खत्म होने पर वह अनिकेत के पास आकर बेंच पर बैठ गया। पसीना पोंछते हुए उसने कहा, भाई थक गया हूं। सुबह से काम कर रहा हूं पर यही मेरा रोजगार है। इससे मेरा घर चलता है। अनिकेत ने मन ही मन सोचा। इसका तो हुनर है इसलिए काम चलता है। काश मेरे पास भी कोई हुनर होता। उसने नाई से कहा भाई तुम्हारा काम तो अच्छा है। तुम थकते हो लेकिन घर तो चलता है। नाई ने हल्की मुस्कान दी। हां भाई थकान तो होती है। लेकिन यही काम मुझे खाना खिलाता है। वैसे मेरा सपना है कि शहर चला जाऊं। वहां ज्यादा कमाई होगी। 2 महीने में जाने की सोच रहा हूं। अनिकेत चौंका शहर लेकिन तुम्हारे जाने के बाद गांव के लोगों के बाल कौन काटेगा? नाई ने बेपरवाही से कहा भाई मुझे इनकी चिंता नहीं। मुझे अपनी जिंदगी की चिंता है। यहां रहकर कितने पैसे कमा लूंगा? शहर में ज्यादा मौके हैं। अनिकेत यह सुनकर चुप हो गया। नाई ने थोड़ी देर बाद कहा। भाई तुम सुबह से यहीं बैठे हो। तुम्हें बाल कटवाने हैं क्या? अनिकेत ने सिर हिलाया। नहीं भाई मैं तो बस सोच रहा था कि गांव में कोई काम मिल जाए जिससे मैं कुछ सीख सकूं। नाई ने उसे गौर से देखा और फिर मुस्कुराया। अरे यह तो बहुत अच्छी बात है। मैं तो गांव छोड़कर जा ही रहा हूं। अगर चाहो तो यह काम सीख लो। यहां तुम्हारा काम अच्छा चल जाएगा। अनिकेत ने संकोच से पूछा। क्या मैं सीख पाऊंगा? नाई ने आत्मविश्वास से कहा। क्यों नहीं? एक महीने में सब सिखा दूंगा। शाम को 2 घंटे निकाल सकते हो तो आना। धीरे-धीरे हाथ चलाना सीख जाओगे। अनिकेत ने थोड़ा झिझकते हुए कहा। लेकिन भाई मुझे खेतों में मजदूरी भी करनी होती है और घर की हालत भी ठीक नहीं है। नाई ने उसकी पीठ थपथपाई। बस शाम को समय निकाल लो। बाकी सब हो जाएगा। कल से आना शुरू कर दो। अनिकेत के चेहरे पर पहली बार थोड़ी चमक आई। उसने मन ही मन सोचा शायद यही मौका है जो मुझे रास्ता दिखा सकता है। उस दिन के बाद से अनिकेत हर शाम नाई के पास जाने लगा। दिन में खेतों में मजदूरी करता और शाम को नाई की दुकान पर काम सीखता। कई बार खेतों में मजदूरी नहीं मिलती तो वह दिनभर नाई के पास ही बैठकर काम देखता और अभ्यास करता। धीरे-धीरे एक महीना बीत गया। अनिकेत अब काफी हद तक बाल काटना और दाढ़ी बनाना सीख चुका था। कभी-कभी वह नाई की अनुपस्थिति में ग्राहकों के बाल भी काट देता और नाई उसे उसके काम का थोड़ा पैसा भी देने लगा। गांव में लोग बातें बनाने लगे। अरे अब अनिकेत मजदूरी छोड़कर नाई का काम करेगा। लेकिन अनिकेत ने किसी की परवाह नहीं की। उसके भीतर बाबा की बातें गूंज रही थी। जब तक सांस है तब तक उम्मीद है। नाई के पास काम सीखते-सीखते अनिकेत का आत्मविश्वास बढ़ने लगा था। एक महीना पूरा हो गया था और अब वह बाल काटने दाढ़ी बनाने में अच्छा हो चुका था। शाम को दुकान पर बैठते हुए कभी-कभी लोग उससे ही बाल कटवाते और नाई उसे मेहनताने का हिस्सा भी दे देता। गांव के कुछ लोग अब भी ताने देते। अरे मजदूरी छोड़कर नाई का काम करेगा। इससे घर चलेगा क्या? लेकिन अनिकेत ने किसी की परवाह नहीं की। उसे बस बाबा की कही बात याद रहती। जब तक सांस है तब तक उम्मीद है। आखिर वह दिन आ ही गया जब नाई गांव छोड़कर शहर जाने वाला था। शाम का समय था। नाई ने अनिकेत को बुलाया और कहा, भाई, अब मैं जा रहा हूं। यह शीशा है। यह लकड़ी की कुर्सी और कुछ औजार हैं। इन्हीं से तुम्हारा काम चल जाएगा। अगर औजार पुराने हो जाए या और चाहिए हो तो यह मेरा पता है। शहर आकर मुझसे मिल लेना। अनिकेत भावुक हो गया। भाई लेकिन मेरे पास अभी तुम्हें पैसे देने के लिए कुछ नहीं है। नाई मुस्कुराया जब औजार लेने आओगे तब दे देना। अभी बस काम शुरू करो। अनिकेत ने नाई का धन्यवाद किया। वह अब अपने दम पर खड़ा होने जा रहा था। नाई के जाने के बाद अनिकेत ने वही पेड़ के नीचे अपनी दुकान जमा ली। लकड़ी की पेंच, छोटा सा शीशा और औजार यही उसका सहारा थे। लेकिन दुकान से होने वाली कमाई अब घर के खर्च में मदद करने लगी। 2 महीने बीत गए। अनिकेत का काम अच्छा चल रहा था। घर में अब खाने-पीने की कोई कमी नहीं रही थी। मां की दवाइयां समय पर मिल जाती थी और उनकी तबीयत में भी सुधार आने लगा था। राजू को वह अक्सर अपने साथ दुकान पर ले जाता और कहता देख कुदफान से जिंदगी नहीं चलती। काम सीखना जरूरी है। राजू भी धीरे-धीरे अनिकेत के साथ यह हुनर सीखने लगा। 6 महीने बीतते-बीतते अनिकेत का काम और बेहतर हो गया। लेकिन अब उसकी कैंची की धार कम होने लगी थी। औज़ पुराने हो रहे थे। उसने सोचा अब शहर जाकर नए औज़ लेने होंगे। उसी नाई से मिलूंगा जिसने मुझे यह मौका दिया था। अनिकेत शहर गया और सीधा उसी पते पर पहुंचा। वह देखकर चकित रह गया। नाई अब एक बड़े सेलून में काम कर रहा था। भाई तुम यहां अनिकेत ने खुशी से कहा। नाई मुस्कुराया। हां भाई यहां काम अच्छा चल रहा है। तुम बताओ तुम्हारा काम कैसा चल रहा है? अनिकेत ने कहा अच्छा चल रहा है भाई। पर औजार पुराने हो गए हैं इसलिए नए लेने आया हूं। यह लो तुम्हारे पैसे। नाई ने पैसे लेते हुए सलाह दी। भाई अब अपने रेट थोड़ा बढ़ाओ और गांव में कोई दुकान किराए पर ले लो। देखना तुम्हारा काम और बढ़ेगा। नाई की सलाह अनिकेत को समझ में आ गई। वह गांव लौट कर बनिए की एक दुकान किराए पर लेने लगा। उसने वहीं अपनी नई दुकान जमा ली। अब उसने अपने काम के दाम थोड़े बढ़ा दिए। गांव के लोग उसकी मेहनत को पहचानने लगे थे। इसलिए कोई शिकायत नहीं करता। अनिकेत का काम दिन-बदिन बढ़ता गया। अब घर में अच्छे कपड़े, अच्छा खाना होने लगा था। मां पूरी तरह ठीक हो चुकी थी। राजू भी अब 15 साल का हो गया था और दुकान पर अनिकेत के साथ खड़ा होकर काम करने लगा था। 5 साल बीतते-बीतते अनिकेत 23 साल का हो गया था। उसका मिट्टी का घर अब पक्का बन चुका था। वह और राजू मिलकर दुकान चलाते और परिवार को खुशहाल बनाए रखते। मां अपने बेटों को देखकर गदगद थी। एक दिन अनिकेत गांव की चौपाल से गुजर रहा था। वहां वही बाबा बैठे थे जिन्होंने उसे नदी किनारे समझाया था। बाबा ने उसे आवाज दी। अरे बेटा अब तो हमें भूल ही गए। अनिकेत ने मुड़कर देखा। वह दौड़ता हुआ उनके पास गया और उनके चरण छू लिए। बाबा आप बहुत दिनों बाद दिखे। आपके आशीर्वाद से ही मैंने अपने हालात सुधारे हैं। बाबा मुस्कुराए। अरे बेटा मैंने तो बस तुम्हें रास्ता दिखाया था। कर्म तो तुमने किए। अच्छे कर्म करोगे तो अच्छा फल मिलेगा। बुरे करोगे तो बुरा ही मिलेगा। अनिकेत भावुक हो गया। उसने महसूस किया कि बाबा की बात सच थी। कठिनाइयां जीवन का हिस्सा थी। लेकिन इंसान अगर हिम्मत रखे और कोशिश करें तो हालात बदल सकते हैं। अब अनिकेत खुशहाल जीवन जी रहा था। उसने अपने परिवार की जिंदगी भी बदल दी थी। दोस्तों अगर आप अपनी जिंदगी को सुधार रहे हैं तो आप अपने परिवार की जिंदगी भी सुधार रहे हैं। हमेशा याद रखो प्रयास करते रहो। अगर एक काम में सफल नहीं हो रहे हो तो दूसरा काम करो लेकिन रुकना मत। जब तक सांस है तब तक उम्मीद है। दोस्तों, अगर आपको यह कहानी पसंद आई हो और जीवन में हिम्मत देने वाली लगी हो, तो इसे लाइक जरूर करें। अपने दोस्तों और परिवार के साथ भी इस वीडियो को शेयर करें ताकि उन्हें भी जीवन में कभी हार ना मानने की प्रेरणा मिले। और हां, अगर आप पहली बार हमारे YouTube चैनल ट्रुथ ऑफ लाइफ पर आए हैं तो चैनल को सब्सक्राइब करना बिल्कुल ना भूलें। बेल आइकन दबाएं ताकि हमारी अगली प्रेरणादायक कहानियों का नोटिफिकेशन सबसे पहले आपको मिले। नीचे कमेंट करके बताइए इस कहानी का कौन सा हिस्सा आपको सबसे ज्यादा प्रेरित कर [संगीत]
14) https://youtu.be/ily5DeoANIM?si=xHpDKq0GagkKHz-y
दोस्तों बहुत समय पहले की बात है। उत्तर भारत के एक छोटे से गांव में एक 18 साल का लड़का किशोर अपनी मां और एक छोटी बहनों के साथ रहता था। उसका नाम भले ही किशोर था, लेकिन हालातों ने उसे समय से पहले बड़ा बना दिया था। उसके पिता बलवी कभी एक अच्छे किसान माने जाते थे। मेहनती थे, सच्चे थे। लेकिन वक्त ने जब उन्हें धोखा दिया तो उन्होंने शराब को अपना साथी बना लिया। पहले दुख बांटने के लिए पीते थे, फिर आदत बन गई। अब तो हर शाम उनके होश उड़ जाते। खेत की कमाई हो या मजदूरी की दिहाड़ी सब पीने में ही उड़ जाती। किशोर को चिंता रहती थी आखिर घर कैसे चलेगा। सुबह-सुबह सूरज निकलने से पहले जब गांव अभी गहरी नींद में होता, किशोर अपना हल लेकर खेत की ओर निकल जाता। दोपहर में वहीं खेत में सूखी रोटी खाता। फिर थोड़ी देर सुस्ताकर किसी और के खेतों में मजदूरी करने लग जाता। गांव के बड़े बूढ़े उसकी मेहनत की तारीफ करते। लेकिन साथ में यह भी कहते बाप तो शराबी है। बेटा कहां तक लड़ेगा तकदीर से? किशोर को फर्क नहीं पड़ता था। उसे पता था कि मेहनती ही उसका हथियार है। हर महीने जब स्कूल की फीस जमा करनी होती तो वह मजदूरी बढ़ा देता। अपनी बहन रेखा को पढ़ाना उसकी पहली प्राथमिकता थी। मेरे हिस्से की किस्मत शायद खराब है। वह सोचता पर रेखा को मैं उजाला दूंगा। शाम होते ही बलवीर लौटते। लड़खड़ाते हुए। उनकी आंखें लाल होती। जुबान से बदबू और हाथ में अक्सर कोई बहाना। आज बाबूलाल से पुराना हिसाब चुका लिया था। आज महंगाई बहुत है। समझा कर। कभी-कभी किशोर की मां गायत्री देवी रोती हुई कहती, अब तो कुछ भगवान ही करें। लेकिन किशोर ने उम्मीद नहीं छोड़ी। हर रात वो अपनी झोपड़ी की टूटी छत पर जाकर बैठता, तारों को निहारता और सोचता, कैसे होगा यह सब? कौन बदल सकता है मेरे पिता को? कैसे चुकाऊंगा कर्जा? कैसे लाऊं घर में सुकून? फिर वह खुद से कहता कोई नहीं आएगा। मुझे ही बनना होगा घर का सहारा। बाप भी, भाई भी, बेटा भी। मैं हार नहीं मानूंगा। हर महीने किसी ना किसी साहूकार की आवाज उनके दरवाजे पर सुनाई देती। गायत्री बलवीर से कहो उधार चुका दे। अबकी बार बैल बेच कर लूंगा। बेटा भी जवान हो गया है। मजदूरी करता है फिर भी कर्ज नहीं चुकाते। किशोर का सीना शर्म से झुक जाता। लेकिन गुस्से की बजाय उसने फिर से वही किया जो वह सबसे अच्छे से करता था। मेहनत। दिन में खेत, शाम को ईंट भट्टे पर काम और रात को गांव में एक सेठ की दुकान पर चाय पिलाने का काम। उसने धीरे-धीरे कर्ज चुकाना शुरू किया। पहले ₹10, फिर 100। साल भर में आधा कर्ज चुका चुका था। उसकी मां कभी-कभी खेत में आ जाती। तू अकेला थक जाएगा बेटा। कहती और खुद भी फावड़ा उठाकर काम करने लगती। उसके हाथों में बुढ़ापा था पर इरादों में लोहे जैसी मजबूती। मां बेटे की जोड़ी खेत में पसीना बहाते और रात में वही सूखी रोटियां खाते। किशोर जब कभी थक कर बैठता मां उसका सिर सहला कर कहती। बेटा भगवान ने हाथ दिए हैं। भाग्य खुद ही लिख डालो। किशोर ने कई बार अपने पिता को समझाने की कोशिश की। बाबूजी छोड़ दीजिए ना पीना। मां दिन रात खेत में काम करती हैं। बहन को पढ़ाना है। आप ही हमारा सहारा है। लेकिन हर बार बलवीर टाल जाते। तू क्या मुझे सिखाएगा जिंदगी। बहुत देखा है दुनिया को। किशोर गुस्से में कुछ कहता भी नहीं। सिर्फ मन ही मन कसम खाता कि एक दिन यह शराब खुद उनके जीवन से जाएगी। एक दिन बलवी खेत से लौटते वक्त अचानक गिर पड़े। लोगों ने उन्हें घर पहुंचाया। हालत गंभीर थी। किशोर उन्हें लेकर गांव के डॉक्टर के पास गया। डॉक्टर ने रिपोर्ट देखकर कहा अगर इन्हें अब भी नहीं रोका गया तो अगली बार सीधा अस्पताल से उठाना पड़ेगा। लिवर खराब हो रहा है। उस दिन पहली बार बलवी की आंखें डबड़बा गई। उन्होंने कुछ नहीं कहा लेकिन चुपचाप किशोर का हाथ पकड़ा और घर लौट आए। रात को जब सब सो रहे थे बलवीर किशोर के पास आए। बेटा बहुत बुरा बाप रहा हूं मैं। तूने कभी शिकायत नहीं की। अब तेरा कहां मानूंगा? कसम है आज के बाद एक बूंद भी नहीं पियूंगा। किशोर की आंखों में आंसू थे। उसने बस इतना कहा। बाबूजी अब मिलकर खेत जोतेंगे और हमारी जिंदगी भी। सुबह की ठंडी हवा में किशोर और उसके पिता बलवी पहली बार साथ-साथ खेत की मेड पर खड़े थे। हाथ में हल था। माथे पर पसीना नहीं बल्कि आत्मविश्वास की चमक थी। बलवीर अब नशे में नहीं थे। चेहरे पर पछतावे की छाया और साथ ही एक नई शुरुआत का संकल्प। बापू, अब नशा सिर्फ मेहनत का करेंगे। बलवीर ने कहा अब समझ में आ गया बेटा यही असली नशा है। उस दिन खेत में जो हल चला वो सिर्फ जमीन को नहीं बलवी के अंदर जमी बर्फ को भी तोड़ रहा था। हर फावड़े के साथ जैसे उनके बीते पाप बह रहे थे। किशोर अपने बगल में काम करते बाप को देख रहा था। जिनका शरीर कभी मजबूत था लेकिन अब कमजोरी से हिल रहा था। बलवीर थक जाते तो किशोर उन्हें पानी पिलाता और कहता धीरे-धीरे आदत हो जाएगी बापू बस साथ मत छोड़ना बलवी सिर्फ सिर हिलाकर मुस्कुरा देते अब वो चुप रहते थे बहुत कुछ सोचते रहते थे जो दिन पहले दारू के नशे में कटते थे अब पसीने में भीगते थे घर की हालत भी अब बदलने लगी थी कभी जहां शाम होते ही लड़ाई चीखें और मां की सिसकियां गूंजती थी अब वहां अशा शांति और उम्मीद की आवाजें थी। गायत्री देवी को तो जैसे कोई सपना दिख रहा था जिसे छूने से डर लग रहा था। वो हर दिन बलवी से पूछती सच में अब नहीं पियोगे। बलवीर जवाब में बस किशोर की ओर देखते और कहते अब जो बोया है खेत में उसे काटना है और बेटे का भरोसा नहीं तोड़ा जा सकता। छोटी बहन रेखा भी पिता को अब नए रूप में देखकर खुश होती। उसे अब वो डर नहीं लगता था जो पहले शाम के समय लगता था। किशोर अब केवल अपने हिस्से की मजदूरी ही नहीं करता था। बल्कि पिता के साथ मिलकर दोगुनी मेहनत करता। दोनों मिलकर रोज खेत में ज्यादा काम करने लगे। उन्होंने सुनसान पड़े एक दूसरे खेत का पट्टा भी ले लिया। जिसमें सब कहते थे यहां कुछ नहीं उगता। लेकिन किशोर ने बापू से कहा था। जहां भरोसा होता है वहां मिट्टी भी फसल बन जाती है। धीरे-धीरे मेहनत रंग लाने लगी। वो बंजर जमीन अब हरी होने लगी। गांव में बातें होने लगी। बलवीर बदल गया है। अरे बेटा अच्छा हो तो बाप भी सुधर जाता है। साहूकार भी जब आया अगली बार तो किशोर ने पूरे ₹3000 चुकाए। वो चौंक गया। अब तेरे बाप को क्या हो गया है रे। किशोर ने कहा अब वह समझ गए हैं कि नशा किसका करना है। एक दिन बलबीर खेत से लौटते समय चौपाल से गुजर रहे थे। वहां उनके पुराने शराबी दोस्त बैठे थे बाबूलाल छेदी और फत्ते। बाबूलाल बोला अबे ओ बलवीर कहां खो गया है यार? चल एक पैग हो जाए। पुरानी यादें ताजा हों। बलवीर रुके। चुपचाप बाबूलाल की तरफ देखा। फिर किशोर की मुस्कान याद आई। गायत्री की सिसकियां, रेखा की पढ़ाई और खुद का नया चेहरा। अब मैं नशा करता हूं पर महंत का और उस नशे में चैन भी है और परिवार की मुस्कान भी। इतना कहकर वो आगे बढ़ गए। पीछे बैठे उसके पुराने साथी खामोश रह गए। कुछ को समझ आया कुछ को नहीं। घर में अब त्यौहार जैसे दिन लगते थे। गायत्री कभी अपने हाथों से खीर बनाती तो रेखा पिता को अपनी किताबें दिखाकर कहती देखो बाबूजी इस बार पूरे नंबर आए हैं। बलवीर किताबें देखते लेकिन शब्द नहीं पढ़ पाते। फिर भी उनके चेहरे पर गर्व होता। एक दिन जब रेखा ने कहा पढ़ाई पूरी करके मैं डॉक्टर बनूंगी तो बलवीर की आंखों में आंसू आ गए। उन्होंने कहा जिस घर में पहले शराब के लिए पैसे नहीं बचते थे। वहां अब बेटी के सपनों के लिए मिट्टी भी बेच देंगे। महीनों की मेहनत के बाद फसल तैयार हुई। भरपूर गेहूं, सरसों और कुछ सब्जियां भी। गांव वालों ने देखा तो बोले, अरे यह वही बंजर जमीन है ना? हां, अब महंत ने इसे भी हरा कर दिया। बलवीर और किशोर मिलकर खलिहान में अनाज इकट्ठा करते थे। गायत्री और रेखा भी काम में हाथ बंटाती थी। पहली बार घर में अन्न का भंडार था और मन में संतोष। एक दिन बलवी खेत की मेंढ पर बैठे थे। दोपहर की धूप में उन्हें बचपन की यादें आ रही थी। जब उनके पिता भी उन्हें हल चलाना सिखाते थे। उन्होंने सोचा काश मैंने पहले समझा होता। पीछे से किशोर आया उनके पास बैठ गया और बोला अब हम बहुत कुछ पा लेंगे बापू बस साथ मत छोड़ना। बलवी ने उसका कंधा थपथपाया और कहा अब तो नशा ही बदल गया है बेटे अब तो हर पसीना खुशी लगता है। गायत्री अब रोज पूजा करती थी और हर सुबह कहती आज का दिन और अच्छा होगा। अब डर नहीं लगता। रेखा की पढ़ाई में भी सुधार था और घर में हर छोटी चीज को लेकर जो तंगी थी, अब वह धीरे-धीरे हट रही थी। छोटे-छोटे सपनों को अब पूरा किया जा सकता था। फटी चारपाई की जगह नई खाट आ गई और जिस घर की दीवारें छूने से गिर जाती थी। अब उन्हें पलस्तर करवा दिया गया था। बलवीर अब जब खेत से लौटते तो दरवाजे पर गायत्री एक लोटा पानी और तौलिया लेकर इंतजार करती। रेखा पिता को देखती तो दौड़कर उनके गले लग जाती। यह वही घर था। लेकिन अब घर जैसा लगता था। गांव के प्रधान से लेकर छोटा किसान अब बलवीर और किशोर की जोड़ी की तारीफ करता। देखो कैसे महंत ने आदमी को वापस इंसान बना दिया। किशोर ने बाप को नहीं छोड़ा इसलिए बाप खुद को बदल गया। अब किशोर और बलवी दूसरों के खेतों में मजदूरी नहीं करते थे बल्कि खुद के दो खेतों में काम करते थे। खेतों में गेहूं की सुनहरी बालियां लहरा रही थी। जैसे वह खुद भी कह रही हो। मेहनत का फल यही है। एक दिन गांव के प्रधान ने सभी किसानों की सभा बुलाई। गांव के चौपाल पर एक मंच लगाया गया था। लोग इकट्ठा हुए थे। मर्द, औरतें, बच्चे। सबकी निगाहें मंच पर थी। प्रधान जी ने कहा, आज हम एक ऐसे आदमी का सम्मान करना चाहते हैं जो कभी खुद को खो चुका था। लेकिन महंत के नशे ने उसे वापस जिंदगी में खड़ा कर दिया। वो आदमी जिसने शराब को छोड़ा और हल को पकड़ा। जिसने अपने बेटे से नहीं शर्म खाई बल्कि उससे सीखा। लोगों की नजरें बलवी पर पड़ी जो मंच के पीछे खड़ा था सिर झुकाए। आंखें भीगी थी। प्रधान ने बलवीर और किशोर को मंच पर बुलाया। तालियों की गूंज से पूरा चौपाल भर गया। बलवी ने मंच पर खड़े होकर सिर्फ एक वाक्य कहा। मैं शराब से टूटा था। पर बेटे की मेहनत से जुड़ गया। अब जब बलवीर चौपाल से गुजरते तो वही पुराने साथी जो पहले ताना मारते थे अब नमस्ते करते थे। एक दिन बाबूलाल ने आकर कहा बलवी अब तुझसे जलन नहीं तुझसे सीखने का मन करता है। बलवीर ने मुस्कुरा कर कहा। चलो अब तू भी नशा महंत का कर जैसे मैंने किया। एक दिन किशोर अपनी पुरानी टूटी हुई छत पर बैठा था। वहीं जहां वो कभी अकेले रोया करता था। आज बलवीर भी उसके साथ बैठा था। दोनों आसमान की ओर देख रहे थे। बेटा याद है तू यही बैठकर सोचता था कि घर कैसे चलेगा। किशोर मुस्कुराया। हां बापू तब आप नहीं समझते थे। लेकिन अब समझा दिया आपने सबको। बलवीर ने उसके कंधे पर हाथ रखा। मुझे खुद को माफ करना सीखना पड़ा। लेकिन तूने कभी मुझे छोड़ा नहीं बेटा। वरना मैं शायद आज जिंदा भी ना होता। दिवाली का त्यौहार आया। इस बार घर में दिए जले थे। सिर्फ दीवारों पर नहीं चेहरों पर भी रोशनी थी। गायत्री ने पहली बार अपने पति के लिए नए कपड़े खरीदे। रेखा ने पिता को कार्ड बनाकर दिया। मेरे हीरो मेरे पापा। बलवीर ने उसे सीने से लगा लिया और कहा अब यह घर मेरा मंदिर है और मेरी पूजा महंत। कुछ महीने बाद बलवीर फिर से चौपाल पर बैठे थे। लेकिन इस बार एक शराबी नहीं एक सम्मानित किसान के रूप में। उनके पास एक बूढ़ा आदमी आया। बोला बलवी सच में तूने अपना घर नहीं गांव की सोच बदल दी। बलवीर ने हंसते हुए जवाब दिया। बस इतना समझ लिया कि जो नशा तुम्हें मिट्टी से जोड़ दे वही तुम्हारी किस्मत बना सकता है और जो नशा तुम्हें घर से दूर कर दे वो तुम्हें बर्बादी के रास्ते ले जाता है। अब मैं सिर्फ पसीने की खुशबू में जीता हूं। शराब की बदबू बहुत झेल ली। आज बलवीर का सिर ऊंचा है और किशोर की आंखों में संतोष है। गांव जानता है कि नशा अगर करना है तो मेहनत का करो। क्योंकि वही एकमात्र नशा है जो घर बनाता है, रिश्ते जोड़ता है और इंसान को इंसान बनाता है। दोस्तों, अगर आपको यह कहानी नशा मेहनत का करो, प्रेरणादायक लगी हो तो इसे लाइक करें। अपने दोस्तों और परिवार के साथ शेयर करें और ऐसी ही सच्ची दिल को छू लेने वाली कहानियां रोज सुनने के लिए। हमारे YouTube चैनल ट्रुथ ऑफ लाइफ को सब्सक्राइब करना ना भूलें। बेल आइकन जरूर दबाएं ताकि कोई भी प्रेरक कहानी आपसे छूट ना जाए। याद रखें मेहनत का नशा सबसे मजबूत नशा होता है।
15) https://youtu.be/E0rh74esNKg?si=FDWmymV20WxFZ1Lz
दोस्तों बहुत समय पहले की बात है। एक छोटे से गांव में एक सीधा साधा लड़का रहता था। नाम था माधव। उम्र रही होगी कोई 18 साल। चेहरा मेहनत से तपे हुए चेहरे जैसा पर आंखों में एक अलग सी चमक। वह गरीब परिवार का था। लेकिन हालात के आगे कभी झुका नहीं। माधव के पिता गंभीर बीमारी से पीड़ित थे। बिस्तर पकड़ लिया था उन्होंने। मां खेतों में मजदूरी करके जो कुछ मिल जाता उससे दाल रोटी का जुगाड़ करती। घर की दीवारें पुरानी थी। छत से बारिश में टपकती बूंदे और जमीन पर टूटी चटाइयां। यही था उनका संसार। माधव की एक छोटी बहन भी थी। गौरी जो गांव के सरकारी स्कूल में आठवीं कक्षा में पढ़ती थी। पढ़ाई में तेज थी पर उसकी आंखों में भी डर था। मां की थकीहारी सांसों का, पिता की दवा की कीमतों का और शायद अपने भविष्य का भी। घर का एकमात्र सहारा अब माधव ही था। दिनभर किसी के खेत में मजदूरी करता, कभी ईंट ठोता, कभी बोरवेल खुदाई में मदद करता। मां का कहना था, बेटा तू ही मेरी आखिरी उम्मीद है। लेकिन कई बार जब रात को घर में दिया भी बुझने लगता, तब माधव चुपचाप गांव की चौपाल चला जाता। अंधेरे में बैठकर चांदनी को देखता और सोचता क्या वाकई मेरी जिंदगी ऐसे ही गुजर जाएगी क्या बापू का इलाज कभी नहीं हो पाएगा और बहन उसकी शादी ऐसी ही एक रात थी चुपचाप बैठा था माधव चौपाल पर गहरी सोच में डूबा हुआ तभी एक धीमी सी आवाज आई क्यों रे माधव अकेले काहे बैठा है इतना चुपचाप माधव ने सिर उठाकर देखा चंपक चाचा गांव के सबसे बुजुर्ग लेकिन लेकिन सबसे समझदार इंसान लोगों का कहना था कि उन्होंने जिंदगी को बहुत नजदीक से देखा है। माधव बोला चाचा आप तो जानते हैं घर की हालत खराब है। बापू की दवा, मां की थकान और बहन की पढ़ाई सब मुझ पर है। पर गांव में मजदूरी से कुछ होता नहीं। मैं कितना भी काम करूं पैसे कभी पूरे नहीं पड़ते। चंपक चाचा मुस्कुराए। फिर गंभीर होकर बोले। बिल्कुल सही कह रहा है तू। चिंता करना ठीक है बेटा। पर हर वक्त उसी में डूबे रहना अच्छा नहीं। सोचो क्या किया जाए? माधव बोला सोच तो रहा हूं चाचा। पर कुछ समझ नहीं आता। चाचा ने हल्का हाथ उसके कंधे पर रखा और कहा शहर जा बेटा। गांव के बाहर जो छोटा शहर है वहां कुछ तो मिल ही जाएगा। तू मेहनती है। कुछ भी करेगा तो कुछ ना कुछ बन ही जाएगा। पर चाचा वहां जाकर करूंगा क्या? कोई जानता भी नहीं। अरे पगले जो रास्ते चलते हैं वही आगे बढ़ते हैं। एक बार कोशिश करके देख। कोई काम छोटा बड़ा नहीं होता। शुरू में जो मिले कर ले। फिर धीरे-धीरे चीजें बदलती हैं। माधव ने चाचा की आंखों में देखा। वहां भरोसा था। चाचा ने कहा। कल सुबह ही निकल जा बेटा। मां को बता देना। और हां कोई डर नहीं तू कर लेगा। अगली सुबह माधव ने मां को सारी बात बताई। मां चुप रही कुछ पल। फिर हाथ जोड़कर बोली जा बेटा तू ही मेरी उम्मीद है। जो भी करेगा परिवार के लिए ही करेगा। मेरा आशीर्वाद हमेशा तेरे साथ है। गौरी ने भी चुपचाप उसे देखा। आंखों में सवाल और आशा दोनों। माधव ने पुरानी सी एक पोटली बांधी। मां के बनाए दो सूखे पराठे रखे और पैदल ही निकल पड़ा उस छोटे शहर की ओर। शहर कोई बहुत बड़ा नहीं था लेकिन गांव से तो कई गुना तेज था। लोग जल्दी चलते बातें जल्दी करते। हर जगह भीड़ थी दुकानों में गलियों में बस स्टैंड पर। पर काम काम नहीं था। माधव ने पूरे दिन दुकानों, ढाबों, होटल्स में पूछा, "भैया, काम मिलेगा, कुछ भी चलेगा। पर हर जगह से एक ही जवाब। नहीं अभी नहीं चाहिए। दिन ढल गया। पोटली के पराठे खा लिए थे। जेब में कुछ बचे कुचे पैसे थे लेकिन रात गुजारने की जगह नहीं। चलते-चलते बस स्टैंड पहुंच गया जहां अब सिर्फ दो-तीन बसें खड़ी थी। वहीं एक साइकिल रिक्शा वाला खड़ा था जैसे कुछ सोच रहा हो। माधव धीरे से उसके पास गया और पूछा। भैया क्या मैं इस शेर के नीचे रात गुजार सकता हूं? कोई जगह नहीं है मेरे पास। वो आदमी चौकन्ना होकर बोला, तू कौन है भाई? माधव ने सारा हाल बताया। गांव से आया है। काम की तलाश में है। रिक्शा वाला थोड़ी देर चुप रहा। फिर बोला, देख भाई, यह छोटा शहर है। काम है पर इतना नहीं कि हर किसी को मिल जाए। पर तू चाहे तो। एक काम कर सकता है। क्या? माधव की आंखों में उम्मीद चमकने लगी। रिक्शा चला लेता है। हां, साइकिल चलानी आती है तो बस मैं तुझे कल एक सेठ के पास ले जाऊंगा जो रिक्शा किराए पर देता है। अभी तू यहां सो जा। मैं बस लेकर आता हूं। मेरी रात की सवारी आई है। माधव ने सर हिलाया। रिक्शा वाला चला गया और माधव ने पहली बार बस स्टैंड के शेर में आसमान की ओर देखकर सोचा। शायद यही रास्ता है जो मुझे कहीं पहुंचाएगा। सुबह उठते ही देखा वही रिक्शा वाला एक कप चाय लेकर आया। लो भाई चाय पियो और चलो मेरे साथ। आज तुझे तुम्हारा पहला काम मिलेगा। माधव ने चाय पी और साथ चल पड़ा। थोड़ी देर बाद वे एक छोटी सी दुकान पर पहुंचे जहां कई रिक्शे खड़े थे। वह आदमी सेठ जी थोड़ा सख्त मिजाज का लगा। पर जब रिक्शा वाले ने उसकी गारंटी ली तो उसने माधव को एक रिक्शा दे दिया किराए पर। हर दिन ₹20 किराया। बाकी जो कमाओ तुम्हारा रिक्शा ठीक से चलाना टूटे तो जिम्मेदारी तेरी। माधव ने पहली बार एक नई जिम्मेदारी अपने हाथों में ली थी। उस दिन से माधव अब एक रिक्शा चालक बन गया। दिनभर शहर में सवारी ढूंढता। छोटे-बड़े रास्तों से होता हुआ लोगों को उनके गंतव्य पर पहुंचाता। रात को वही शेड, वही रिक्शा उसकी नींद का बिस्तर बनता। ना कोई शिकायत, ना कोई बहाना, बस मेहनत, ईमानदारी और उम्मीद का रास्ता। अब कुछ हफ्ते हो चुके थे। माधव शहर में रिक्शा चला रहा था। दिन भर पसीने से भीगता और रात को वही बस स्टैंड का शेड और उसकी रिक्शा ही बिस्तर बन जाती। उसने अपनी जिंदगी को नए ढंग से ढाल लिया था। हर सुबह उठना, बस स्टैंड के पास लगे नल से नहाना, वही दो जोड़ी कपड़े, एक पहनना और एक धोकर सुखाना। दिन भर काम फिर रिक्शा का किराया चुकाकर जो कुछ बचता थोड़ा अपने लिए थोड़ा घर भेजने के लिए गांव से कोई आता तो वह उनके हाथों पैसे मां को भिजवा देता। अब उसके भीतर थोड़ा आत्मविश्वास आने लगा था। धीरे-धीरे कई सवारी उसे पहचानने लगी थी। अरे वो सीधा सच्चा लड़का जो हमेशा मेहनत से रिक्शा चलाता है। एक दिन शाम के वक्त माधव रोज की तरह रिक्शा लेकर शहर की गलियों में सवारी ढूंढ रहा था। अचानक उसे एक परिचित चेहरा बस स्टैंड पर दिखा। गांव का ही एक आदमी जो किसी काम से शहर आया था। उसने माधव को आवाज दी। अरे माधव माधव रुक गया। आदमी ने बताया भाई जल्दी गांव चलना पड़ा है। लेकिन एक बात कहनी है। तेरे पिताजी की तबीयत अब बहुत ज्यादा खराब हो गई है। डॉक्टर ने कहा है अब समय नहीं बचा। कभी भी कुछ हो सकता है। इतना कहकर वह आदमी बस में बैठ गया। माधव वहीं रुक गया सन। उसकी आंखों के सामने पिता का चेहरा घूम गया। मां की झुकी पीठ और बहन की मासूम सूरत। दिल बैठने लगा। खुद से सवाल करने लगा। क्या अब सब छोड़कर लौट जाऊं? लेकिन अभी तो कमाना शुरू किया है। इलाज कैसे होगा फिर? रात का अंधेरा गहराने लगा। तेज बारिश शुरू हो गई थी। बस स्टैंड पर भीड़ छंट चुकी थी। वो रवाला भाई जो रोज रात को काम करता था आज नहीं आया था। माधव अकेला था। शेड के नीचे अपनी रिक्शा पर बैठा भीगा जा रहा था। लेकिन भीतर के तूफान से ज्यादा गीला था। उसी वक्त एक तेज ब्रेक की आवाज आई। एक बस स्टैंड पर रुकी। बस से एक आदमी उतरा। हाथ में बैग था और तेजी से भागते हुए बोला, भाई, ओ भाई, जल्दी आओ। भीग जाऊंगा। मुझे अस्पताल जाना है। माधव फौरन अपनी रिक्शा लेकर दौड़ा और उस आदमी को बैठाया। बारिश में भीगते हुए फिसलन भरी सड़कों से होता हुआ माधव पूरे जोर से पैडल मारता रहा। आदमी बार-बार घड़ी देखता बेचैन था। अस्पताल पहुंचते ही वो आदमी फौरन अंदर भागा। कहा मेरे बेटे का ऑपरेशन है। सिर्फ यही चंद मिनट बचे थे। नहीं पहुंचता तो सब खत्म हो जाता। कुछ देर बाद वही आदमी बाहर आया। सांसे तेज थी हाथ में पानी की बोतल और एक लिफाफा। उसने माधव को पैसे दिए और कहा तुमने मेरी जिंदगी की सबसे कीमती चीज बचा ली। अगर तुम समय पर ना पहुंचाते तो मेरा बेटा आज जिंदा ना होता। माधव की आंखों में अपने पिता का चेहरा फिर घूम गया। आंखें भीग गई। शब्द नहीं निकले। वो आदमी रुक गया। गौर से देखा और पूछा। तुम्हारी आंखें नम क्यों है? माधव ने धीमी आवाज में सब कुछ बता दिया। मैं गांव से हूं। घर की हालत खराब है। पिता बीमार हैं। मां खेतों में मजदूरी करती है। मैं रिक्शा चलाकर घर चला रहा हूं। आदमी कुछ देर चुप रहा। फिर बोला, "तुम सचमुच बहुत ईमानदार और मेहनती हो।" मेरा नाम है विनोद अग्रवाल। यहीं इसी शहर में मेरी कपड़ों की दुकान है। आज मैं बड़े शहर से पैसे लाया था अपने बेटे के ऑपरेशन के लिए। तुम ना होते तो। मैं नहीं जानता क्या होता। मैं तुम्हारी मदद जरूर करूंगा। कल सुबह मेरी दुकान पर आ जाना। मैं तुम्हें एक नौकरी दूंगा। पक्की नौकरी। काम छोटा होगा पर भविष्य बड़ा बनेगा। फिर उसने एक कागज पर पता लिखा और कहा, "यह लो पता, सुबह आ जाना। आज तुम मेरे लिए फरिश्ता बनकर आए हो। अगली सुबह माधव उस पते पर पहुंचा। एक शानदार कपड़ों की बड़ी दुकान जितनी बड़ी दुकान उसने कभी गांव में नहीं देखी थी। अंदर गया तो देखा विनोद जी काउंटर पर बैठे थे। वो मुस्कुराए आ गए बेटा। बैठो पानी पियो। माधव थोड़ा झिचका फिर धीरे से बोला सेठ जी जो काम आप कहें मैं करूंगा बस सच्चे मन से मेहनत करूंगा। सेठ ने कहा देखो माधव काम बहुत आसान है। मेरी दुकान के कपड़े जो बड़े शहर से आते हैं उन्हें लाने के लिए एक भरोसेमंद आदमी चाहिए। बस स्टैंड की तुम्हारी समझ, वक्त की पाबंदी और मेहनत ने मुझे भरोसा दिलाया है कि तुम यह काम कर सकते हो। माधव ने हाथ जोड़ दिए। सेठ जी यह तो मेरे लिए वरदान है। विनोद जी बोले सैलरी कम होगी शुरू में लेकिन काम सच्चे मन से करना और हफ्ते में एक छुट्टी होगी चाहो तो गांव जा सकते हो। माधव ने रिक्शा किराए पर देने वाले सेठ को रिक्शा लौटा दिया। सेठ जी आपका बहुत धन्यवाद। आपने मुझे सहारा दिया। अब मेरी नई शुरुआत होने वाली है। अब वह सेठ विनोद अग्रवाल के लिए बड़े शहर से कपड़ों के बंडल लाता। समय पर दुकान पहुंचाता। धीरे-धीरे सेठ को उस पर विश्वास हो गया। कभी-कभी उसे दुकान में भी बैठने को कहा जाने लगा। काम के साथ सीखने की ललक भी माधव में थी। कपड़ों के नाम, रेट, फैब्रिक की पहचान। सब सीखने लगा। अब 2 साल बीत चुके थे। माधव अब वो लड़का नहीं रहा था जो रिक्शा के शेर में भीगते हुए अपनी जिंदगी की चिंता करता था। अब वो एक भरोसेमंद कर्मचारी था। सेठ विनोद अग्रवाल की दुकान में। वो सिर्फ कपड़े लाने तक ही सीमित नहीं रहा था। अब वह कभी-कभी दुकान में ग्राहकों को कपड़े दिखाता, रेट बताता और धीरे-धीरे व्यवसाय की बारीकियां समझने लगा था। सेठ विनोद जी को माधव पर अब पूरा भरोसा था। उन्होंने माधव से कई बार कहा था। बेटा तू अब सिर्फ मेरा काम नहीं करता। तू मेरा भरोसा है। माधव को हफ्ते में एक छुट्टी मिलती थी। वो दिन उसका सबसे खास होता क्योंकि वह उसी दिन गांव जाता था। बिना किसी को बताए वह सुबह बस पकड़ता और शाम को मां के हाथ का बना खाना खाता। पिता की दवाइयां ले जाता और बहन से पढ़ाई की बातें करता। अब पिता का इलाज शहर के अस्पताल में होने लगा था। जिसकी व्यवस्था सेठ जी की मदद से हुई थी। माधव के चेहरे पर अब आशा की रोशनी थी और मां के चेहरे पर गर्व का तेज। एक दिन दुकान बंद होने के बाद माधव ने विनोद जी से कहा, सेठ जी एक बात कहनी है। हां माधव बोलो। मैं सोच रहा हूं कि अपने गांव में एक छोटी सी कपड़ों की दुकान खोल लूं। माल आपसे ही लूंगा। गांव में अब कोई ऐसी दुकान नहीं है। शादी ब्याह का मौसम आते ही लोग बाहर जाते हैं। अगर दुकान खुल जाए, तो परिवार के साथ भी रह सकूंगा। विनोद जी कुछ देर चुप रहे। फिर मुस्कुराए और बोले तू तो मेरा ही लड़का है। यह भी कोई पूछने की बात है। तुझे जितना भी माल चाहिए मैं दूंगा और कोई दिक्कत आए तो मुझे बताना। माधव की आंखें नम हो गई। सेठ जी आपने जो मेरे लिए किया वो मैं कभी नहीं भूलूंगा। अब सब तय हो चुका था। माधव ने गांव जाकर एक छोटा सा किराए का दुकान लिया। सेठ जी ने कपड़ों का माल भिजवाया। साड़ी, कुर्ते, शर्ट, बच्चों के कपड़े सब कुछ। गांव के लोगों को पहली बार इतनी चीजें एक ही दुकान में दिखी। लोग कहने लगे, अरे यह तो वही माधव है ना जो शहर गया था काम की तलाश में। अब तो दुकान खोल ली है। चंपक चाचा भी दुकान पर आए। मुस्कुराए और बोले, वाह बेटा। आखिर तूने कर ही दिखाया। माधव झुक कर बोला चाचा आपने ही तो कहा था चलने की कोशिश करो रास्ते अपने आप खुल जाते हैं। चाचा ने सिर पर हाथ रखा। तू मेरी बात को समझ गया यही बहुत है। दुकान चल निकली थी। माधव ने जो पैसे कमाए उनसे घर की मरम्मत करवाई। छत टपकनी बंद हो गई। दीवारों पर प्लास्टर हुआ। पिता की तबीयत अब संभल रही थी। मां के चेहरे पर अब थकान कम और सुकून ज्यादा था। बहन गौरी की उम्र अब शादी की हो चली थी। माधव ने कुछ पैसे जमा किए। सेठ जी ने भी मदद की और फिर एक दिन गांव में ही धूमधाम से गौरी की शादी हुई। गांव भर में चर्चा थी। माधव की मेहनत रंग लाई। बहन की शादी भी की और दुकान भी चमक रही है। अब जब काम ठीक चल रहा था। माधव ने उस किराए की दुकान को खरीद लिया। सेठ जी ने खुद आकर उस दिन दुकान का नारियल फोड़ा। सेठ जी ने कहा, माधव, आज मुझे लगता है कि मैंने उस दिन तुम्हें अस्पताल पहुंचाकर सिर्फ अपने बेटे को ही नहीं अपनी तकदीर को भी बचा लिया था। माधव ने मुस्कुराकर कहा, सेठ जी आपने जो मेरे लिए किया। मैं हर रोज उसे याद करता हूं। आज अगर मैं कुछ हूं तो आपकी वजह से। सेठ बोले नहीं बेटे तू अपने हौसले की वजह से है। हमने तो बस तुझे एक मौका दिया था। एक शाम को माधव अपनी मां के पास बैठा था। मां ने उसका माथा सहलाया और कहा बेटा तूने कभी मेरी उम्मीद को तोड़ा नहीं। तूने मेरी दुनिया को नया जीवन दिया है। माधव ने मां का हाथ पकड़ कर कहा। मां तूने ही तो मुझे हिम्मत दी थी। तेरे आशीर्वाद के बिना तो मैं आज भी उस चौपाल पर बैठा होता परेशान होकर। मां की आंखों में आंसू थे लेकिन वो आंसू अब दुख के नहीं गर्व और संतोष के थे। दोस्तों माधव की कहानी हमें यह सिखाती है कि हालात चाहे जितने भी मुश्किल क्यों ना हो अगर इरादे मजबूत हो और दिल में परिवार के लिए कुछ करने का जज्बा हो तो हर रात के बाद नई सुबह जरूर आती है। मेहनत कभी बेकार नहीं जाती। जो व्यक्ति ईमानदारी और संघर्ष से आगे बढ़ता है। किस्मत भी एक दिन उसी के दरवाजे पर दस्तक देती है। दोस्तों अगर आपको यह कहानी दिल से छू गई हो और आपने इससे कुछ सीखा हो तो इसे लाइक जरूर करें और कमेंट में लिखें मैं भी कभी हार नहीं मानूंगा। ऐसी ही प्रेरणादायक और जीवन बदल देने वाली कहानियां रोज सुनने के लिए हमारे YouTube चैनल ट्रुथ ऑफ लाइफ को सब्सक्राइब करना ना भूलें। साथ ही बेल आइकन दबाएं ताकि कोई भी कहानी आपसे छूट ना
16) https://youtu.be/i4hrj0pUuO4?si=2ANutrX_a40dNz0A
दोस्तों बहुत समय पहले की बात है। एक छोटे से गांव में जहां बिजली आधे दिन रहती थी और बारिश के मौसम में रास्ते दलदल बन जाते थे। वहीं एक टूटी सी झोपड़ी में एक लड़का रहा करता था आरव, उम्र करीब 18 साल। उसके मां-बाप अब इस दुनिया में नहीं थे। मां की बीमारी ने उसे बचपन में ही अनाथ बना दिया था और बाप की मौत तो उसे याद भी नहीं थी। रिश्ते में चाचा चाची ने उसे पाला लेकिन उसे कभी बेटे की तरह नहीं बोझ की तरह देखा। हर सुबह की शुरुआत तानों से होती थी। हमने कौन सा जन्म भर का ठेका ले रखा है इसे पालने का? कम से कम दो वक्त का खाना खा जाता है। बदले में करता क्या है? अगर इसे सड़क पर छोड़ भी दें तो किसी को फर्क नहीं पड़ेगा। इन बातों के बीच आरव अक्सर चुपचाप चारपाई के कोने में बैठा रहता। अपनी पुरानी फटी हुई किताबों को देखता और सोचता। कभी स्कूल जाता था। अब जिंदगी ही मेरी क्लास बन गई है। आरव पढ़ाई में बहुत अच्छा था। सातवीं कक्षा तक गांव के स्कूल में सबसे तेज छात्र माना जाता था। लेकिन जब मां की मौत हुई और चाचा ने यह कह दिया। अब स्कूल फूल छोड़ कुछ कमाने का काम देख। तो उसके लिए किताबें बस मिट्टी से सजी चीजें बन गई। दोपहर के वक्त जब स्कूल की घंटी बजती थी। आरव उसी समय कहीं ना कहीं काम ढूंढ रहा होता। कभी गांव के दूध वाले के यहां, कभी हलवाई के पास। पहला काम मिला गांव के सबसे पुराने दूध वाले भैररो लाल के यहां। काम था सुबह 5:00 बजे उठकर भैंसों को चारा डालना। बाल्टी में दूध निकालना और फिर मोहल्लों में दूध पहुंचाना। मिलते थे सिर्फ ₹500 महीने। लेकिन हर दिन भैररो लाल की कड़क आवाज और तानों से आरव का मन उखड़ता गया। एक दिन दूध गिरा। बस इतनी सी बात पर भैररोलाल ने पूरे गांव के सामने चिल्ला दिया। तेरे जैसे अनाथ को पाल रहे हैं। काम तो ठीक से कर। आरव उसी दिन वो काम छोड़ आया। दूसरा काम मिला गांव की मिठाई की दुकान पर जहां शादी ब्याह में हलवाई खाना बनाने जाता था। आरव का काम था आटे की लोइया बनाना, बर्तन धोना और बची मिठाइयां समेटना। यहां मेहनत ज्यादा थी लेकिन तनख्वाह सिर्फ ₹800 थी और हर बार बचा खुचा ही मिलता था खाने को। मिठाई तो कम मिलती सिखावन ज्यादा। देखो आरव जिंदगी में हाथ गंदे किए बिना पेट नहीं भरता। इस बात को उसने दिल से उतार लिया। लेकिन सर्दियों की एक रात जब काम करते-करते उसकी उंगलियां सूझ गई और हलवाई ने गर्म देखची उसके हाथ पर रख दी। तो उसने सोच लिया इज्जत नहीं मिले तो मजदूरी भी बोझ बन जाती है। तीसरा काम उसे मिला एक छोटे से आटा चक्की घर में जहां अनाज पीसा जाता था। यहां वह दिन भर चक्की में गेहूं डालता, बोरिया भरता, धूल से भरी हवा में खांसता रहता। लेकिन यहां कम से कम ₹1000 मिलने लगे। काम भले थकाने वाला था, लेकिन मालिक की जुबान साफ थी। आरव ने यही सीखा। थोड़ी इज्जत के साथ छोटा काम भी बड़ा लगता है। पर यहां की धूल और आवाज से उसकी तबीयत गिरने लगी और आखिरकार वो काम भी छोड़ना पड़ा। वहीं गांव के बाहर हाईवे पर एक छोटा सा ढाबा था। बब्बर का ढाबा जहां हर दिन मजदूर, ट्रक ड्राइवर और राहगीर आते थे। यहां काम मिला। बर्तन धोने वाला। सुबह 6:00 बजे से रात 11:00 बजे तक बिना छुट्टी। पहले हांडी धो फिर चाय की केतली साफ कर। फिर टेबल के नीचे गिरे चावल समेत। कभी गर्म चूल्हे के पास, कभी किचन के कोने में और बदले में मिलते थे ₹3000 और दो टाइम का खाना। आरव की एक खूबी थी वो बोलता कम था करता ज्यादा। ना किसी से उलझता ना किसी की बुराई करता। जो काम दिया गया वो पूरी लगन से करता। ढाबे का मालिक बब्बर सिंह शुरू में उसे संदेह से देखता था। अनाथ है जाने कब भाग जाए। पर कुछ महीनों में जब उसने देखा कि आरव बिना छुट्टी काम करता है कभी चोरी नहीं करता तो उसने उसे कहा अब तू सिर्फ बर्तन नहीं काउंटर संभाल पैसे तू ले हिसाब तू रख अब आरव की सैलरी बढ़ाकर ₹6000 हो गई उसके पास अब खुद की जेब से खरीदे हुए दो जोड़ी कपड़े थे अब वह हर महीने ₹1000 से ₹1500 बचा लेता था शाम को ढाबा बंद होने के बाद अकेले बैठकर कर अपनी छोटी सी डायरी में कुछ ना कुछ लिखा करता था। आज भी बिना गलती के दिन निकला। आज पहली बार किसी ने भैया कहा अब लगता है मैं कुछ बन सकता हूं। चाचा चाची का व्यवहार अब भी वैसा ही था। जब वो महीने के आखिर में घर आता और ₹500 उनके हाथ में देता तो वह कहते अरे 500 लाकर राजा बन रहा है क्या? लेकिन आरव ने अब अपने लक्ष्य तय कर लिए थे। अब वो किसी के तानों से नहीं हिलता। उसे अब सिर्फ एक चीज दिखती थी आजादी। आजादी उस दिन की जब वो किसी का मोहताज ना हो। ना चाचा चाची का ना समाज की नजर का। ना तानों का सिर्फ अपने कर्म का। अब आरव हर दिन सुबह सूरज से पहले उठता। ढाबे पहुंचता। ग्राहकों को नमस्ते बोलता। खुद ही चाय बनाता, हिसाब रखता और हर शाम अपनी कमाई में से थोड़ा-थोड़ा जमा करता। उसकी आंखों में कोई सपना नहीं था। बस जििद थी। अब बब्बर सिंह का ढाबा उसके भरोसे पर चलने लगा था। दिन में ग्राहकों की आवाजों के बीच और रात में चुपचाप अपने कमरे में बैठकर वो एक बात हर दिन सोचता। जब तक खुद की जिंदगी सीधी नहीं करूंगा। तब तक दूसरों को सीधा रास्ता कैसे दिखा सकता हूं। गांव के किनारे एक पेड़ के नीचे उसकी पुरानी झोपड़ी थी। छप्पर टपकता था। दीवारें गारे की जगह अब दरारों से भरी थी और वो फटी हुई चारपाई जिससे हर रात उसकी पीठ में दर्द हो जाता। एक दिन जब बारिश हुई और छप्पर से टपकता पानी उसके खाने की थाली में गिरा। तो उसने उसी पल खुद से वादा किया। अब सबसे पहले अपना घर सही करूंगा। सिर के ऊपर टपकती छत नहीं टिकती हुई छाव होनी चाहिए। 2 महीने तक हर दिन ढाबे से लौटकर वह ₹100 अलग निकालकर एक डिब्बे में रखता रहा। उस डिब्बे पर उसने चुपचाप एक कागज चिपकाया था छत के लिए। जब ₹2000 इकट्ठे हो गए। तो वह गांव के लोहा व्यापारी के पास गया और दो पुरानी तीन की चादरें खरीदी। खुद ही हाथ में हथौड़ी ली। चाचा की पुरानी सीढ़ी उठाई और एक-एक कील ठोक कर छत को ढक दिया। जब बारिश फिर हुई तो पहली बार उसके बिस्तर के पास पानी की बूंद नहीं गिरी। उसी रात वो पहली बार चैन से सोया। अब दीवारों की बारी थी। आरव ने गांव के भोलू मिस्त्री से पुरानी मिट्टी और गोबर मंगवाया और खुद अपने हाथों से पूरी झोपड़ी की दीवारों को लीप दिया। उसके हाथों में दरारें पड़ गई। लेकिन दीवारें एकदम चमक उठी। अगले महीने की तनख्वाह से उसने एक पुराना पलंग खरीदा। लकड़ी थोड़ी खड़खड़ाती थी, लेकिन चारपाई से हजार गुना बेहतर थी। अब उसकी पीठ की तकलीफ कम होने लगी थी। गांव में बिजली अक्सर रात को ही आती थी। लेकिन आरव ने सोचा अगर अंधेरे में भी मैं सपना देख सकता हूं तो रोशनी में तो और भी देख सकूंगा। ढाबे से लौटते हुए वो एक दिन पुराने इलेक्ट्रॉनिक की दुकान गया और। ₹100 में एक पुराना बल्ब और ₹500 में एक छोटा टेबल फैन खरीद लाया। झोपड़ी की एक दीवार पर बल्ब लगवाया और पंखा पलंग के पास रखा। अब वो रात को पसीने में भीगता नहीं था और अंधेरे से डरता नहीं था। आरव एक शाम ढाबे के बाहर बैठा था। गर्मियों की धूप उतर चुकी थी। लेकिन उसके अंदर एक और आग चल रही थी। वो अपने टिफिन का ढक्कन बंद करते हुए बब्बर सिंह से बोला। बब्बर भैया एक बात पूछूं? बब्बर हां बोल क्या बात है आरव आपने कभी सोचा था कि खुद का ढाबा खोलेंगे? बब्बर मुस्कुराया पहले दूसरों के लिए काम किया। फिर जब पांव मजबूत हुए तो खुद की ईंट रखी। बस वहीं से आरव के दिमाग में बीज पड़ा। अब उसे किसी के लिए काम नहीं करना था। अब उसे अपना बनाना था। गांव के पुराने बस स्टैंड के पास एक टूटी सी दुकान कई सालों से बंद पड़ी थी। ईंटें झड़ चुकी थी। दरवाजा जं खा चुका था और अंदर धूल भरी दीवारों पर मकड़िया जाले बना चुकी थी। लेकिन आरव की नजर उसमें सिर्फ एक चीज दिख रही थी। संभावना एक दिन सुबह-सुबह वो दुकान के मालिक मोहन काका के पास गया। काका आपकी दुकान बंद पड़ी है। मैं वहां छोटा सा नाश्ते का ठेला जमाना चाहता हूं। चाय समोसा, छोले पूरी। किराया कम रखिएगा। मैं सफाई खुद कर लूंगा। मोहन काका ने पहले शक की नजर से देखा। तू अकेला करेगा सब। आरव, हां काका कोई सपना बड़ा नहीं होता अगर मेहनत सच्ची हो। मोहन ठीक है। सफाई तेरी किराया ₹200 महीने। आरव उस दुकान में अकेला गया। एक झाड़ू, एक पोछा, दो बाल्टी पानी। थोड़ा ब्लीचिंग पाउडर और एक दिन की छुट्टी लेकर उसने दुकान की कायापलट शुरू की। मकड़ी के जाले हटाए, दीवारें साफ की। पुरानी लकड़ी की मीट्स को रगड़-रगड़ कर धोया। बेंच और स्टूल खुद बनवाए और एक छोटा तवा व गैस सिलेंडर भी किराए पर लिया। अब उसका सपना बस एक दिन दूर था। अगली सुबह से दुकान खुलने वाली थी। आरव ने दुकान का कोई नाम नहीं रखा था। जब बब्बर सिंह ने पूछा तू नाम नहीं रखेगा आरव मुस्कुराया नाम से नहीं स्वाद और सेवा से पहचान बनती है। पहली सुबह 6:00 बजे दुकान खोली। खुद आटा गूंथा, आलू उबाले, चना भिगोया और पहली बार। गांव में किसी ने चोले पूरी ₹10 की प्लेट में परोसी। एक किसान आया जिसकी जेब में ₹10 ही थे। आरव ने मुस्कुरा कर प्लेट आगे रखी। गर्म है भैया खा के जाना। किसान बोला इतनी गर्म पूरी तो मैंने कस्बे में भी नहीं खाई और उसी शाम वो तीन और लोगों को लेकर आया। पहले दिन की कमाई ₹300 हुई। आरव ने ₹100 खर्च निकाले। ₹200 बचाए। रात को बल्ब की रोशनी में बैठकर उसने अपनी वही डायरी खोली और लिखा आज मैं किसी के नीचे नहीं। अपने दम पर खड़ा हूं। अब आरव की दुकान को खुलकर एक महीना हो चुका था। पहले दिन की ₹300 कमाई अब बढ़कर रोजाना 400 से ₹500 तक पहुंच चुकी थी। बस स्टैंड के पास उसकी दुकान अब रोज सुबह 6:00 बजे से ही ग्राहकों से भरने लगती थी। आरव रोज सुबह सबसे पहले दुकान पहुंचता। हाथ धोकर चोले चढ़ाता। आटा गूंथता और भुजिया के मसाले खुद पीसता। ना कोई नौकर ना कोई हेल्पर। हर चीज उसके अपने हाथ की होती थी। गांव वाले कहते आरव के चोले पूरी में स्वाद नहीं उसका सच्चापन घुला होता है। लोग दूर-दूर से उसकी दुकान पर आने लगे। बस ड्राइवर, किसान, दिहाड़ी मजदूर सब जानते थे। यहां स्वाद के साथ इज्त भी मिलती है। आरव ने शुरू से ही एक बात ठान रखी थी। मेरे खाने में साफ सफाई भी दिखे और व्यवहार में नम्रता भी। हर ग्राहक को भैया, काका या बहनजी कहकर बुलाता। खाने के बाद खुद टेबल साफ करता। बचे हुए पैसों में से झाड़ू, डिटर्जेंट और कपड़ा खरीद कर रोज दुकान चमकाता। बस स्टैंड से थोड़ा दूर गांव का सरकारी स्कूल था। कई बच्चे स्कूल आते तो थे, पर उनके पेट खाली होते थे। फटे जूते, बिना बस्ता और आंखों में नींद भरी होती। एक दिन एक बच्चा दुकान के पास से गुजर रहा था। उसकी नजर आलू भुजिया की खुशबू पर टिकी रह गई। आरव बोला तू खा ले पढ़ाई कर। कभी पैसे मत सोच। बच्चा हिचकिचाया पैसे नहीं है। आरव मुस्कुरा कर बोला कहा ना तू बस खा। पढ़ना बंद मत करना। उस दिन से रोज दो से तीन बच्चे स्कूल जाते वक्त उसके यहां रुकते। कभी पूरी, कभी भुजिया, कभी गुड़ चावल की खिचड़ी। आरव सब चुपचाप देता बिना किसी नाम या तस्वीर के। 4 से 5 महीने में उसकी दुकान ने पकड़ बना ली थी। अब उसकी रोज की कमाई 5600 और महीने की 12 से 13,000 तक होने लगी थी। अब वह जरूरत भर से ज्यादा कमा रहा था। लेकिन अपने लिए उसने कोई नया मोबाइल नहीं लिया। ना ही कपड़े बदले बस पुराने को अच्छे से धोता रहा। उसने कहा जिंदगी को सजाना है दिखाना नहीं। हर महीने की कमाई में से ₹1500 वो दो गरीब बच्चों की स्कूल फीस में लगाता था। उनकी कॉपी, किताबें और यूनिफार्म के लिए खुद बाजार जाकर खरीददारी करता। उन बच्चों के मां-बाप मजदूरी करते थे। वो पूछते कौन मदद करता है? तो स्कूल के मास्टर सिर्फ इतना कहते एक आदमी है जो चाहता है कि बच्चे पढ़े नाम नहीं बताया और आरव हमेशा वही करता जो बिना शोर के किया जाए। एक दिन स्कूल में वार्षिक उत्सव हुआ। प्रधानाध्यापक मंच से बोले इन दो छात्रों की फीस, किताबें और खाना किसी ऐसे व्यक्ति ने दिया है। जो कभी खुद स्कूल के बाहर खाली पेट खड़ा रहता था। पूरा गांव तालिया बजा रहा था। आरव दूर खड़ा था। अपनी दुकान पर आलू तल रहा था। एक बच्चा दौड़कर आया और बोला भैया आप ही होना जिन्होंने मेरी फीस भरी। आरव मुस्कुराया सिर्फ इतना बोला खाना गर्म है पहले खा ले बातें बाद में। दोस्तों सच्चाई मेहनत और बिना दिखावे की सेवा। यही वो नींद है जिस पर एक सच्चा इंसान खड़ा होता है। आरव ने हमें सिखाया कि हालात चाहे जैसे भी हो। दोस्तों अगर इरादा नेक हो तो इंसान ना सिर्फ अपनी जिंदगी बदल सकता है बल्कि समाज के लिए भी रोशनी बन सकता है। दोस्तों अगर आपको आरव की यह कहानी दिल से छू गई हो तो इस वीडियो को जरूर लाइक करें। ऐसी और प्रेरणादायक कहानियों के लिए चैनल ट्रुथ ऑफ लाइफ को सब्सक्राइब करें। जहां हर दिन मिलती है जिंदगी को देखने की एक नई सोच। धन्यवाद। जुड़े रहिए, क्योंकि सच्ची कहानियां यही मिलती
17) https://youtu.be/BehiADgBI-w?si=suU-er-gi-yEQWSh
दोस्तों बहुत समय पहले की बात है। एक छोटे से गांव में मनोज नाम का 14 साल का लड़का अपने मां-बाप के साथ रहता था। उसका गांव सीधा साधा था जहां हर सुबह पक्षियों की चहचहट से नींद खुलती थी और शाम खेतों की मिट्टी की खुशबू से महकती थी। मगर मनोज की जिंदगी में यह सब सुंदरता फीकी लगती थी। क्योंकि उसके दिल में एक अजीब सी बेचैनी घर कर चुकी थी। उसके पिता खेतीहर मजदूर थे। रोज सूरज निकलने से पहले खेत में जाते और देर शाम लौटते। मां कभी-कभी दूसरों के घर बर्तन धो देती ताकि दो वक्त की रोटी जुड़ सके। उनका कच्चा घर, टूटी छत और दीवारों से झांकती धूप, सब कुछ जैसे गरीबी का सीधा चित्र था। मनोज को यह सब मंजूर नहीं था। वह हर दिन अपने हालात को देखकर दुखी होता और सोचता। अगर मेरे पास भी पैसा होता, अच्छा घर होता तो मैं भी खुश रह सकता था। मनोज ज्यादातर समय चुप रहता था। ना किसी से ज्यादा बातें करता ना खेलता। वो कभी खेत के किनारे बैठा रहता तो कभी गांव के पास बहती नदी के तट पर बस अकेले। सोचता रहता। क्यों मैं इतना गरीब हूं? क्या गरीबी ही मेरी किस्मत है? क्या पैसा ही सब कुछ है? और अगर है तो मेरे पास क्यों नहीं? धीरे-धीरे यह विचार उसके भीतर घर कर गए। वह ना तो कोई सपना देखता ना कुछ करने की कोशिश करता। उसकी सोच ही उसकी सबसे बड़ी रुकावट बन चुकी थी। कोई काम का हो तो वह बोलता क्या फायदा? कुछ बदलने वाला थोड़ी है। एक दिन गांव के पुराने पीपल के पेड़ के नीचे एक बूढ़ा साधु आकर बैठा। उसके बदन पर गेरुए रंग का मैले कपड़ा था। बाल उलझे हुए और दाढ़ी में धूल जमी हुई। मगर चेहरे पर एक शांत मुस्कान थी जैसे किसी ने जीवन की सच्चाई को पा लिया हो। गांव के कुछ लोग आकर उससे बातें करने लगे। कुछ ने खाने को दिया। कुछ ने प्रणाम किया। मगर सबसे ज्यादा हैरानी मनोज को हो रही थी। इस आदमी के पास कुछ नहीं है। ना घर, ना पैसा, ना अच्छे कपड़े। फिर भी यह मुस्कुरा क्यों रहा है? कहीं दिखावा तो नहीं। उस दिन से मनोज उस साधु को देखने रोज पीपल के पास जाने लगा। वह देखता कैसे वह साधु दिन भर वहीं बैठा रहता मुस्कुराता। बच्चों से बात करता कभी कोई गीत गाता तो कभी किसी को छोटी सी कहानी सुनाता। पर उसकी मुस्कान हर पल वैसी ही रहती स्थिर और सच्ची। एक शाम जब सूरज ढल रहा था और गांव की गलियों में हल्की ठंडक उतर रही थी। मनोज धीरे-धीरे साधु के पास पहुंचा। वो थोड़ी देर चुपचाप बैठा रहा। फिर पूछ ही लिया। बाबा एक बात पूछूं? साधु मुस्कुराया। जरूर बेटा पूछो। आपके पास कुछ भी नहीं है। आप मांग कर खाते हैं। फटे कपड़े पहनते हैं। आपके पास रहने का भी घर नहीं। फिर भी आप हर वक्त मुस्कुराते रहते हैं। यह सच्ची मुस्कान है या दिखावा? बाबा थोड़ी देर चुप रहे। फिर बोले मनोज पहले तुम यह बताओ कि तुम्हारे हिसाब से खुशी क्या होती है? मनोज ने बिना सोचे कहा अच्छा घर अच्छा खाना पैसे और चैन की जिंदगी यही तो सबको चाहिए होता है। यही असली खुशी है। साधु मुस्कुराए और बोले बिल्कुल यह सब जरूरी है। पर यह सब आता कैसे है? मनोज चुप हो गया। उसके पास जवाब नहीं था। फिर साधु बोले बेटा सबसे पहले तुम्हें अपनी सोच से खुश रहना सीखना होगा। जब तुम खुद के हालात देखकर मुस्कुराना सीख जाओगे तब दुनिया बदलने लगेगी। मनोज थोड़ी देर सोचता रहा। फिर बोला बाबा लेकिन यह सब बोलने में आसान लगता है। पर जब पेट में भूख हो, कपड़े पुराने हो और चारों तरफ ताने मिलते हो तो कैसे कोई खुश रह सकता है? बाबा ने हल्के स्वर में कहा, बहुत अच्छा सवाल किया तुमने और इसी का जवाब मैं तुम्हें दूंगा। अगर तुम सच में सीखना चाहते हो तो एक छोटा सा प्रयोग करो। मनोज ध्यान से सुनने लगा। साधु बोले, हर दिन कोशिश करो कि किसी एक व्यक्ति की निस्वार्थ मदद करो। भले ही छोटी सी हो, किसी बुजुर्ग को पानी पिलाना, किसी छोटे बच्चे को रास्ता बताना। हर दिन खुलकर एक बार हंसो। बिना यह सोचे कि लोग क्या सोचेंगे? हंसी मन को हल्का करती है और भीतर की गांठे खोलती है। रात को सोने से पहले उस दिन की कोई एक अच्छी बात याद करो और भगवान को धन्यवाद दो कि यह दिन बिना किसी बड़ी मुसीबत के गुजरा। यह तीन बातें एक हफ्ते तक करके देखो। तुम्हारे भीतर का सूरज जाग जाएगा। मनोज कुछ पल सोचता रहा। फिर धीरे से बोला, ठीक है बाबा, मैं कोशिश करूंगा। पर अगर कुछ बदला नहीं साधु मुस्कुराए अगर तुम्हारे भीतर कुछ नहीं बदलेगा तो मैं मान लूंगा कि मैं गलत था पर तुम बस एक हफ्ता ईमानदारी से करना कोई बहाना नहीं उस दिन जब मनोज घर लौटा तो उसने पहली बार ध्यान से सोचा आज मैंने क्या अच्छा किया वो याद करने लगा मैंने खेत में पिताजी को पानी लाकर दिया था और मन ही मन बोला भगवान धन्यवाद कि मैंने पिताजी की थोड़ी मदद की। पहली बार उसे नींद थोड़ी हल्की और सुकून भरी लगी। अगली सुबह मनोज थोड़ा जल्दी उठा। उसकी आंखों में एक हल्की चमक थी जो पहले नहीं हुआ करती थी। यह कोई चमत्कार नहीं था। यह उस विचार का असर था। जो रात को सोने से पहले उसके दिल में बैठ गया था। वह रोज की तरह खेतों की तरफ निकला जहां उसके पिता पहले से काम में लगे थे। रास्ते में उसे गांव की बुजुर्ग दादी दिखी जो अपनी लकड़ी की छड़ी के सहारे धीरे-धीरे चल रही थी और उनके हाथ से एक कपड़े की पोटली गिर गई। मनोज तुरंत दौड़ा और वह पोटली उठाकर उन्हें पकड़ा दी। दादी ने प्यार से कहा बेटा भगवान तुम्हें खुश रखे। आजकल के बच्चों में कहां ऐसी समझ है। मनोज मुस्कुरा दिया। उसे लगा जैसे उसने दिन की पहली सीख पूरी कर ली हो। निस्वार्थ मदद। खेत में काम करते वक्त उसके पिता ने मजाक में कुछ कहा। पहले मनोज बस सिर झुका लेता था। लेकिन इस बार उसने हल्के से हंसते हुए जवाब दिया। उसकी हंसी पहली बार जोर की नहीं थी मगर मन से थी। पास के खेत में काम कर रहे एक बुजुर्ग मजदूर ने मुस्कुरा कर कहा। अरे वाह। आज तो मनोज मुस्कुरा रहा है। क्या बात है? मनोज खुद भी थोड़ा चौंका। उसे लगा जैसे कोई उसका मन पढ़ रहा हो। पर वह चुपचाप काम में लग गया और मन ही मन बोला बाबा ने कहा था खुलकर हंसो आज मैंने किया शाम ढलने पर वह थका हुआ घर लौटा पर मन थोड़ा हल्का था जब वह चारपाई पर लेटा तो उसने खुद से पूछा आज क्या अच्छा किया दादी की मदद की पिताजी के साथ मजाक में हंसा खेत का काम बिना किसी शिकायत के किया और फिर हाथ जोड़कर आंखें बंद की भगवान धन्यवाद बाद कि आज मैंने कुछ अच्छा किया और थोड़ी देर ही सही पर मुस्कुराया। अब यह प्रक्रिया उसे सुकून देने लगी थी। अब मनोज को आदत सी लगने लगी थी। चौथे दिन जब गांव के एक छोटे बच्चे ने रास्ता भटक कर रोना शुरू किया तो मनोज ने उसका हाथ थामा और उसे घर छोड़ आया। बच्चे की मां ने आंखों में आंसू लेकर उसे गले लगाया। बेटा तू तो फरिश्ता है। मनोज मुस्कुरा दिया। उसे किसी इनाम की जरूरत नहीं थी। उसका मन उस तारीफ से ही भर गया। अब हर छोटी मदद में उसे एक नई ऊर्जा महसूस होती। वो अब खुद से बातें करता। अपने कामों को गौर से देखता और हर दिन अपने किए अच्छे कामों को गिनने की कोशिश करता। एक हफ्ता बीतने को आया था और मनोज के भीतर जो धीमा बदलाव शुरू हुआ था, वह अब बाहर से भी दिखने लगा। अब वह गांव के लोगों से नजरें चुराता नहीं बल्कि नम्रता से राम-राम करता। रास्ते में कोई मिले तो मुस्कुराकर जवाब देता। एक बार एक किसान ने अपने बेटे से कहा, देख वो मनोज कितना बदल गया है। पहले तो हमेशा चुपचाप और उदास रहता था। अब कितना सलीका आ गया है इसमें। उसके पिता भी अब उसे गौर से देखने लगे थे। उन्हें अब महसूस होने लगा था कि मनोज सिर्फ काम में नहीं मन से भी परिपक्व हो रहा है। अब मनोज जब भी खेत में काम करता या नदी के किनारे बैठता तो पहले जैसी दुख भरी सोच नहीं आती। अब उसके मन में कुछ सवाल आने लगे थे। मैं क्या कर सकता हूं अपने भविष्य के लिए? क्या मैं अपने पिता की मदद के साथ-साथ कुछ और भी सीख सकता हूं? क्या सच में छोटी-छोटी चीजों में सुकून है? और हर बार जब वह इन सवालों में डूबता तो उसके मन में साधु बाबा की मुस्कान उभर आती। जब भीतर से मन शांत होता है तभी बाहर का जीवन दिशा पाता है। मनोज अब हर रोज की तरह शाम को पीपल के पेड़ के पास गया लेकिन वहां बाबा नहीं थे। वो थोड़ा मायूस हुआ। लेकिन फिर सोचा शायद बाबा कहीं और गए होंगे। वह वहीं बैठ गया उसी पेड़ के नीचे और आंखें बंद करके वह उन सात दिनों को याद करने लगा। कैसे उसने पहली बार बिना सोच के किसी की मदद की? कैसे उसने हंसना सीखा? कैसे हर रात सोने से पहले भगवान का धन्यवाद करना आदत बन गई। और फिर उसे महसूस हुआ। अब मुझे किसी और की नहीं अपने आप की जरूरत है। अब मैं जानता हूं कि खुश रहने के लिए किसे बदलना होता है अपनी सोच को। वक्त बीतता गया। अब दो महीने गुजर चुके थे। मनोज अब हर दिन की शुरुआत मुस्कुराहट और सेवा के भाव से करता। उसके पिता कहते अब मेरा बेटा पहले से कहीं ज्यादा समझदार और शांत हो गया है। उसकी मां भी कहती अब मनोज के चेहरे पर हर वक्त एक अलग चमक होती है जैसे भीतर से रोशनी निकली हो। एक दिन सुबह के समय जब सूरज की किरणें खेतों में बिखर रही थी और हवा में हल्की ठंडक थी। मनोज खेत से लौट रहा था। रास्ते में पीपल के पेड़ के नीचे वही साधु बाबा फिर से बैठे हुए दिखे। उसी गेरुए कपड़ों में उसी शांत मुस्कान के साथ मनोज की आंखों में एक चमक आ गई। वह दौड़ता हुआ बाबा के पास गया और उनके पैर छू लिए। बाबा आप वापस आ गए। आपने कहा था एक हफ्ता करो पर आपकी बातों ने मेरी पूरी जिंदगी बदल दी। बाबा मुस्कुराए और बोले बोलो बेटा अब बताओ क्या तुम्हें खुशी मिल गई? मनोज बैठ गया और बहुत सरल शब्दों में बोला बाबा अब समझ में आया कि असली खुशी क्या होती है। पहले मैं सोचता था कि पैसा ही सब कुछ है। मगर अब जब मैं रोज किसी की मदद करता हूं। जब खुलकर हंसता हूं और जब रात को भगवान को धन्यवाद देता हूं तब मुझे वह सुकून मिलता है जो पहले कभी नहीं मिला। थोड़ा रुक कर वो बोला बाबा अगर आज मेरे पास अच्छा घर नहीं भी है नए कपड़े नहीं भी हैं तो भी मैं अंदर से खुश हूं और यह बात मैं महसूस करता हूं दिखावा नहीं करता। बाबा की आंखों में संतोष था। उन्होंने मनोज के सिर पर हाथ रखा और कहा बेटा दुनिया का सबसे बड़ा भ्रम यही है कि लोग सोचते हैं जब सब कुछ मिलेगा तब मैं खुश रहूंगा। लेकिन सच्चाई यह है जब तुम खुश रहना सीख जाओगे तभी तुम्हें सब कुछ मिलना शुरू होगा। तुमने अपने भीतर का सूरज जगा लिया है। अब चाहे जिंदगी कैसी भी हो तुम रास्ता खोज लोगे क्योंकि अब तुम्हारी सोच साफ है। बाबा मुस्कुराए अपना झोला उठाया और कहा अब मेरी जरूरत तुम्हें नहीं रही। बेटा अब तुम खुद भी किसी के लिए साधु बन सकते हो। जाओ और दूसरों को भी सिखाओ कि खुशी बाहर नहीं भीतर है। मनोज ने आंखों में आंसू लिए उन्हें विदा किया। अब मनोज का जीवन पूरी तरह बदल गया था। वह हर दिन खेत में पिताजी की मदद करता। गांव के बच्चों को खेल के बीच जीवन की बातें सिखाता। जो गरीब और अकेले होते उनके पास बैठता उनकी बात सुनता और उन्हें हंसाने की कोशिश करता। अब मनोज को देखकर गांव के लोग कहते इस लड़के में कुछ अलग है। इसका चेहरा जैसे खुद ही रोशनी देता है। एक दिन गांव के स्कूल मास्टर साहब ने उससे कहा मनोज तुम्हें पढ़ना चाहिए। तुम में बहुत गहराई है। अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हें फ्री में पढ़ाऊंगा। मनोज ने विनम्रता से सिर झुका लिया। गुरु जी अब मैं जानता हूं कि जिंदगी में क्या करना है। सीखना और फिर दूसरों को सिखाना। आज भी जब सूरज ढलता है और गांव में हल्की शाम उतरती है तो कोई ना कोई मनोज को खेतों में मुस्कुराते हुए देखता है। वो अब भी गरीब है लेकिन उसके भीतर अमीर सोच है। वो अब भी पुराने कपड़े पहनता है। लेकिन उसका मन नया और साफ है। वो अब भी उसी कच्चे घर में रहता है। लेकिन अब उसके अंदर चमकती रोशनी है जो बाहर तक दिखती है। क्योंकि उसने सीख लिया है। खुशी कोई चीज नहीं जो खरीदी जाए। खुशी एक सोच है जो बनाई जाती है। जब तक हम अपने हालात को कोसते रहते हैं हम कभी खुश नहीं रह सकते। लेकिन जब हम अपने हालात में ही अच्छाई खोजने लगते हैं तब जिंदगी में असली सूरज उगता है भीतर का सूरज। दोस्तों अगर आपको यह कहानी दिल से महसूस हुई हो तो इसे एक बार जरूर शेयर करें। क्योंकि हो सकता है किसी की जिंदगी में उम्मीद की रोशनी इसी से जले। लाइक करें। कमेंट में बताएं आपको सबसे ज्यादा क्या सीख मिली। और हां हमारे YouTube चैनल ट्रुथ ऑफ लाइफ को सब्सक्राइब करना मत भूलिए। यहां हर दिन मिलती है एक नई सोच, एक नया रास्ता।
18) https://youtu.be/4nlquryC82E?si=R9_VdIhu5Shlxs7A
दोस्तों बहुत समय पहले की बात है। एक छोटे से गांव में जहां मिट्टी की दीवारें भी बोलती थी और खपैल की छतों से सपने टपकते थे। वहीं एक छोटी सी कच्ची झोपड़ी में रहता था। विजय 14 साल का एक लड़का जो जन्म से ही गूंगा था। उसकी मां चंपा दिनभर लोगों के खेतों में काम करती थी। पिता बिरजू पहले हल चलाया करते थे लेकिन अब बूढ़े हो चुके थे। टूटी खाट पर पड़े रहते। कभी-कभी दांत पीसते हुए विजय को घूरते जैसे वह बोझ हो। गांव के लोग उसे गूंगा छोरा कहकर पुकारते थे। बच्चों के खेल में उसे कोई नहीं बुलाता और बड़े तो बात करने से भी कतराते थे। काहे का बच्चा है यह। ना बोल सकता ना समझा सकता। बस एक बोझ है मां-बाप पे। पर विजय चुपचाप था मगर अंदर से जिंदा। विजय सूरज निकलने से पहले उठ जाता। मां के साथ खेतों में काम करने जाता। खरपतवार उखाड़ता, पानी भरता, बैलों की नालियां साफ करता। पसीने से लथपथ होता पर एक भी आवाज नहीं निकलती। और अगर गलती से कुछ गिरा देता तो खेत का मालिक गुस्से में चीख पड़ता। कानों से तो सुनता है ना। कुछ समझता क्यों नहीं रेगूंगे। पर विजय सुनता भी था और समझता भी। हर ताना हर चोट उसकी आत्मा में गूंजती थी। शाम को जब बाकी बच्चे लट्टू खेलते विजय अकेला नदी किनारे की मिट्टी से खिलौने बनाता। कभी बैल कभी छोटा घर कभी कोई चिड़िया। यह उसका एकमात्र संसार था जहां वो अपनी चुप्पी से भी बोल सकता था। एक दिन उसकी छोटी बहन सुनना गांव की औरतों के साथ काम पर जा रही थी। वो विजय का मिट्टी का बना एक बैल उठाकर ले गई खेल में। वहां एक औरत ने वो बैल देखा और पूछा यह कहां से लाई तू? भैया ने बनाया है। सुन्यना बोली औरत वो बैल देखकर चौकी इतनी सफाई इतनी कलाकारी। उसने उसे ₹2 में खरीद लिया। सुनना ने वह सिक्के विजय की हथेली पर रखे और विजय की आंखों में कुछ भीगे से चमक उठे। वो कुछ कह नहीं पाया। पर वह समझ गया था उसकी चुप्पी में भी एक पहचान बन सकती है। अब विजय खेत में काम करने के बाद हर शाम 2 घंटे मिट्टी से खेलता। पहले वह बस अपने लिए बनाता था। अब वो सोचने लगा और लोगों को पसंद आए तो वो एक छोटी सी लकड़ी की टोकरी में खिलौने भरकर मां को दिखाता। मां मुस्कुराती कहती बोल तो नहीं पाता बेटा लेकिन तू कारीगिरी में भगवान है। गांव में तीन से चार लोगों ने फिर उसके खिलौने खरीद लिए और पहली बार किसी गूंगे को पैसे देकर इज्जत दी गई थी। अगले दिन गांव के स्कूल के सामने विजय अपनी टोकरी लेकर खड़ा था। बच्चे खिलौनों को देखकर हंसते कोई कहता अरे देखो गूंगा अब व्यापारी बन गया। एक लड़का उसके खिलौने को तोड़ देता है और वह बस देखता रह जाता है। कोई शिकायत नहीं, कोई रोना नहीं। बस आंखें नम हो जाती हैं पर वो रुकता नहीं। उसी शाम वो फिर जाकर नदी किनारे बैठता है। इस बार मिट्टी उठाने के साथ-साथ एक छोटा सा सपना भी उठाता है। अब हर सुबह पहले जैसी ही होती थी। मां के साथ खेत पर काम, दोपहर को जानवरों की देखभाल और फिर शाम होते ही नदी किनारे जाकर मिट्टी इकट्ठा करना। लेकिन फर्क था अब मन में उमंग थी। आंखों में रोशनी थी। अब वो हर खिलौना सोच समझकर बनाता था। बैल, झूला, चरखा, लोटा, मिट्टी का छोटा घर। गांव की जिंदगी को सांचे में ढाल देता था। विजय गूंगा था लेकिन उसके हाथों की रेखाएं बोलने लगी थी। गांव से 15 कि.मी. दूर हर साल एक बड़ा मेला लगता था। वहां खाने पीने के साथ-साथ गांवों के हुनर को भी जगह मिलती थी। एक दिन गांव के हरीलाल काका ने विजय की मां से कहा। चंपा तेरे लड़के के बनाए खिलौने देखे मैंने। एक ठेला लगवा दूं मेले में। मां की आंखों में चिंता थी। काका गूंगा है। अकेले कैसे जाएगा? हरिलाल बोले बोल नहीं सकता लेकिन बेच जरूर सकता है। यह हुनर है चंपा इसे मत रोको। तीन दिन बाद गांव के दो और नौजवानों के साथ विजय को एक कोने में मीला स्थल पर जगह मिल गई। उसकी बांस की टोकरी में 40 खिलौने थे। सब खुद के बनाए हुए। पहला दिन कोई नहीं रुका। लोग आए, देखा, मुस्कुराए और आगे बढ़ गए। दूसरा दिन एक बूढ़ी औरत आई। मिट्टी का चरखा उठाया और पूछा कितने का है? विजय ने उंगली से पांच दिखाया। औरत ने पैसे दिए और कहा बोलता नहीं है पर जो बना रखा है वो बहुत कुछ कह रहा है बेटा। उस दिन चार खिलौने बिके। तीसरे दिन सुबह जैसे ही दुकान खोली, एक कला शिक्षक वहां आया। उसने एक बैल का जोड़ा देखा, गौर से निहारा और कहा, "तुमने बनाया यह?" विजय ने सिर हिलाया। शिक्षक ने तुरंत 10 खिलौने खरीदे और पूछा और बनाओगे तो स्कूल के बच्चों को सिखा सकोगे? विजय फिर चुप रहा लेकिन उसकी आंखों ने हां कह दिया। तीन दिनों में विजय ने कुल 23 खिलौने बेचे। जिन खिलौनों को गांव में देखकर लोग हंसते थे वही अब लोगों के घर की शोभा बन रहे थे। हरिलाल काका ने मेला खत्म होते वक्त पीठ थपथपाई और बोले अब तेरी आवाज नहीं तेरा नाम गूंजेगा बेटा। विजय ने कमाए थे ₹115। उसने मां के हाथ में सारे पैसे रख दिए। मां की आंखें भर आई। वो बोली, आज पहली बार किसी ने तेरे लिए यह कहा कि तू कुछ कर सकता है। पर विजय की आंखें बता रही थी। मां, यह तो सिर्फ शुरुआत है। विजय अब रोज नए डिजाइन के खिलौने बनाने लगा। वो अलग-अलग रंगों से उन्हें सजाता। सुखाने के लिए पुराने तिरपाल का इस्तेमाल करता और मां से कहता इशारों में अब अपना ठेला चाहिए। मां समझ गई थी विजय की मेहनत अब खुद की दुकान मांग रही है। अब जब भी विजय टोकरी उठाकर गांव की गलियों में निकलता लोग खिलौने देखने के लिए रुकते थे। अरे यही है ना वो लड़का जो मेले में बैठा था। हां वही। देखो कैसे बनाता है मिट्टी से गला। पहले जहां तानों की बौछार होती थी। अब इद् की फुसफुसाहटें सुनाई देती थी। लेकिन विजय अब भी वही था। चुपचाप काम करने वाला हर खिलौने के साथ कुछ नया सीखने वाला। हरिलाल काका ने गांव के एक कबाड़ी से पुराना ठेला दिलवा दिया। विजय ने उसे कपड़ा बांधा और उस पर अपने बनाए खिलौनों की दुकान सजाई। उसने टोकरी हटाकर खिलौनों को लाइन से लगाना शुरू किया। बैल, गाय, झूला, मिट्टी की रोटी बनाते बच्चे, छोटे मंदिर और हाथ में कलश लिए स्त्री की मूर्ति। गांव की औरतें अब अपने बच्चों के लिए खिलौने खरीदने आने लगी। एक दिन वही कला शिक्षक जो मेले में मिला था, गांव के स्कूल से विजय को बुलवाने आया। उसने विजय की मां से कहा आपका बेटा बोल नहीं सकता लेकिन सिखा जरूर सकता है। हम चाहते हैं कि वह हफ्ते में दो दिन बच्चों को मिट्टी से कला बनाना सिखाए। मां की आंखों से आंसू बहने लगे। कभी लोग कहते थे गूंगे से क्या होगा। आज स्कूल कह रहा था वो सिखाएगा। अब स्कूल में जब विजय आता बच्चे उसे घेर लेते। वो इशारों में समझाता मिट्टी कैसे गूंदनी है? आकार कैसे देना है? वो बोल नहीं पाता था लेकिन बच्चे ध्यान से उसकी आंखों उसके हाथों को पढ़ते थे। एक दिन एक बच्चा बोला गुरुजी की आवाज नहीं है पर यह सब कुछ सिखा देते हैं और पूरा स्कूल तालियों से गूंज उठा। अब हर साल लगने वाला शहर का मेला खुद बुलावा भेजता था विजय को। एक बड़ा स्टॉल मिलता था गांव की कला विजय का हुनर के नाम से। शहर के लोग उस स्टॉल के आगे रुकते, सर हिलाते और कहते इस लड़के ने तो मिट्टी में सोना बना दिया। अब विजय हर मेले में ₹500 से ₹700 रोज कमाने लगा था। मां के लिए नए कपड़े, बहन की पढ़ाई, घर की छत की मरम्मत सब कुछ खुद करता। उसने घर के बाहर एक छोटा बोर्ड टांग दिया था। मिट्टी कला केंद्र विजय कुमार। विजय ने अब गांव के चार से पांच और गरीब लड़कों को सिखाना शुरू किया। जो स्कूल नहीं जाते थे लेकिन कुछ करना चाहते थे। वह बोल नहीं सकता था लेकिन उनके लिए रास्ता खोल रहा था। गांव के सालाना कार्यक्रम में विजय को मंच पर बुलाया गया। पहली बार वह चढ़ा था मंच पर। लोग खड़े होकर तालियां बजा रहे थे। मुखिया जी ने कहा यह लड़का बिना बोले गांव को बहुत कुछ सिखा गया है। सिखाया है कि आवाज नहीं इरादा बोलता है। विजय आज भी गूंगा है। आज भी सुबह मिट्टी लाता है। खिलौने बनाता है और इशारों से बच्चों को सिखाता है। लेकिन अब लोग उसे गूंगा छोरा नहीं कहते। अब लोग उसे विजय महंत की आवाज कहते हैं। भगवान ने आवाज नहीं दी लेकिन महंत की भाषा सबको समझ आती है और विजय ने यही भाषा दुनिया को सिखा दी। दोस्तों अगर मेहनत सच्ची हो तो आवाज की जरूरत नहीं होती। जिसे दुनिया ने बेकार कहा उसने मिट्टी से इतिहास रच दिया। ईश्वर हर किसी को बराबर नहीं देता लेकिन मेहनत करने का हक सबको देता है। विजय ने साबित कर दिया बिना बोले भी इज्जत कमाई जा सकती है। दोस्तों, अगर आपको यह कहानी दिल से छू गई हो, तो इसे लाइक जरूर करें। ऐसी ही मेहनत, संघर्ष और असली जिंदगी से जुड़ी कहानियां रोजाना पाने के लिए हमारे YouTube चैनल ट्रुथ ऑफ लाइफ को सब्सक्राइब करें और बेल आइकन दबाएं।
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